दिल्ली इम्तहान लेती है, कड़े इम्तहान लेती है ।
गुजारे है मैंने भी दिन और रात, कनाट प्लेस के पालिका प्लेस पर बने बगीचों में ।
देखी है, रात को कनाट प्लेस की अंधा कर देने वाली नियोन रोशनी की जगमगाहट ।
आधी रात के काले अंधेरों में हनुमान मंदिर और कनाट प्लेस थाने के सामने होती हिजड़ों और कोढि़यों की हरकतें ।
फुटपाथ और अंडर पास में स्मैक और चरस के सुट्टों पर धुंआ होती जिंदगी ।
बाबा खड़क सिंह मार्ग से लेकर वेलिंगडन अस्पताल के गोल चक्कर पर सड़क किनारे और स्टाप की ओट में बिकने को तैयार गर्म जिंदा गोश्त की पुतलियां ।
आखिर कौन जा पाया है दिल्ली की इन गलियों को छोड़कर, चाहे या अनचाहे, जाने अथवा अनजाने ।
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