प्रेम का कायरानापन
आज अंतिम विदा ले रहा हूं । हमारा सम्बंध विच्छेद तो उसी दिन हो गया था, जिस दिन तुम्हारा विश्वास उठ गया था, किन्तु अभ्यासवश विदा मांग रहा हूं । मैं कायर नहीं हूं , इस बात का विश्वास में तुम्हें उसी समय दिला सकता था पर तुम विश्वास नहीं कर सकीं । मुझे तुमसे विश्वास की, सहज, स्वाभाविक, अटल विश्वास की-आशा थी । यह आशा प्रत्येक मनुष्य करता है । तुम वैसा विश्वास नहीं कर सकी । जहां तक तुम्हारी मुझे देख कर भी अनदेखी करने की प्रवृत्ति, जिसकी वजह तुम ही जानती हो, को ढापने के लिए मेरे ही महीनों गायब रहने की बात पर तुमने झूठ बोला-ऐसा कहने की स्थिति में मैं नहीं हूं । इस शब्द का प्रयोग करने के लिए बहुत गहरे संबंधों की आवश्यकता होती है और झूठ और सच के बीच में भी बहुत कुछ होता है । अगर प्रत्येक बात में विश्वास का पात्र होने के लिए ‘प्रमाण‘ देना पड़े, अगर तुम्हारा प्रेम प्राप्त करने के लिए नित्य यह दिखाना पड़े कि मैं उसका पात्र हूं, तो ऐसे प्रेम का क्या मूल्य है घ् अगर तुम विश्वास-भर कर लेती ! दो-एक दिन में मैं नहीं रहूंगा। तब तक या उस के बाद तुम्हें प्रमाण भी मिल जाएंगे कि मैं कायर नहीं हूं, अगर तुम अब किसी से प्रेम करो तो ऐसा व्यक्ति चुनना, जिस का तुम अकारण विश्वास कर सको । एक कायर से इतनी ही शिक्षा ग्रहण कर लो । अब मेरे मन में शांति है । अपना मन टटोल कर देख लेना, उस में क्या है ।
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