Sunday, May 6, 2018

History of Delhi Sultanate through coins_सिक्कों के बरअक्स, दिल्ली सल्तनत का इतिहास

05052018 दैनिक जागरण


तराइन में (1192) पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ ही दिल्ली में हिंदू राज का अंत और विदेशी मुस्लिम राज्य की नींव पड़ी। जिसकी पुष्टि मुहम्मद गोरी (जिसे मुहम्मद बिन साम भी कहते हैं) के गाहड़वालों के राज्य (राजधानीःकन्नौज) को जीतकर उनके जैसे ही सोने के सिक्के जारी करने से होती है। 


इन सिक्कों के सामने लक्ष्मी अंकित है तो पीछे नागरी में श्री मुहम्मद बिन साम लिखा हैं। जबकि उसके घुड़सवार-नंदि शैली के सिक्कों के सामने नागरी में श्री मुहम्मद बिन साम और पीछे श्री हमीर शब्द अंकित हैं। हमीर शब्द अरबी के अमीर शब्द का भारतीय अपभ्रंश है। उल्लेखनीय है कि उस समय पश्चिमोत्तर भारत में हिंदू शाही शासकों के घुड़सवार और नंदि की आकृति वाले सिक्के भी प्रचलित थे।
गोरी के प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 में दिल्ली को राजधानी बनाकर गुलाम वंश की नींव रखी। 


"भारतीय सिक्कों का इतिहास" में गुणाकर मुले लिखते हैं कि इन आरंभिक तुर्की सुलतानों ने इस्लामी ढंग के नए सिक्के जारी किए। सैयदों और अफगान लोदियों ने भी उन्हीं का अनुकरण किया। फिर शेरशाह सूरी ने रूपये की जिस मुद्रा-प्रणाली की शुरूआत की वह मुगलकाल, ब्रिटिश शासनकाल और स्वतंत्र भारत में भी जारी रही।

ऐबक के तांबे के केवल कुछ ही सिक्के मिले हैं, जो विशेष महत्व के नहीं है। जबकि इल्तुतमिश (1210-35) ने नई शैली के सिक्के जारी किए। राजस्थान के नागौर से जारी घुड़सवार शैली के सोने के सिक्कों में घुड़सवार के चारों ओर घेरे में कलमा और तिथि दी गई है। सिक्के के सामने वाले हिस्से पर सुल्तान का नाम है। इल्तुतमिश पहला विदेशी मुस्लिम सुल्तान था, जिसने सिक्कों पर टकसाल का नाम देना शुरू किया। उसने प्रचलित हिंदू परंपरा को आधार बनाकर लगभग 100 रत्ती अथवा 175 ग्रेन तौल के चांदी के नए मानक टंक जारी किए। इसके बाद शेरशाह सूरी तक हुए सुल्तानों ने इसी मान के रजत-टंक जारी किए।

उसने अपने को इस्लामी खिलाफत का वफादार साबित करने के इरादे से अपने सिक्कों पर खलीफा का नाम भी खुदवाया। इल्तुतमिश के दौर में दिल्ली सल्तनत के मध्य एशिया से बने संबंध के कारण वहां से चांदी आयात होती थी। इल्तुतमिश ने इसी चांदी से मानक रजत-मुद्राएं तैयार करवाई और मिश्रित धातु (चांदी-तांबा) के तीन प्रकार के सिक्के जारी किए।

इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान के समय (1236-40) में दिल्ली और लखनौती (गौड़, बंगाल) के टकसाल-घरों में चांदी के सिक्के जारी किए। पर हैरानी की बात यह है इन सिक्कों पर रजिया का नाम न होकर उसके बाप का नाम है। जो कि तख्त पर एक महिला के होने के बावजूद उसकी हुकूमत को न मानने सरीखा ही है। वैसे रजिया ने लखनौती में नया टकसाल-घर खोला। उसके समय में बृषभ-घुड़सवार प्रकार के जीतल बनते रहे।

गयासुद्दीन बलबन (1266-87) ने सोना, चांदी-तांबा और तांबे के सिक्के चलाए। उसने बृषभ-घुड़सवार आकृति वाले सिक्के बंद करवा दिए। बलबन के चांदी-तांबे के मिश्र धातु के जारी नए सिक्के के सामने घेरे के भीतर अरबी में उसका नाम बलबन है और घेरे के बाहर नागरी में मुद्रालेख है-स्त्री सुलतां गधासदीं।

खिलजी वंश के आरंभिक दो सुलतानों (जलालुुद्दीन फीरोज और रूकुुद्दीन इब्राहीम) ने सिक्कों के मामले में बलबन की ही नकल की। जबकि अलाउद्दीन खिलजी (1296-16) ने हजरत देहली की टकसाल में तैयार करवाए सोने और चांदी के अपने टंकों पर सिकंदर अल्-सानी (दूसरा सिकंदर) जैसी भव्य पदवियां अंकित करवाई। उसने अपने सिक्कों पर से बगदाद के खलीफा का नाम हटा दिया और उसके स्थान पर लेख अंकित कराया-यमीन।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51) के समय के सिक्के मुद्राशास्त्र के हिसाब से बड़े महत्व के हैं। उसने सोने और चांदी के सिक्कों के तौल बदलने का प्रयोग किया। पहले ये सिक्के 11 ग्राम के थे। मुहम्मद तुगलक ने सोने के ये सिक्के तौल बढ़ाकर लगभग 13 ग्राम और चांदी के सिक्के को घटाकर 9 ग्राम कर दिया। मगर उसका यह प्रयोग असफल रहा और उसे पहले के तौल-मान पर लौटना पड़ा।
बहलोल लोदी (1451-89) ने चांदी-तांबे की मिश्रधातु के 80 रत्ती तौल के जो टंक चलाए वे बहलोली के नाम से मशहूर हुए। लोदी सुलतानों-बहलोल, सिकंदर और इब्राहीम-के सिक्कों पर खलीफा का नाम, सुलतान का नाम, टकसाल घर (दिल्ली) का नाम और तिथि अंकित है।

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