Thursday, March 8, 2012

Sandhya Sundari

अर्द्धरात्री की निश्चलता में हो जाती जब लीन, कवि का बढ़ जाता अनुराग, विरहाकुल कमनीय कंठ से, आप निकल पड़ता तब एक विहाग! (संध्या सुन्दरी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला")

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