Monday, May 21, 2012

Love: Forgiveness

प्यार-क्षमा
हम सोचते है कि ‘अलग हो गए‘, ‘भूल गए‘, प्यार ‘मर गया‘, अब कुछ नहीं बचा या कि भूला दिया इसलिए ‘क्षमा‘ हो गई । पर वास्तव में यह होता नहीं । ‘भूलना‘ है ही नहीं । याद दब जाती है तो भी क्रियाशील रहती है । तो प्यार ‘था‘ ही सही । भूलना निष्क्रिय नहीं होता, न वह क्षमा का पर्याय होता है। एक सोद्ेश्य, सक्रिय क्षमा होनी चाहिए कि वह ‘था‘ ही कडुवा कर एक वैर-भरा ‘है‘ न बन पाए ।

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