Saturday, March 10, 2018

Old Delhi Havelis of Kuchas_पुरानी दिल्ली के कूचों की हवेलियाँ



हवेली फारसी शब्द है। इसका अर्थ है पृथ्वी का एक टुकड़ा या खुला स्थान जो लश्कर यानी फौज के लिए निश्चित कर दिया गया हो। ऐसी जमीनों की आमदनी से सेना का खर्च चलाया जाता था। समय बीतने के साथ-साथ जमीन के किसी भी विस्तृत खंड को, जिस पर चारदीवारी खिंची हुई हो और कुछ कमरे या कोठरियां बनी हुई हों, लोग हवेली कहने लगे। 

अपने नए अर्थ में हवेली एक आलीशान, लंबी-चौड़ी इमारत को कहते हैं जो एक मंजिल की और कई मंजिलों की हो सकती है। "दिल्ली जो एक शहर है" पुस्तक में महेश्वर दयाल लिखते हैं कि पुरानी दिल्ली में हवेली लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी, सभ्यता और रहन-सहन का एक अभिन्न अंग थी और इसके बिना उस समय के सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

हौज काजी चौक के पास, बाजार सीताराम को काटती हुए एक तंग गली है जो कि कूचा पाती राम कहलाती है। जहां पर अनेक हवेलियां या कोठियां हैं। ये हवेलियां, दिल्ली नगर निगम की विरासत इमारतों के लिए सूचीबद्ध 800 भवनों में शामिल है। 

शाहजहांनाबाद के सुनहले दौर में परकोटे वाले शहर का यह हिस्सा हवेलियों से आबाद था। जहां कुलीन व्यक्तियों के घरों से लेकर नाचने वालियों के कोठे थे। इन कोठों में शहर के अभिजात वर्ग के लिए नाच-गाने और संगीत की बैठकें आयोजित होती थीं।

अधिकतर लखौरी ईंट से बनी इन हवेलियों का खास पहचान सजावटी दरवाजे, भव्य तीखे घुमावदार प्रवेश द्वार, झरोखे और नक्काशीदार बलुआ पत्थर के खंबे थे। इन हवेलियों के सामने वाले भाग को सजाने में रंग और शैली के संदर्भ में विविधता साफ देखी जा सकती है। इन हवेलियों में से एक के मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर एक बेहद नक्काशीदार मोर बना हुआ है, जो शायद मुगल बादशाह शाहजहां के तख़्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन) से प्रभावित प्रतीत होता है।
1915 में लाला कन्हैया लाल ने कूचा पाती राम में पहली हवेली, हवेली राम कुटिया बनाई थी। इस दो मंजिला हवेली के भूतल में बाहर की तरफ निकली दो खिड़कियां और सजावटी बलुआ पत्थर के खंबों वाले तोरण तथा फूलदार नक्काशी हैं। अब एक निजी स्वामित्व वाली इस हवेली के भीतर एक बड़ा आंगन है, जिसके चारों ओर कमरे बने हैं।

हवेली राम कुटिया के ठीक सामने बनी हवेली कूचा पाती राम, जिसके नाम पर ही गली है, का निर्माण बीसवीं सदी के आरंभ में हुआ था। इस दो-मंजिला हवेली के सामने वाले भाग एक सुंदर नक्काशीदार बलुआ पत्थर से बना है, जिसमें बाहर की ओर निकला बलुआ पत्थर का छज्जा, नक्काशीदार स्तंभ, जंगला और दरवाजे हैं। इसकी एक अन्य विशिष्टता दरवाजों पर बनी मानवीय आकृतियां हैं।

कूचा पाती राम में हवेली राम कुटिया के पास 505 नंबर में एक हवेली है। उपरोक्त प्रकार से ही बनी इस हवेली का सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता, हवेली की बाहरी तरफ और भूतल पर व्यापक ढंग से पत्थर पर की गई नक्काशी है। इसी तरह, कूचा पाती राम की 908 नंबर हवेली में, दो मंजिला घर, एक मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना है, जिसमें एक नुकीले मेहराबदार दरवाजे से घुसना पड़ता है। लखौरी ईंट और बलुआ पत्थर से बनी इस हवेली में ऊपरी मंजिल पर ठेठ बलुआ पत्थर से ताके बनी है। इस हवेली का नक्शा भी दूसरी हवेलियों के समान है, जहां एक मुख्य आंगन के चारों ओर कमरे बने होते हैं।

उस दौर में जैन और हिंदू समुदायों ने यहां कई मंदिर भी बनाए थे। 1655-65 में कूचा पाती राम के इमली मोहल्ला में एक मंदिर बना था, जिसका नाम उसके निर्माता कन्नौजी राय के नाम पर ही रखा गया। अब इसके एक निजी निवास का हिस्सा होने के कारण केवल पूर्व अनुमति के साथ ही यहाँ भीतर प्रवेश किया जा सकता है।

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