Sunday, March 25, 2012

Poem:City and Girl

शहर और लड़की


डाल पर चहकती हैं चिडि़या,
पेड़ों पर झूलती हैं लड़कियां
आसामान में उड़ान भरती है चिडि़या,
आकाश में नई मंजिलों की छूती हैं लड़कियां
कुल्हाड़े से केवल पेड़ ही नहीं कटते,
बसेरे भी उजड़ जाते हैं
चहचहाहट के संगीत के साथ
किलकिलारियां भी मद्वम हो जाती है
जंगल की हरियाली ही नहीं,
शहर की हरीतिमा भी खो जाती है
एक का उजड़ता है घरौदा
तो दूसरी के सपने बिसूर जाते हैं
एक की खो जाती है दिशा
तो दूसरी के सपने गुम हो जाते हैं
एक जीते जी शहर में,
अचानक क्फर्यू की मुर्दगी पसर जाती है
दूर कहीं पुलिस की जीप के बजते सायरन से
चिडि़या ही नहीं लड़कियां भी सहम जाती हैं
अपनी लाचार सिमटती दुनिया में और सिकुड़ जाती है
हौंसले हवा हो जाते हैं, दोनों के
ये किसकी नजर लगी है जंगल को
जो शहर के नाम पर उजाड़ा जा रहा है
जबकि शहर में जंगलराज छा रहा है
यह कैसा है सभ्यता का अतिचार
गमलों में बोनसाई लगाकर
खेतों में पापुलर पेड़ उगाकर
शहर में जंगल लग रहा है
जंगल में शहर बस रहा है

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