Saturday, November 10, 2018

Delhi Famine in Tuglagh Era_तुगलककालीन दिल्ली का अकाल

10/11/2018, दैनिक जागरण 








दिल्ली का मध्यकालीन बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक (1324-51) अपने अनेक प्रयोगधर्मी निर्णयों के कारण चर्चित रहा। उसके व्यक्तित्व की जल्दबाजी और बेसब्री की प्रवृति के कारण उसे "बुद्धिमान मूर्ख राजा" कहा जाता था। अंग्रेज इतिहासकार एम. एम्फिस्टन के अनुसार मुहम्म्द बिन तुगलक में पागलपन का कुछ अंश था जबकि आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव के अनुसार उसमें "विरोधी तत्वों का मिश्रण" था।

उल्लेखनीय है कि मुहम्मद तुगलक के समय दिल्ली में (सन् 1344) भयंकर अकाल पड़ा था। 1912 के "दिल्ली डिस्ट्रिक्ट गजेटियर" के अनुसार, दिल्ली में अकाल का इतिहास मुहम्मद तुगलक के समय तक पहुंचता है जिसकी फिजूलखर्ची के कारण 1344 ईस्वी का अकाल पड़ा, जिसमें, कहा जाता है कि मनुष्यों ने एक दूसरे को खाया। 

इब्नबतूता की भारत यात्रा या चौहदवीं शताब्दी का भारत पुस्तक के अनुसार, भारत वर्ष और सिंधु प्रांत में दुर्भिश पड़ने के कारण जब एक मन गेहूं छह दीनार में बिकने लगे। फ़रिश्ता तथा बदाऊंनी के अनुसार हिजरी सन् 742 में सैयद अहमदशाह गवर्नर (माअवर-कनार्टक) का विद्रोह शांत करने के लिए, बादशाह के दक्षिण ओर कुछ एक पड़ाव पर पहुँचते ही यह  दुर्भिश प्रारंभ हो गया था। बादशाह के दक्षिण से लौटते समय तक जनता इस कराल-अकाल के चंगुल में जकड़ी हुई थी। उल्लेखनीय है कि उत्तरी अफ्रीका का निवासी इब्न-बतूता चौहदवीं सदी में भारत आया और आठ वर्षों तक मुहम्मद तुगलक के दरबार में रहा। तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया और अपना दूत बनाकर चीन भेजा।

तुगलक के शासनकाल के आरंभ में ही गंगा के दोआब में एक गंभीर किसान विद्रोह हो चुका था। किसान गांवों से भाग खड़े हुए थे तथा तुगलक ने उनको पकड़कर सजा देने के लिए कठोर कदम उठाए थे। गौरतलब है कि दिल्ली के तख्त पर बैठने के कुछ दिन बाद तुगलक ने दोआब क्षेत्र में भू राजस्व कर में वृद्वि की। इतिहासकार बरनी के अनुसार बढ़ा हुआ कर, प्रचलित करों का दस तथा बीस गुना था। किसानों की भूमि कर के अतिरिक्त घरी, अर्थात गृहकर तथा चरही अर्थात चरागाह कर भी लगाया गया। प्रजा को इन करों से बड़ा कष्ट हुआ। 

दुर्भाग्य से इन्हीं दिनों अकाल पड़ा और चारों ओर विद्रोह की अग्नि भड़क उठी। शाही सेनाओं ने विद्रोहियों को कठोर दंड दिए। इस पर लोग खेती छोड़कर जंगलों में भाग गए। खेत वीरान हो गए और गांवों में सन्नाटा छा गया। शाही सेना ने लोगों को जंगलों से पकड़कर उन्हें कठोर यातनाएं दीं। इन यातनाओं से बहुत से लोग मर गए। यह मुहम्मद की अंतिम असफल योजना थी। तुगलक के बारे में इब्नेबतूता ने लिखा कि उसके दो प्रिय शौक थे, खुशफहमी में उपहार देना और क्रोध में खून बहाना। 

जाॅन डाउसन की पुस्तक "हिस्ट्री आॅफ इंडिया बाॅएं इट्स ओन हिस्टोरियंस" के अनुसार, माना जाता है कि कम या अधिक समूचा हिंदुस्तान (1344-45 का भारत) अकाल की चपेट में था, खासकर दक्कन में उसकी मार ज्यादा तकलीफदेह थी। 

"मध्यकालीन भारत" पुस्तक के लेखक-इतिहासकार सतीशचन्द्र के अनुसार, एक भयानक अकाल ने, जिसने इस क्षेत्र को छह वर्षों तक तबाह रखा, स्थिति को और बिगाड़ा। दिल्ली में इतने लोग मरे कि हवा भी महामारक हो उठी। यहां तक कि सुल्तान दिल्ली छोड़कर करीब 1337-40 तक स्वर्गद्वारी नामक शिविर में रहा जो दिल्ली से 100 मील दूर कन्नौज के पास गंगा के किनारे स्थित था।


No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...