Saturday, August 17, 2019

Kashmir House of Delhi_दिल्ली का कश्मीर हाउस

17082019, Dainik Jagran


आज कश्मीर संसद के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कारण देशव्यापी चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में अंग्रेजों के दौर की दिल्ली में बने लेकिन अपेक्षाकृत कम चर्चित कश्मीर हाउस की उपस्थिति को नोटिस में लिया जाना स्वाभाविक है। नई दिल्ली के राजाजी मार्ग पर स्थित कश्मीर हाउस के नाम से ही आभास होता है कि कोई रिहाइश की इमारत रही होगी। अगर हकीकत में देखें तो यह इमारत पहले एक महलनुमा निवास थी। इतिहास में झांकने से पता चलता है कि वर्ष 1930 के दशकों में अंग्रेजों ने इस इमारत को मूल रूप से अंग्रेजी सेना के कमांडर-इन-चीफ के निवास स्थान के रूप में बनाया था। उल्लेखनीय है कि भारत में इस अवधि में दो अंग्रेज कमांडर इन चीफ रहे, जो कि फील्ड मार्शल विलियम रिडल बर्डवुड (6 अगस्त 1925-30 नवंबर 1930) और फील्ड मार्शल फिलिप वालहाउस चेटवोड (30 नवंबर 1930-30 नवंबर 1935) थे। लेकिन अज्ञात कारणों से, इस इमारत को कश्मीर रियासत को बेच दिया गया।


कश्मीर रियासत को इस इमारत को खरीदने के कारण इंडिया गेट के पास बने प्रिंसेस पार्क में आवंटित अपने भूखंड को छोड़ना पड़ा। अंग्रेजों ने नई दिल्ली को बसाने के समय अपने वफादार राजा-रजवाड़ों को इंडिया गेट के दोनों ओर भवन निर्माण के लिए भूखंड दिए थे। "द लाॅस्ट महारानी ऑफ़ ग्वालियरः एक आत्मकथा" में राजमाता विजयराजे सिंधिया ने इस बात का उल्लेख किया है कि प्रिंसेस पार्क में ग्वालियर के अलावा दूसरी रियासतों त्रावणकोर, धौलपुर और नाभा को भी निर्माण के लिए स्थान प्रदान किए गए थे।


इंटैक के दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक "दिल्ली द बिल्ट हैरिटेज ए लिस्टिंग" के अनुसार, कश्मीर हाउस आयताकार में बनी एक बड़ी इमारत है। इस दो मंजिला ऊंची इमारत के मुख्य प्रवेश द्वार के लिए समानांतर रूप से बने पंक्तिबद्व खंबों से होकर गुजरना पड़ता है। जबकि इसके बाहर की तरफ दो कोनों पर अलग से खंड बने हुए हैं और मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर का हिस्सा ढका हुआ है। इस इमारत में प्रयुक्त ईंट चिनाई साफ दिखती है।

आजादी के बाद, वर्ष 1953 में यहां यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंडिया का कार्यालय शिमला से दिल्ली स्थानांतरित हुआ। वर्ष 1870 में बने यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंडिया की स्थापना का श्रेय एक अंग्रेज सैन्य विद्वान कर्नल (बाद में मेजर जनरल) सर चाल्र्स मैकग्रेगर को है। एक तरह से कहा जा सकता है कि इस संस्थान की प्रगति की कहानी, भारतीय सशस्त्र बलों के विकास से जुड़ी हुई है। इसके गठन का मूल उदेश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और उसमें भी विशेष रूप से रक्षा सेवाओं के साहित्य और उससे संबंधित कला, विज्ञान और साहित्य में रुचि और ज्ञान को बढ़ाना था। कश्मीर हाउस में 1957 से 1987 की अवधि में इस संस्थान तत्कालीन सचिव कर्नल प्यारे लाल ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पूरे समर्पण और निस्वार्थ भाव से इसे रचनात्मक रूप से क्रियाशील रखा। उसके बाद, यह संस्थान कश्मीर हाउस करीब 43 साल यहां रहने के बाद वर्ष 1996 में बसंत विहार के राव तुलाराम मार्ग पर स्थानांतरित हो गया।

अब कश्मीर हाउस में मुख्य रूप से भारतीय सशस्त्र बलों के इंजीनियर-इन-चीफ का कार्यालय है। मिलिट्री इंजीनियर सर्विसेज (एमईएस), भारतीय सेना के इंजीनियर कोप्र्स (बल) का एक प्रमुख अंग है जो कि सशस्त्र बलों को पार्श्व में रहकर इंजीनियरी सहायता प्रदान करता है। इसकी गिनती देश की सबसे बड़ी निर्माण और रखरखाव एजेंसियों में होती है। एमईएस पूरे देश में अपनी इकाइयों के माध्यम से सेना, वायु सेना, नौसेना और डीआरडीओ की विभिन्न इकाइयों को इंजीनियरिंग क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है।

एमईएस, इंजीनियर-इन-चीफ के नेतृत्व में कार्य करता है। इंजीनियर-इन-चीफ युद्वकाल और शांति के समय में निर्माण गतिविधियों के संबंध में दिल्ली स्थित रक्षा मंत्रालय और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के सलाहकार के दायित्व का निर्वहन करते हैं। मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज के जिम्मे थल सेना, नौसेना और वायु सेना की सभी ढांचागत परिसंपत्तियों के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी है। सेना की इंजीनियरी शाखा के माध्यम से उसके अधिकारियों की देखरेख में ठेके पर होने वाले कार्यों का डिजाइन भी एमईएस तैयार करता है। एमईएस के पास बहु-विषयक विशेषज्ञों का एक एकीकृत समूह है, जिसमें वास्तुकार, सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल इंजीनियरों सहित स्ट्रक्चरल डिजाइनर, सर्वेक्षक और विभिन्न कार्यों के नियोजन, डिजाइनिंग और निगरानी के लिए विशेषज्ञ शामिल हैं।

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