राजधानी में सरकारी बाबूओं की सबसे बड़ी रिहाइशी काॅलोनी रामकृष्ण पुरम के सेक्टर पांच के बीच पुरातत्व महत्व की बेहद महत्वपूर्ण इमारतों के बीच बनी एक बावड़ी देखी जा सकती है। ऐतिहासिक सरकारी दस्तावेज इसे वजीरपुर की बावड़ी कहते हैं।
"द वेनिशिंग स्टैपवेल्स आॅफ इंडिया" पुस्तक में विक्टोरिया लॉटमैन के अनुसार, वजीरपुर स्मारक परिसर के मध्य में एक बावड़ी होना, उसे खास बनाता है। दिल्ली की दूसरी बावड़ियों की तुलना में, इस दो मंजिला बावड़ी की भव्यता से अधिक उसकी उपस्थिति हैरतअंगेज है। जबकि वजीरपुर का भूदृश्य उसके आकर्षक बनाता है। अनेक बावड़ियों की तरह, वजीरपुर बावड़ी के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। माना जाता है कि इन मकबरों के निर्माण के समय, 1451-1526 के बीच, में ही यह बनी। इस अवधि में दिल्ली सल्तनत पर लोदी वंश का शासन था। ये स्मारक समूह तत्कालीन दौर की शहरी बसावट से कुछ दूरी पर बनाए गए थे। शहरीकरण और नई दिल्ली के विस्तार के परिणामस्वरूप इनकी मूल बसावट की अवस्थिति में परिवर्तन हुआ।
इंटैक की दिल्ली शाखा की ओर से प्रकाशित दो खंड वाली पुस्तक "दिल्लीःद बिल्ट हैरिटेज ए लिस्टिंग" में दिए गए विवरण के अनुसार, बावड़ी की उपस्थिति से संकेत मिलता है कि लोदी काल में इस क्षेत्र में सघन आबादी थी। वही, "नीली दिल्ली, प्यासी दिल्ली" पुस्तक में आदित्य अवस्थी एक विचारणीय प्रश्न करते हैं कि अब यह पता नहीं चलता कि इस इलाके का नाम किस वजीर के नाम पर वजीरपुर पड़ा था। उत्तरी दिल्ली में वजीरपुर नाम का एक इलाका आज भी है। क्या इन दोनों वजीरपुरों में कभी कोई संबंध रहा? इसका पता नहीं चला।
आज की दक्षिणी दिल्ली के मुनीरका गांव के तहत आने वाली इस जमीन पर बनी होने के कारण इसे मुनीरका की बावड़ी भी कहा जाता है। यह बावड़ी अफगान शासकों के कार्यकाल के दौरान बनाई गई मानी जाती है। इसे चूने व पत्थरों से बनाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार यह स्थान मुनीरका का भाग था, जो कि उस समय आर के पुरम से दूरी पर था।
30 मीटर लंबी और 11.6 मीटर चौड़ी नाप वाली इस बावड़ी के दक्षिण छोर पर एक कुआं है। 14 फीट की गोलाई वाले कुएं पर गोलाकार छतरियां बनी हुई हैं, जिसमें बावड़ी तक नीचे उतरने के लिए घुमावदार सीढ़ियां बनी हुई हैं। वैसे देखा जाए तो शेष संरचना लाल किला की बावड़ी, अग्रसेन बावड़ी और राजो की बावड़ी की तुलना में साधारण है। इन छतरियों के शीर्ष से गोलाकार बावड़ी का तल तक साफ नजर आता है।
लोदी वंश के शासकों ने दिल्ली पर करीब 75 साल तक राज्य किया। उनकी बनवाई इमारतों की पहचान मुख्य रूप से गुंबदों से की जा सकती है। उस समय दिल्ली में बनाई गई दर्जनों इमारतें आज भी नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में दिखाई देती हैं।
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