पता नहीं कितने युवा आंखों में सपने लिए समुंदर किनारे मायानगरी में आते हैं । कितने मुंबई के किनारे पर आने वाली लहरों पर आकर दम तोड़ देते है । और खत्म हो जाते हैं सपने, बंद आंखों में सदा के लिए । समुंदर किनारे, पानी की सतह पर आ जाती लाशें, गुमनामी के गहरे अंधेरे में डूबकर । सपना देखने वाली आंखें और शख्स दोनों हो समां जाते है चमकते ब्लैक होल में मुंबई के ।
Thursday, November 29, 2012
Mumbai:prism
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