सॉफ्ट पावर बरास्ता भविष्य की महाशक्ति भारत
भारत में सार्वजनिक जीवन में साफ्ट पावर के विचार को प्रचलित करने वाले शशि थरूर ने अपनी नवीनतम पुस्तक पाक्स इंडिका में पूरे 38 पृष्ठों में इस विचार के व्यावहारिक पक्ष की विस्तृत व्याख्या की है । थरूर ने मूल रूप से हावर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ नये की अवधारणा को हाल के समय में समूची दुनिया के पारंपरिक अर्थ में भारत को एक उभरती शक्ति के तौर पर स्वीकार करने की बात के संदर्भ में इस विचार का प्रतिपादन किया है । उनका कहना है कि आज की दुनिया में भारत अपनी सैन्य, आर्थिक शक्ति की तुलना में अपनी सॉफ्ट पावर के कारण ज्यादा प्रासंगिक है ।
जोसेफ नये के साफ्ट पावर अवधारणा के अनुसार, इस शक्ति की बदौलत एक देश दूसरे साथी देशों के व्यवहार में परिवर्तन लाते हुए अपनी इच्छानुसार कार्य करवाने में सफल होता है । इसके लिए तीन तरीके हैं, पहला ताकत के जोर पर दूसरा धन के लालच में और तीसरा आकर्षण अथवा रिझाकर । दूसरे शब्दों में अगर आप किसी देश को स्वेच्छा से प्रेरित करके अपना कार्य संपन्न करवा लेते हैं तो आपको ताकत या धन की भी जरूरत नहीं होती है । विश्व राजनीति में पारंपरिक रूप से शक्ति को सैन्य अर्थ में ही आंका जाता है और सबसे अधिक सेना वाले देश की ही जीत की संभावना होती है ।
पर अगर दुनिया के इतिहास पर नजर डालें तो केवल सैन्यबल ही काफी नहीं साबित हुआ है । आखिरकार वियतनाम युद्व में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी और अफगानिस्तान में सोवियत संघ को हार का सामना करना पड़ा । यहां तक की इराक में भी अमेरिका को इसी सच्चाई से दो चार होना पड़ा । इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सॉफ्ट पावर पर कोरी सैनिक ताकत के विकल्प के रूप में विचार करें तो यह उसका पूरक है । अगर जोसेफ नये के शब्दों में कहे तो किसी भी देश की साफ्ट पावर मुख्य रूप से तीन कारकों पर निर्भर होती है । पहला उसकी संस्कृति (जहां वह दूसरे देशों के लिए आकर्षण होती है), उसके राजनीतिक मूल्य (जिसे वह देश अपनी जमीन और दूसरे के यहां जीता है) और उसकी विदेश नीति ( जिसे दूसरे देश नैतिक अधिकार के कारण वैधता से स्वीकार करते हैं) ।
थरूर ने इससे भी एक कदम आगे बढ़कर सॉफ्ट पावर को किसी देश के विषय में दुनिया के अभिमत को उसकी कसौटी बताया है । उनके अनुसार, किसी भी देश के नाम के उच्चारण मात्र से दुनिया की नजर में उभरने वाली तस्वीर ही वास्तविकता में साफ्ट पावर है न कि उस देश की विदेश नीतियों का आकलन । इस तरह 21 वीं सदी की दुनिया में भारत के नेतृत्व की भूमिका का आकलन करें तो हम सर्वमान्य रूप से दुनिया भर में भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति आकर्षण की बात पाएंगे । ये बातें दूसरे देशों को सीधे तौर पर भारत का समर्थन करने के लिए भले ही न तैयार करती हो पर वे दुनिया की नजर में भारत के अमूर्त स्थान को कायम करने की दिशा में एक कदम जरूर है । भारत में सॉफ्ट पावर होने के सारे गुण मौजूद है । भारत की सभ्यता निर्विवाद रूप से दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, जिसने हर जाति, नस्ल और राष्ट्रीयता के व्यक्तियों को शरण दी । उसमें भी महत्वपूर्ण रूप से यहूदी, पारसी, ईसाइयत के विभिन्न पंथों और मुसलमानों को धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता दी ।
बेबीलोन में अपने फर्स्ट टेम्पल के विनाश के बाद यहूदी ईसा के जन्म से कहीं पहले भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर शरण के लिए पहुचे और सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों के अत्याचार से पहले उन्हें कभी भी किसी तरह के धार्मिक उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पड़ा । वहीं मालाबार के तट पर थामस के रूप में ईसाइयत का पूरा स्वागत हुआ । वहां थामस ने अनेक लोगों का धर्मांतरण किया । ऐसा माना जाता है कि इस तरह से, आज के भारतीय ईसाइयों के पूर्वज उस समय ईसाइयत में दीक्षित हो गए थे जब यूरोप में ईसाइयत को कोई जानता भी नहीं था ।
इसी तरह, केरल में इस्लाम तलवार के जोर की बजाय व्यापारियों, समुद्री यात्रियों और धर्म प्रचारकों के माध्यम से दाखिल हुआ और यह बात केरल में भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीनतम मस्जिद, चर्च और यहूदी उपासना गृह की मौजूदगी से साबित होती है । ब्रिटिश इतिहासकार ई़.पी. थामसन के शब्दों में, विरासत की यह विविधता ही भारत को आने वाली दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश बनाती है । दुनिया के सभी संसृत प्रभाव इस समाज में परिलक्षित होते हैं, दुनिया के किसी भी भाग में कोई विचार चाहे वह पश्चिम में हो या पूर्व में जो किसी भारतीय मस्तिष्क में न सक्रिय हो ।
ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय मेधा को विविध शक्तियों ने आकार दिया है । और वे हैं, प्राचीन हिंदू परंपरा, मिथक और ग्रंथ, इस्लाम और ईसाइयत का प्रभाव और दो शताब्दियों का ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन । भले ही कुछ लोग भारत को एक हिंदू देश के रूप में सोचते और समझते हैं पर आज भारतीय सभ्यता एक संकर मिश्रिण है । आज हम कव्वाली, गालिब की शायरी या एक तरह से हमारा राष्ट्रीय खेल बन चुके क्रिकेट के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं कर सकते है । आज जब कोई भारतीय एक औपचारिक कार्यक्रम में राष्ट्रीय पहनावा पहनता है तो वह एक तरह की शेरवानी होती है तो कि भारत में मुस्लिम आक्रमण से पूर्व प्रचलन में नहीं थी । कुछ वर्ष पहले जब भारतीय हिंदुओं ने एक प्रतियोगिता भरे माहौल में आधुनिक दुनिया के सात आश्चर्यों के चुनाव में अपना मत दिया तो उन्होंने अपने धर्म के सर्वाधिक बेहतरीन स्थापत्य के नमूने अंकोरवाट मंदिर की जगह एक मुगल बादशाह के बनवाए एक मकबरे, ताजमहल का चयन किया । एक तरह, इसी सांस्कृतिक विरासत में कहीं भारत की सॉफ्ट पावर अंतर्निहित है ।
भारत का नाम सिंधु नदी ( हालांकि आज कम भारतीय ही इस तथ्य से वाकिफ है वह नदी नहीं नद है और दूसरा नद ब्रह्मपुत्र है) के नाम पर पड़ा जो कि आज पाकिस्तान से होकर बहती है और जैसा कि सर्वविदित है कि पाकिस्तान सन् 1947 में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के अंत के साथ हुए भारत-विभाजन के बाद अस्तित्व में आया । इस तरह, भारतीय राष्ट्रवाद एक दुर्लभ घटना है । यह किसी भाषा (हमारा संविधान 23 भाषाओं को मान्यता देता है जबकि देश में 35 भाषाएं और 22,000 बोलियां हैं ), भूगोल ( उपमहाद्वीप का प्राकृतिक भूगोल जो कि पर्वतों और समुद्र से निर्मित होता है, वह 1947 में देश विभाजन के साथ ही खंडित हो गया ), नस्ल (भारतीय शब्द में विभिन्न नस्लें समाहित हैं ) और धर्म (भारत में दुनिया का हर धर्म जापान का प्राचीन जापानी शिंतों धर्म से लेकर हिंदू धर्म तक पाया जाता है, जिसमें किसी भी तरह के संगठित चर्च का ढांचा नहीं है और न ही कोई हिंदू पोप, हिंदू मक्का अथवा कोई एक पवित्र पुस्तक, समान मान्यताएं, पूजा पद्वति नहीं है) । भारतीय राष्ट्रवाद, एक विचार आधारित राष्ट्रवाद है जो कि एक सनातन भूमि का विचार है। जिसकी उत्पति एक प्राचीन सभ्यता से हुई, जिसे एक समान इतिहास ने एकता में पिरोया और एक बहुलवादी लोकतंत्र ने निरंतरता प्रदान की । भारत के भूगोल ने इसे संभव बनाया और उसकी इतिहास ने इसकी पुष्टि की।
थरूर भारत को एक समृद्व विविधताओं की भूमि मानते हैं, जहां एक साथ कइयों को गले लगाया जा सकता है । यह एक ऐसा विचार है जहां एक राष्ट्र में भले ही जाति, नस्ल, रंग, संस्कृति, खान पान, विश्वास, पहनावे और रिवाज के अंतर के बावजूद एक लोकतांत्रिक सहमति है । यह सर्वानुमति इस साधारण सिद्वांत को लेकर है कि एक लोकतंत्र में आपका सहमत होना आवश्यक नहीं है सिवाय इसके कि आप असहमत कैसे होंगे। दुनिया भर में भारत के सम्मान का एक बड़ा कारण यही है कि वह सभी प्रकार के दबावों और तनाव के बावजूद कायम रहा है (इकबाल के शब्दों में कहें तो कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों से रहा है दुश्मन दौरे जमाना हमारा) जबकि (विस्टन चर्चिल जैसे) कइयों ने उसके अवश्यंभावी विघटन की भविष्यवाणी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । इस तरह भारत ने बिना एकमत हुए भी सहमति बनाते हुए (एकम् सद् बहुधा विप्र वदंति) अपने अस्तित्व को कायम रखा है ।
आज के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में साफ्ट पावर का अर्थ दूसरों पर जीत हासिल करना न होकर स्वयं को पहचानना है । आज किसी भी देश की साॅफ्ट पावर की पहचान उन तत्वों से होती है जो वह जानबूझकर (अपने सांस्कृतिक उत्पादों के माध्यम से, विदेशी जनता को जताकर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपेगंडा करके) या अनजाने (जिस तरह से उसे वैश्विक मास मीडिया में समाचारों के माध्यम से परोसा जाता है) दुनिया के मानस पटल पर उकेरता है ।
भारत विभिन्न तरह से संस्कृति का प्रचार करता है विशेषरूप से बालीवुड, जो कि मुबंई की हिंदी फिल्मों का बहुप्रचलित नाम है, की हिंदी फिल्मों के माध्यम से जो कि अब कहीं अधिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंच रही हैं। सन् 2009 में स्लमडाग मिलिनियर फिल्म को आस्कर पुरस्कार, इस प्रवृत्ति को रेखांकित करने के साथ साथ इसकी पुष्टि भी करता है । आज बालीवुड न केवल अपने तरह का चमकदार मनोरंजन का ब्रांड न केवल अमेरिका और ब्रिटेन के अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध करवा रहा है बल्कि सीरिया से लेकर सेनेगल तक दुनिया के देशों में उसकी उपस्थिति दर्ज हो रही है । आज सेनेगल के डकार से लेकर ओमान तक भाषा से इतर हिंदी फिल्मों की पताका निर्विवाद रूप से फहरा रही है ।
इतना ही नहीं, भारतीय कला, शास्त्रीय संगीत और नृत्य का भी समान प्रभाव है । तो वहीं हाल भारतीय फैशन डिजाइनरों के काम का है जिसके असर से अब दुनिया का शायद ही कोई फैशन स्थल अछूता बचा हो । दुनिया के हर कोने में भारतीय व्यजंन की उपस्थिति विश्व समुदाय के मन में हमारी संस्कृति के लिए सम्मान पैदा कर रही है। संसार के अलग अलग देशों में भारतीय रेस्तारांओं की बढ़ती संख्या कोई कम हैरतअंगेज बात नहीं है । आज दुनिया में भारतीय रेस्तारांओं की वही स्थिति है जो पिछली सदी में अमेरिका में चीन के धुलाईघरों की थी । इंगलैंड में आज भारतीय करी परोसने वाले स्थानों में लोहा, स्टील और पानी के जहाज निर्माण करने वाले उद्योगों से अधिक व्यक्ति कार्यरत हैं ।
हाल के भूमंडलीकरण ने अनेक भारतीयों के मन में यह आशंका पैदा की जो कि निर्मूल साबित हुई कि आर्थिक उदारीकरण अपने साथ एक तरह का सांस्कृतिक साम्राज्यवाद-कि बे वाच और बर्गर भरतनाट्यम और भेलपूरी को बेदखल कर देंगे-लाएगा । जबकि हाल में ही पश्चिमी उपभोक्तावादी उत्पादों के साथ भारत का अनुभव बताता है कि हम बिना कोक के गुलाम हुए कोका कोला पी सकते हैं । अगर महात्मा गांधी के शब्दों में कहे तो हम अपने देश के दरवाजे और खिड़कियों को खोलने और विदेशी हवा के हमारे घरों में बहने के बावजूद किसी भी तरह से कमतर भारतीय नहीं होंगे क्योंकि भारतीय इतने सक्षम है कि इन हवाओं से उनके पैर नहीं उखड़ेगे । हमारी लोकप्रिय संस्कृति एमटीवी और मैकडानल्ड का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम सिद्व हुई है । साथ ही भारतीयता की वास्तविक शक्ति विदेशी प्रभावों को समाहित करने और उसे भारतीय हवा पानी और मिट्टी के अनुकूल परिवर्तित करने में निहित है ।