१९ वीं शताब्दी के आरम्भ में दिल्ली में भी बंगाल की तर्ज पर राष्ट्रीय स्वयंसेवी दल नैशनल वालंटियर्स नामक संस्था की स्थापना हुई। उसका नतीजा ही था कि विदेशों से आने वाला क्रांति साहित्य जनता में वितरित होने लगा। यह साहित्य चोरी-छुपे दिल्ली में बाहर से लाया जाता था। हिन्दू कालेज के विद्यार्थियों ने यह साहित्य रेलवे स्टेशन पर सिपाहियों में बांटा। पंजाब और बंगाल से भी साहित्य आ रहा था। एक कड़ी चेतावनी, पंजाबियों को संदेश जैसे टेक्स्ट बांटे गए। इस साहित्य के सृजन में मास्टर अमीरचन्द ने बहुत योगदान दिया था।
वर्ष 1907 में खेत-मजदूरों की समस्याओं को लेकर पंजाब में आंदोलन हुआ। जिसमें सरकार ने लाला लाजपत राय को बन्दी बनाकर माण्डले जेल भेज दिया तो सरदार अजीत सिंह को भी पकड़कर देश निकाला मिला। लालाजी और अजीत सिंह के समर्थन के लिए एक कोश स्थापित हुआ, जिसमें दिल्ली वालों ने चन्दा दिया। चंदे के लिए पंचायतें हुईं। गुरुद्वारा रकाबगंज के ग्रंथी सरदार सावन सिंह ने इस कार्य में विशेष सहयोग दिया। 18 नवम्बर, 1907 को जब लाजपत राय और अजीत सिंह जेल से मुक्त हुए तो दिल्ली वासियों ने उन्हें बधाई के तार भेजे। 20 जनवरी, 1908 को दिल्ली आने पर लाजपत राय का भव्य स्वागत हुआ।
मुजफ्फरपुर केस के अमर शहीद खुदीराम बोस के समर्थन और सहायता के लिए हिन्दू कालेज के प्राध्यापक प्रो डी. एन. चौधरी के निवास पर दिल्ली के बंगाली समाज की सभा 19 जून, 1908 में हुई जिसमें स्थानीय नेताओं के भाषण हुए पांच हजार रूपए का चन्दा जमा किया गया। जब 11 अगस्त, 1908 को खुदीराम बोस को फांसी हुई तो दिल्ली के नागरिकों विशेषतः बंगालियों ने उपवास रखा। शहीदों के लहु नामक भारत का मानचित्र जिस पर लाल रंग से शहीदों से संबंधित स्थान दिखाए गए थे जगह जगह बेचा गया।
क्रांतिदूत मास्टर अमीर चन्द ने दिल्ली के माथे पर अपने खून से टीका किया। उन्हें दिल्ली में अंग्रेज वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने के अपराध में 8 मई, 1915 को फांसी दी गई थी। स्वामी रामतीर्थ के शिष्य अमीर चन्द मिशन स्कूल में अध्यापक थे। उन्होंने प्रसिद्व क्रांतिकारियों के लेखों का सरल उर्दू में अनुवाद करके ऐसे पैम्फलेट तैयार किए जो बहुत ही रोचक लघु-पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित हुए। ऐसे टेक्स्ट में से कुछ थे, "बन्दर-बांट", "उंगली पकड़ते पोंहचा पकड़ा", "गरीब हिन्दुस्तान", "कौमी जिन्दगी" आदि। मास्टरजी का झुकाव बंगाल के क्रांतिकारियों की तरफ था। उन्होंने एक साप्ताहिक पत्र "आकाश" निकाला जो मुंशी गणेशी लाल के इन्द्रप्रस्थ नैशनल प्रैस में छपता था।
23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के फिर से भारत की राजधानी बनने पर अंग्रेज वायसराय लार्ड हार्डिंग का जुलूस निकला। इस अवसर को भारतीय क्रांतिकारियों के लिए चुनौती के रूप में लेते हुए रासबिहारी बोस पहले ही दिल्ली आ चुके थे। जब वायसराय की टाउन हाल की तरफ मुड़कर चांदनी चौक में प्रविष्ट हुई तो मोती बाजार के सामने कटरा धूलिया (पंजाब नेशनल बैंक) के पास पहुंचा तो वायसराय के हौदे की तरफ बम फेंका गया। उसका एक सेवक मारा गया तो दूसरा बुरी तरह घायल हो गया। वायसराय चोटिल तो हुआ पर बच गया। इस घटना पर लाला हरदयाल ने बर्कले कैलीफोर्निया (अमेरिका) में क्रिसमस दिवस की एक सभा में लोगों को बताया था कि यह उनके साथियों का कारनामा है। इन्हीं का लिखा एक पत्रक दिल्ली बम के नाम से भारत में युगान्तर आश्रम की ओर से छाप कर वितरित किया गया था जिसमें इस बम कांड की क्रांतिकारियों द्वारा की गई यह व्याख्या है, "जहां निरंकुश अत्याचारी शासक हैं वहां मैं भी हूँ और यह बम आग के शोलों से हमारे शब्द कह रहा है, यह बम क्रांतिकारी आंदोलन का पुनर्जीवन है।"
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