Monday, February 27, 2012
Mother
कितनी छवियों में कैद थी,
उसकी तस्वीर ।
कितनी यादों में, गुम थी उसकी झलक ।
कितने खतों में कैद थी, उसकी खुशबू ।
कितनी निगहबान थी, निगाहें उसकी ।
पहली किताब के शब्द चीन्हें थे, उसकी ही आंखों से ।
सोया था उसकी ही पलकों के तले, न जाने कितनी बार ।
धीमी होती सांसों, तकती बेजुबान निगाहों से ।
समय ठहरा था, अस्पताल के बिस्तर पर ।
जिंदगी की जंग को, धीरे धीरे हाथ से छोड़ती हुई ।
मौत की धार पर चलते हुए, अंत से अनंत की ओर बढ़ती।
मां, मेरी मां ।
Sunday, February 26, 2012
India Gate:Statue
डायरी-अज्ञेय
पचीस-तीस वर्ष आज़ाद रह कर भी हम एक आत्म-प्रवंचना से छुटकारा नहीं पा सके हैं। हम समझते हैं कि अपने इतिहास के अनुज्ज्वल पक्ष की स्मृति मिटा कर हम उसके प्रभाव से मुक्त हो जाएँगे। जैसे कि जाति की स्मृति इतनी सतही होती है, जैसे कि प्रभाव इतने छिछले होते हैं, जैसे कि इतिहास ही इतना इकहरा होता है कि पिछली कड़ी से तोड़ कर भी कुछ अर्थ रख सके! हमारा दैनिक अखबार ही हमारी कुल इतिहास-शिक्षा हो जाये, इससे बड़ा क्या दुर्भाग्य होगा! पर वही हम कर रहे हैं। क्या ब्रितानी शासन के स्मृति चिह्न हटा देने से यह तथ्य मिट जाएगा कि वह शासन यहाँ रहा? क्या उसके लक्षणों को आँखों-ओट करना चाहना ही उसे गहरे में बनाये नहीं रखता? मैं तो समझता हूँ उनकी विशाल मूर्तियाँ हमने एकत्र कर के कालक्रम से लगा कर प्रदर्शित की होतीं, तो हमारी मुक्ति भावना अधिक पुष्ट हुई होती, इतिहास-परम्परा का हमारा ज्ञान गहरा हुआ होता, आज़ादी का अर्थ भी हमारी समझ में ठीक-ठीक आया होता, और जिस पीढ़ी ने स्वयं आज़ादी के संघर्ष में भाग नहीं लिया था वह भी उस संघर्ष को सम्मान की दृष्टि से देख सकती और उसमें गौरव का अनुभव कर सकती। महापुरुषों की मूर्तियाँ बनती हैं, पर मूर्तियों से महापुरुष नहीं बनते; ब्रितानी शासकों, सेनानियों, अत्याचारियों तक की मूर्तियाँ हमें देखने को मिलती रहतीं तो हमारा केवल कोई अहित न होता बल्कि हम सुशिक्षित हो सकते। राजपथ में एक मूर्तिविहीन मंडप खड़ा रहे, उससे कुछ सिद्ध नहीं होता सिवा इसके कि उसके भावी कुर्सीनशीन के बारे में हल्का मज़ाक हो सके; उसके बदले एक पूरी सडक़ ऐसी होती जिसके दोनों ओर ये विस्थापित मूर्तियाँ सजी होतीं और उस सडक़ को हम ‘ब्रितानी साम्राज्य वीथी’ या ‘औपनिवेशिक इतिहास मार्ग’ जैसा कुछ नाम दे देते, तो वह एक जीता-जागता इतिहास महाविद्यालय हो सकता। इतिहास को भुलाना चाह कर हम उसे मिटा तो सकते नहीं, उसकी प्रेरणा देने की शक्ति से अपने को वंचित कर लेते हैं। स्मृति में जीवन्त इतिहास ही प्रेरणा दे सकता है।
Saturday, February 25, 2012
Praveena Shakir
"खुली आंखों में सपना"
पूरा दुःख और आधा चाँद हिज्र की शब और ऐसा चाँद
पूरा दुःख और आधा चाँद हिज्र की शब और ऐसा चाँद
किस मकतल से गुजरा होगा ऐसा सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में घूम रहा है तनहा चाँद
मेरे मुंह हो किस हैरत से देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे कितना तनहा होगा चाँद
इतने रोशन चेहरे पर भी सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा तूने किसको सोचा चाँद
बरगद की एक शाख हटाकर जाने किसको झाँका चाँद
रात के शाने पर सर रखे देख रहा है सपना चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है अपने इश्क में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं सोता होगा मेरा चाँद
परवीन शाकिर की "खुली आंखों में सपना" ( किताबघर)
मेरी तलब था एक शख्स, वो जो नहीं मिला तो फिर हाथ दुआ से यूं गिरा, भूल गया सवाल भी ।
Sunday, February 19, 2012
Beloved:Wife
प्रेमिका और पत्नी
स्त्रोत से निकलती नदी और सागर में मिलती नदी एक होते हुए भी अलग होती है चाल, चरित्र और चेहरे में । प्रेमिका और पत्नी में यही अंतर होता है ।
स्त्रोत से निकलती नदी और सागर में मिलती नदी एक होते हुए भी अलग होती है चाल, चरित्र और चेहरे में । प्रेमिका और पत्नी में यही अंतर होता है ।
Thursday, February 9, 2012
Reflections: Words to world
शब्दों की गठरी
विजयदेव नारायण साही की एक कविता की प्रसिद्व पंक्ति है, अब मुझे उसकी उपस्थिति भी अपनी आलोचना लगती थी ।
रोज सबेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूं क्योंकि रोज शाम को मैं थोड़ा-सा भविष्य में मर जाता हूं-अज्ञेय
मौन सहमति का ही नहीं, असहमति का भी लक्षण है ।
किसी के इंतजार में सर्दी और सन्नाटे के साथ सह रहे है, दिल्ली के मौसम की मार । दूसरे शहरों के मिजाज से अलग है दिल्ली, और यहां के लोग ।
दिल्ली दिलों में तो दरार लाती ही है, अपनों से भी दूर कर देती है । कुछ फितरत, कुछ दस्तूर।
कुछ कसर रह गई, थोड़ा शब्दों को जिन्दगी के सिलबट्टे पर और घिसो । घिसने से सही मुल्लम्मा तैयार हो जाएगा, कहने का ।
किताब का पढ़ना तो दो चार दिन में ही हो जाता है। फिर उसे समझने के लिए ज्यादा समय लगता है। यह दूध उबाल कर, उसका दही जमाने से लेकर घी निकालने के समान है ।
सपना अगर आपके पास सपना नहीं है तो आप खुद को आगे नहीं बढ़ा सकते, आपको नहीं पता चलता कि लक्ष्य क्या है. जरूरी है कि आप एकाग्र रहे और कम अवधि के लक्ष्य तय करें. भविष्य की तरफ बहुत ज्यादा नहीं देखना चाहिए.
अहसास दिल में रहता था कोई, इसका हमें गुमान था ।बसाकर किसी दूसरे का घर, उसने अपने अहसास से भी जुदा कर दिया ।
बेसबब गुजर गया मुकाम से बिना नजर डाले मंजिल पर थी निगाहें सो नजर आया नहीं कोई
प्यार को कहना ही क्या जरूरी होता है ।
लक्ष्मण रेखा में सीता सुरक्षित रहती है, रेखा के घेरे से बाहर जाने पर ही रावण का खतरा होता है ।
मां दूर होते हुए भी कितनी पास लगती है....
पर दिल को आखिर समझाता तो दिमाग ही है चाहत से ज्यादा हवस चाहना तो मनभावन है, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।
उम्मीद पर खरा उतरना ही सबसे बड़ी कसौटी है वरना सब उतरन ही है ।
किताब होश में लिखनी है बेहोश करने के लिए, बेहोशी के लिए नहीं ।
लोटे पर धूल नहीं जमने देनी चाहिए । हम सब एक दूसरे से सीखते है माने या न माने । आपका बड़प्पन है कि आप मान रहे है । नहीं तो मेरे पास ऐसा कुछ नहीं की सीखा सकूं । सिर्फ अपना अनुभव बांट लेता हूं । जैसे अपनी तरक्की के लिए हम जिम्मेदार है, उसी तरह अपने आगे न बढ़ने का कारण भी हम खुद ही है । जितना जल्दी इस बात को समझ ले उतना जल्दी आगे बढ़ने का रास्ता आसान हो जाएगा ।समय का चक्का सब को घिस देता है, सड़क को भी, पहिए को भी और उस पर चलने वाले को भी ।
मतलब आप चाहते कुछ और है और होता कुछ और है ।जरूर भगवान आपको अपने सपनों को पूरा करने की ताकत दें ।
सच कहना और संग रहना नर्तक की तरह बांस पकड़कर रस्सी पर चलने सरीखा है।
जीवन में सहयोग, सीढ़ी नहीं । अनुभव अर्जित करना होता है जबकि जीवन में साझा तो केवल दुख होता है ।
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