Saturday, November 3, 2018

Reality of Lakshmi gold coin of muhammad ghori_मोहम्मद गोरी के लक्ष्मी के सिक्के का सच

दैनिक जागरण, ३ नवम्बर २०१८



भारतीय साहित्य के इतिहास में सिक्कों का एक विशेष स्थान है। इनके द्वारा ही भारतीय इतिहास की अनेकों कड़ियों को जोड़ने में पुरातत्ववेता सफल हुए हैं। यह सिक्के अन्य प्रयोजनों के अतिरिक्त, प्राचीन भारतीयों की उपासना की परम्परा को भी समुचित रूप में दर्शाते हैं।


दिल्ली में विदेशी मुस्लिम शासनकाल तराइन की दूसरी लड़ाई (1192) में अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार और अफगान हमलावर मोहम्मद गोरी की जीत के साथ शुरू हुआ। गोरी के निसंतान होने के कारण दिल्ली में राज की जिम्मेदारी गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने संभाली।


उल्लेखनीय है कि सिक्का, फरमान और खुतबा (सिक्के, आदेश और प्रार्थना घोषणा) मध्ययुगीन मुस्लिम काल के ऐतिहासिक शोध की दृष्टि से साक्ष्य के आरंभिक बिंदु हैं। अगर इस हिसाब से देखें तो बात ध्यान आती है कि दिल्ली में गोरी काल के सिक्कों पर पृथ्वीराज के शासन वाले हिंदू देवी-देवताओं के प्रतीक चिन्हों और देवनागरी को यथावत रखा। गोरी ने दिल्ली में पाँव जमने तक पृथ्वीराज चौहान के समय में प्रचलित प्रशासकीय मान्यताओं में विशेष परिवर्तन नहीं किया। यही कारण है कि हिंदू सिक्कों में प्रचलित चित्र अंकन परंपरा के अनुरूप, इन सिक्कों में लक्ष्मी और वृषभ-घुड़सवार अंकित थे।

उदाहरण के लिए कुछ सिक्कों के चित में वृषभ और पट में घुड़सवार का अंकन है और पृथ्वी देव के स्थान पर मोहम्मद बिन साम का नाम उकेर दिया गया है। कुछ अन्य सिक्कों पर चित देवनागरी लिपि में चारों ओर ‘श्री हम्मीर’, ‘श्री महमूद साम’ तथा पट पर नन्दी की मूर्ति अंकित है। हम्मीर शब्द का अर्थ 'अमीर' है।

गौरतलब है कि शुरुआत में, अफगान विजेता ने एक तरफ लक्ष्मी और दूसरी तरफ नागरी लिपि में अपने नाम के साथ सोने के सिक्के जारी किए। गोरी का एक सिक्का ऐसा ही सिक्का, जिसके चित में बैठी हुई लक्ष्मी का अंकन है तो पट में देवनागरी में मुहम्मद बिन साम उत्कीर्ण है, दिल्ली में भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित है। इस सिक्के का वजन 4.2 ग्राम है।
गोरी ने हिन्दू जनता को नई मुद्रा के चलन को स्वीकार न करने के “रणनीतिक उपाय” के रूप में हिन्दू शासकों,चौहान और तोमर वंशों, के सिक्कों के प्रचलन को जारी रखा। उस समय भी हिन्दी भाषा, जनता की भाषा थी और गोरी अपने शासन की सफलता के लिये भाषा का आश्रय लेना चाहता था। वह हिन्दू जनता को यह भरोसा दिलाना चाहता था कि यह केवल व्यवस्था का स्थानान्तरण मात्र है।

गोरी ने दूसरे चरण में, थोड़े समय के लिए एक तरफ अरबी अक्षर और दूसरी पर नागरी लिपि वाले सिक्के और अंत में दोनों तरफ अरबी अक्षरों वाले सिक्के जारी किए। इस तरह, दिल्ली में विदेशी मुस्लिम शासन की जड़े मजबूत होने के साथ ही सुलेख वाली कुफिक शैली में अरबी भाषा वाले सिक्कों से हिंदू जनता को बता दिया गया कि मोहम्मद गोरी नया हुक्मरान है, जिसका महजब इस्लाम है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दिल्ली की महरौली में लाल कोट (या किला राय पिथौरा) के खंडहरों की दो बार खुदाई की थी। पहली बार, 1991-92 में और दूसरी बार 1994-95 में। यहां मिले 287 मध्यकालीन सिक्कों के ऐतिहासिक महत्व के अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार, इस खुदाई के दौरान जमीन की विभिन्न परतों में चौहान और तोमर शासकों, मामलुक (13 वीं शताब्दी), और खिलजी (1290-1320) और तुगलक (14 वीं शताब्दी) सुल्तानों के समय के सिक्के पाए गए। यह अध्ययन भी इस बात को स्वीकारता है कि नए (विदेशी मुस्लिम) शासकों ने पूर्व प्रचलित सिक्कों का चलन बनाए रखा।







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