Friday, January 23, 2015

communists against subhas bose_




दूसरे विश्व युद्ध के पूरे काल में कम्युनिस्ट पार्टी और उसके समर्थक लेखकों की इतिहास दृष्टि कुहासे से भरी और आत्मघाती रही है। युद्ध के पहले ही विचारधारा को ताक पर रख कर स्टालिन ने हिटलर से समझौता किया था। रूस और जापान का समझौता पूरे युद्ध काल में बरकरार रहा था। 
फासिस्ट ताकतों के किए गए इन दोनो समझौतों के खिलाफ कम्युनिस्टों ने उंगली नहीं उठाई सुभाष बोस जब जर्मनी गए, जर्मनी का रूस से समझौता बरकरार था। 
वे जब जापान पहुंचे और आजाद हिंद सरकार के प्रधान हुए, रूस ने न तो जापान न तो कभी सुभाष बोस की सरकार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की।
लेकिन भारत में बैठे, अंग्रेजों की टहलुआ बनी कम्युनिस्ट पार्टी , उसके संगठन प्रलेस और इप्टा ने अपनी ओर से बोस के विरुद्ध चुनिंदा राजनीतिक गालियों के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। 
वे ‘भारत छोडो’ आंदोलन की पीठ में छूरा भोंकते रहे। 
उस समय इस देश के हजारों बेगुनाह लोगों की हत्या, लाखों की यंत्रणा, हजारों की कैद, आगजनी, लूट, महिलाओं के सम्मान पर हमला प्रलेस और इप्टा के जन पक्षधरता के नायकों की इतिहास दृष्टि और लेखकीय संवेदनशीलता से ओझल रह गया।

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