Saturday, October 31, 2020
Maker of Indian Administrative System in India_प्रशासनिक व्यवस्था के प्रणेता सरदार पटेल
सरदार पटेल ने अंतरिम सरकार के अपने पूर्ववर्ती अनुभवों को स्मरण रखते हुए 10 अक्तूबर 1949 को भारतीय संविधान सभा की बहस में कहा, 'मैं इस सभा के रिकार्ड के लिए यह कहना चाहता हूं कि यदि गत दो या तीन वर्षों में सिविल सेवाओं के अधिकारियों ने देशभक्ति की भावना से और निष्ठा से काम नहीं किया होता तो यह संघ समाप्त हो गया होता। आप सभी प्रान्तों के प्रीमियरों से पूछिए। क्या कोई भी प्रीमियर सिविल सेवा अधिकारियों के बिना काम करने को तैयार है? वह तत्काल त्यागपत्र दे देगा। उसका गुजारा नहीं है। हमारे पास सिविल सेवा के बचे हुए कुछ ही अधिकारी थे। हमने उन थोड़े से व्यक्तियों के साथ बहुत कठिन से कार्य किया है।'
उल्लेखनीय है कि सरदार पटेल ने प्रशासन की स्थिरता, उसे पुनः सबल बनाने का कार्य तथा सिविल सेवाओं के मनोबल को ऊंचा रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम उठाएं। सरदार पटेल बिना देरी किए शीघ्रता से देश के केंद्रीय प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के काम में जुट गए। 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मेटकाफ हाउस में, जब देश में सत्ता का हस्तांतरण तकरीबन चार महीने दूर था और अभी इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, उस समय सरदार पटेल ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण स्कूल के पहले परिवीक्षार्थियों के समूह को संबोधित किया। सरदार पटेल ने अपने संबोधन में कहा, ‘आप भारतीय सेवा के अग्रणी हैं और इस सेवा का भविष्य आपके कार्यों, आपके चरित्र और क्षमताओं सहित आपकी सेवा भावना के आधार से रखी नींव और स्थापित परंपराओं पर निर्भर करेगा।’
दिल्ली की यमुना नदी के किनारे बने इस स्कूल में प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के चौबीस और भारतीय विदेश सेवा के नौ परिवीक्षकों को पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा, 'शायद आप पिछली सिविल सेवा, जिसे इंडियन सिविल सर्विस के नाम से जाना जाता है, को लेकर भारत में प्रचलित एक कहावत से परिचित हैं जो न तो भारतीय है, न ही सिविल है और उसमें सेवा की भावना का भी अभाव है। सही मायने में, यह भारतीय नहीं है क्योंकि भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी अधिकतर अंग्रेजीदां हैं, उनका प्रशिक्षण विदेशी जमीन पर हुआ था और उन्हें विदेशी आकाओं की चाकरी करनी थी। इस कारण प्रभावी रूप से यह पूरी सेवा, भारतीय न होने, न ही नागरिकों के प्रति शिष्ट होने और न ही सेवा भावना से ओतप्रोत होने के लिए जानी जाती थी। फिर भी इसकी पहचान भारतीय सिविल सेवा के रूप में होती थी। अब यह बात बदलने जा रही है।'
भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मिलित कर दिया गया।
यह सरदार पटेल की पहल का ही परिणाम था कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 1 अक्तूबर, 1947 को प्रशासनिक तंत्र का भारतीय नामकरण करते हुए अंग्रेजों की इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की।
दूरदर्शी पटेल को स्पष्ट था कि एक नव-स्वतंत्र राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधे रखने और किसी भी प्रकार के विखंडन को थामने के लिए एक शक्तिशाली अखिल भारतीय सिविल सेवा का होना महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसी बात को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को 27 अप्रैल 1948 को भेजे पत्र में रेखांकित करते हुए लिखा, 'मेरे लिए इस बात पर जोर देना शायद ही जरूरी हो कि कार्यक्षम, अनुशासनबद्व तथा संतुष्ट अधिकारी, जिन्हें अपने परिश्रमपूर्ण और प्रामाणिक कार्य के फलस्वरूप उन्नति का आश्वासन प्राप्त है-लोकतांत्रिक शासन-पद्धति में स्थिर शासन के लिए निरंकुश शासन की अपेक्षा अधिक अनिवार्य है।'
Formation of Nagpur All India Radio Advisory Committee_01111950_AIR_आल इंडिया रेडियो_नागपुर केन्द्र_सलाहकार समिति
आज का दिन_1 नवंबर 1950
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आज के दिन ही वर्ष 1950 में आल इंडिया रेडियो के नागपुर केन्द्र की सलाहकार समिति का गठन किया था। इस समिति में कर्मवीर के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी, जबलपुर की बेहरबाग की श्रीमती उषा देवी मित्रा, नागपुर स्थित नागपुर विश्ववि़द्यालय के उपकुलपति श्री कुंजीलाल दुबे, जबलपुर के राबर्टसन काॅलेज के प्रोफेसर श्री रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', अमरावती के अमरावती म्युनिस्पिल बोर्ड के अध्यक्ष, श्री वीर वामनराव जोशी, नागपुर के धंतोली से निकलने वाले समाचार पत्र ‘भवितव्य’ के संपादक श्री पी. वाई. देशपांडे, अमरावती के सांसद डॉक्टर पंजाबराव देशमुख और नागपुर के ‘तरूण भारत’ के संपादक श्री गजानन दिगंबर माडगूळकर सम्मिलित किए गए थे।
Thursday, October 15, 2020
Check on chinese propoganda_1962_1962_लगाई थी, चीन के दुष्प्रचार पर लगाम
चीन के पेकिंग विदेशी भाषा प्रेस से प्रकाशित 'सिंपल ज्योग्राफी ऑफ़ चाइना' पुस्तक में मुद्रित मानचित्रों में पूर्वी लद्दाख के बड़े हिस्से (अक्साई चिन), पंजाब और उत्तर प्रदेश के भागों सहित समूचे नेफा (आज का अरूणाचल प्रदेश) को चीन के हिस्से के रूप में प्रदर्शित किया गया था। वर्ष 1958 में छपी 'ग्लिम्पसेज ऑफ चाइना' में, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हिस्सों सहित समूचे नेफा को चीन का भाग दिखाया गया था। जबकि वर्ष 1960 में प्रकाशित 'चीन-भारत सीमा के सवाल पर दस्तावेज' में भी इन इलाकों को गलत तरीके से चीन का भाग चित्रित किया गया था। अना लुइस स्ट्राग की लिखी 'वेन सर्फस् स्टूड अप इन तिब्बत' पुस्तक में पूर्वी लद्दाख के विशाल भाग सहित पूरे नेफा को चीन का हिस्सा बताया गया था। मैकमोहन लाइन को भारत की वैध अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में संदिग्ध बताने की नीयत से आंकड़ों के साथ हेराफेरी की गई थी। जबकि कोलंबो से छपी 'विदर इंडिया-चाइन रिलेशन्स?' पुस्तक में जम्मू-कश्मीर के चीन अधिकृत भाग को परंपरागत रूप से चीन का हिस्सा और मैकमोहन लाइन को अवैध बताया गया था।
'चित्रों में चीन के मुख्य पर्यटन नगर' और 'चीन की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की पहली पंचवर्षीय योजना' शीर्षक वाली पुस्तकों में भी जम्मू-कश्मीर सहित समूचे नेफा को चीन का भाग प्रदर्शित किया गया था। हेवलेट जानसन की 'अपसर्ज आफ चाइना' (1961) के दो मानचित्रों में नेफा और चीन का हिस्सा और जम्मू-कश्मीर को भारत का भाग न बताने के कारण प्रतिबंधित किया गया। 'विक्टरी फार द फाइव प्रिंसिपल्स' शीर्षक वाले पर्चे में भी ऐसे ही गलत ढंग से नेफा और जम्मू-कश्मीर को और वर्ल्ड वाॅल मैप में समूचे नेफा को चीन का भाग प्रदर्शित किया गया था।
Wednesday, October 14, 2020
Mohandas Karamchand Gandhi_Thoughts_English
If the importance of Indian languages is not recognized in the field of education, the national spirit will not be awakened. And is there a greater humiliation for the country than that?
Sunday, October 11, 2020
Mahatma Gandhi_thoughts
शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के महत्व को स्वीकार किए बिना राष्ट्रीय भावना जागृत नहीं होगी। क्या देश के लिए इससे बड़ा अपमान है?-महात्मा गांधी, खंड 96, संपूर्ण गांधी वांड्मय, 17 जुलाई 1947
गाँधी_वेश्या_देवदासी प्रथा 1921 में बारीसाल (जो अब बंग्लादेश में है) में रात के दस बजे करीब एक सौ वेश्याओं के साथ दुभाषिये के जरिये बातचीत करके जो अनुभव गाँधी ने प्राप्त किये उसे 11 सितम्बर 1921 के नवजीवन (गुजराती पत्र) में इस प्रकार रखा था-ये बहनें जानबूझ कर इस पाप में नहीं पडी। पुरूषों ने उन्हें इसमें गिराया है। जिनको इस बात पर दर्द होता है उन्हें चाहिए कि वे प्रायश्चित के रूप में इन पतित बहनों को हाथ बढा कर सहारा दें। जब-जब इन बहनों का चित्र मेरी आँखों के सामने आता है तब-तब मुझे ख्याल होता है कि अगर ये मेरी बहनें या बेटियाँ होतीं तो ! और होतीं तो क्यों वे हैं ही, उनको उठाना मेरा काम है। प्रत्येक पुरूष का काम है।.....स्वराज्य का अर्थ है पतितों का उद्धार।यही नहीं दक्षिण भारत में प्रचलित देवदासी प्रथा का विरोध करते हुए गाँधी ने 16 अप्रैल 1925 के यंग इंडिया में लिखा-दक्षिण यात्रा में मुझे जितने अभिनंदन-पत्र मिले उन सब में अत्यन्त हृदयस्पर्शी वह था जो देवदासियों की ओर से दिया गया था। देवदासियों को वेश्या शब्द का सौम्य पर्याय ही समझिए।.... यह अत्यन्त लज्जा, परिताप और ग्लानि की बात है कि पुरूषों की विषय-तृप्ति के लिए कितनी ही बहनों को अपना सतीत्व बेच देना पडता है। पुरूष ने विधि-विधान के इस विधाता ने अबला कही जानेवाली जाति को बरबस जो पतन की राह पर चलाया है, उसके लिए उसे भीषण दंड का भागी होना पडेगा।.... मैं हर युवक से वह विवाहित हो या अविवाहित, जो कुछ मैंने लिखा है, उसके तात्पर्य पर विचार करने का अनुरोध करता हूँ। इस सामाजिक रोग, नैतिक कोढ के संबंध में मैंने जो कुछ सुना है, वह सब मैं नहीं लिख सकता। विषय बडा नाजुक है, पर इसी कारण इस बात की ज्यादा आवष्यकता है कि सभी विचारशील लोग इसकी ओर ध्यान दें।
Mahatma Gandhi_Third Class Indian Railway_Delhi_Booking Ticket Office_दिल्ली_तीसरे दर्जे का रेल आरक्षण कार्यालय_महात्मा गांधी
शाही राजधानी यानी दिल्ली का एक तीसरे दर्जे का रेल आरक्षण कार्यालय एक ब्लैक-होल है, जो कि नष्ट होने लायक ही है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत में प्लेग एक महामारी बन गया है? ऐसे स्थान पर कोई दूसरी बात हो ही नहीं सकती है, जहां आने पर यात्री हमेशा कुछ गंदगी छोड़ जाते हैं और अपने साथ उससे अधिक गंदगी समेटकर ले जाते हैं।
-महात्मा गांधी, थर्ड क्लास इंडियन रेलवे पुस्तक में
Thursday, October 1, 2020
Name change from ICS to IAS_01101947_स्व के तंत्र की घोषणा का दिन_1 अक्तूबर1947
वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आज ही के दिन प्रशासनिक तंत्र के नाम का भारतीयकरण किया था।
1 अक्तूबर, 1947 को नई दिल्ली से एक प्रेस नोट जारी करके गृह मंत्रालय ने अंग्रेजों की इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की थी।
इससे पूर्व, आइसीएस और आइपी के स्थान पर परिवर्तन करके अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा और अखिल भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया था।
तब महजबी आधार पर राष्ट्र-विभाजन ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया था। वर्ष 1946 में प्रांत-प्रमुखों की बैठक में पारित प्रस्ताव ही एक प्रकार से भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के लिए घोषणापत्र बन गया।
भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मिलित कर दिया गया। वर्ष 1948 के मध्य तक, द्वितीय विश्व युद्व में उनकी सेवाओं के के आधार पर चुने गए अधिकारियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त किया गया।
नव-स्वतंत्र देश के इस महत्वपूर्ण तंत्र के रूपातंरण की प्रक्रिया केन्द्रीय गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुई। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 18 जनवरी 1948 को बम्बई में हुई एक सभा में इससे संबंधित अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि कितने ही सालों से अंग्रेजों ने हमारी हुकूमत चलाने के लिए एक तन्त्र बनाया था, जिसको 'लोहे की चौखटी' यानी 'स्टील फ्रेम' कहते हैं। यह वज्र का बना हुआ एक फ्रेम था, जिसको सिविल सर्विस कहते हैं। यह कोई पन्द्रह सौ आदमियों की एक सर्विस थी। यह पन्द्रह सौ अफसर सारे हिन्दुस्तान का राज्य चलाते थे। बहुत साल से और बड़ी मजबूती से यह राज्य चला रहे थे। जब यह फैसला हुआ, तब हमारे पास पन्द्रह सौ अफसर थे। उसमें 25 फीसदी अंग्रेज थे। वे सभी तो भागकर चले गए। तो वह जो फ्रेम था, आधा तो टूट गया। अब जो बाकी रहा, उसमें से जितने मुसलमान थे, वह सब भी चले गए। उनमें से चन्द लोग यहां रहे, बाकी सब चले गए। नतीजा यह हुआ कि आज हमारे पास पुरानी सर्विस के लोगों का सिर्फ चौथा हिस्सा बच रहा है, और इसी 25 फीसदी सर्विस से हम हिन्दुस्तान का सारा कारोबार चला रहे हैं। नई सर्विस तो हमारे पास कोई है नहीं। वह तो हमें बनानी पड़ेगी। इस तरह से तो लोग मिलते नहीं, और जिसके पास अनुभव नहीं है, जिसने कभी काम नहीं किया, वैसे आदमियों को ले लेने से तो काम चलता नहीं है। इस पर भी पिछले चार पांच महीनों में हमने इतना काम कर लिया।
First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान
कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...