Sunday, November 18, 2012

emergeny

इसमें अचरज क्या आपातकाल में हिंदी के नामवर आलोचक भी मौन थे और आज उनकी दादागिरी के आगे सब मौन है । छोटे सुख की चाहना में बड़ा दुख । छोटे सुख की चाहना में बड़ा दुख । खैर यही जीवन है, पूर्ण कोई नहीं ।
(संदर्भ: बाल ठाकरे ने आपातकाल लगाने के लिए इंदिरा गांधी का समर्थन किया था)

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