Saturday, October 12, 2019
Pre Independent Delhi in view of a Rajasthani एक राजस्थानी की जुबानी, दिल्ली की कहानी
अंग्रेजों के जमाने में नई दिल्ली के निर्माण में राजस्थान के पत्थर से लेकर राजस्थानियों का अप्रतिम योगदान रहा है। परस्पर सहयोग और आदान-प्रदान के इन संबंधों को लेकर इतिहास में लंबा मौन ही पसरा है। राजस्थान विधानसभा के चार बार सदस्य रहे और मेरवाड़ा क्षेत्र रावत समाज के मूर्धन्य नेता मेजर फतेहसिंह रावत की "मेरा जीवन संघर्ष" शीर्षक वाली आत्मकथा स्वतंत्रता पूर्व दिल्ली और राजपूताने के अनाम पर स्वाभिमानी अप्रवासी राजस्थानियों के कम-जानी पर परस्पर विकास की कहानी बयान करती है।
तत्कालीन रामजस काॅलेज की पढ़ाई और उसके प्राध्यापकों के पढ़ाने के तरीकों का वर्णन करते हुए मेजर फतेह सिंह लिखते हैं कि मैंने बीए में इतिहास (ऑनर्स) में प्रवेश लिया था। क्लास में अकेला था। इतिहास के प्रोफेसर डाक्टर भंडारी थे, जिन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की थी। काॅलेज के अलावा वे मुझे पढ़ाने छात्रावास में मेरे कमरे में भी आते रहते थे। हर छात्र को एक कमरा मिलता था। भंडारी साहब मेरे काम से बहुत प्रसन्न और प्रभावित थे। उन्होंने सब पाठ्यपुस्तकें एवं इतिहास की अन्य उपयोगी पुस्तकें अपने नाम से काॅलेज पुस्तकालय से निकलवाकर मुझे पढ़ने के लिए दे दी। अतः मेरा पुस्तकें खरीदने का खर्चा भी बच गया था। भंडारी साहब भी दिल्ली, पंजाब तथा यूपी की किसी न किसी विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के परीक्षक हुआ करते थे। मुझ पर उनका विशेष स्नेह था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डाक्टर ईश्वरीप्रसाद (प्रसिद्ध इतिहासकार) और लखनऊ विश्वविद्यालय के डाक्टर बैनीप्रसाद एक बार जब दिल्ली आये तो डाक्टर भंडारी साहब उनसे मिलने दिल्ली रेलवे-स्टेशन पर गये, तब मुझे भी साथ ले गये और उनसे मिलाया था। ऐसे गुरू के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मेरे पास कोई पर्याप्त शब्द नहीं हैं।
परेड ग्राउंड लालकिला था। लालकिला रामजस काॅलेज से लगभग चार मील दूर था। मैं और एक अन्य अहीर छात्र शायद नाम हरिप्रसाद था, दरियागंज चांदनी चैक होते हुए पैदल ही जाते थे और परेड के बाद पैदल ही वापस आते थे। वर्दी (पोशाक) थी-हैट, खाकी कमीज, खाकी हाॅफपेंट, फुल बूट, पट्टी और कमर पेटी। हमें दो साल में वह प्रशिक्षण दिया गया जो कि एक फौजी रिक्रूट को छह माह में दिया जाता है। प्रशिक्षक अंग्रेज अफसर और एनसीओ होते थे।
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