Saturday, October 27, 2018

City of Gates_Delhi_दरवाजों वाला शहर दिल्ली



मशहूर है, दिल्ली 17 बार बसी है। हिंदू काल की तीन दिल्ली, मुस्लिम काल की बारह दिल्ली और ब्रिटिशकाल की दो दिल्ली। जितनी बार दिल्ली बसाई गई उतनी ही बार-केवल ब्रिटिशकाल को छोड़कर-इसमें परकोटे या फसीलें बनाई गई।


इन फसीलों में बनाए गए दरवाजों की भी संख्या कम नहीं रही।

प्राचीनकाल में राजधानी की सुरक्षा के लिए सामरिक दृष्टि से फसील के भीतर मजबूत दरवाजे बनाए जाते थे, जिनका प्रवेश  मार्ग प्रायः अंग्रेजी के 'एस' अक्षर की तरह घुमावदार होता था। दिल्ली के बहुत से दरवाजे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिद्ध थे, पुनर्निर्माण और विकास की योजनाओं के तहत तोड़े जा चुके हैं।

जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में उनकी पहल पर ही आसफअली रोड के किनारे-किनारे बनी फसील का कुछ हिस्सा तोड़ने से बच गया। इसी तरह, तुर्कमान दरवाजा न केवल ध्वस्त होने से रह गया, वरन उसका जीर्णाेद्वार भी कर दिया गया।

दिल्ली के सबसे पुराने दरवाजों में, शहर के बाहर 1193 पूर्व के काल में बनाया गया निगमबोध दरवाजा है। इस दरवाजे को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने यमुना तट को सुन्दर बनाने की योजना के अन्तर्गत जीर्णाेद्वार कर पत्थरों से बनवाया। इस पर गीता के द्वितीय श्लोक भी उत्कीर्ण किए गए जो आत्मा की अमरता को सिद्व करते हैं।

दिल्ली का अंतिम हिंदू राज-परिवार रायपिथौरा का था। इसे ही पृथ्वीराज कहते थे। पृथ्वीराज चैहान ने 1180 से 1186 के बीच रायपिथौरा का किला बनवाया। रायपिथौरा की दिल्ली के बारह दरवाजे थे, लेकिन तैमूरलंग ने अपनी आत्मकथा में इनकी संख्या दस बताई है। इनमें से कुछ बाहर की तरफ खुलते थे और कुछ भीतर की तरफ। इन दरवाजों को अब समय की लहर ने छिन्न-भिन्न कर दिया है।

यजदी के "जफरनामे" में 18 दरवाजों का जिक्र है। इनमें से कुछ दरवाजों के नाम इस प्रकार थे-दरवाजा हौजरानी, बुरका दरवाजा, गजनी दरवाजा (इसका नाम राय पिथौरा के समय में रंजीत दरवाजा था), मौअज्जी दरवाजा,  मंडारकुल दरवाजा, बदायूं दरवाजा, दरवाजा हौजखास, दरवाजा बगदादी, बाकी दो दरवाजों के नाम प्रायः नहीं मिलते। ये सभी दरवाजे वर्तमान महरौली क्षेत्र में थे।

महरौली से तुगलकाबाद की ओर जाने वाले मार्ग पर लाडो सराय से दक्षिण हुमायूं दरवाजा था।

गजनी दरवाजा या रंजीत दरवाजा 17 फुट चौड़ा था। इसमें दरवाजा उठाने या गिराने के लिए सात फुट ऊंचा पत्थर का खम्भा था, जो आज भी मौजूद है।

रायपिथौरा के किले की फसील का जो हिस्सा फतेहबुर्ज पर खत्म होता था, उसी से यह दरवाजा है। फतेहबुर्ज और सोहनबुर्ज के बीच में एक दरवाजा था जिसका अब कोई चिन्ह नहीं है। इसी क्षेत्र में अनंगपाल (हिंदूकाल की दूसरी दिल्ली बसाने वाला राजा) ताल के पास ही भिंड दरवाजा था और यहीं से थोड़े फासले पर फसील उधम खां के मकबरे पर समाप्त होती थी।

मुस्लिम और पठान काल की दिल्ली के जो दरवाजे मशहूर रहे, उनमें अलाई दरवाजा (1310), हुमायूँ दरवाजा, गजनी दरवाजा, बगदाद दरवाजा (सीरी महल और हौजखास के बीच), जेल दरवाजा, दिल्ली दरवाजा (षाहजहां-काल 1636-48 के बीच निर्मित), अजमेरी दरवाजा, लाहौरी दरवाजा, काबुली दरवाजा (जो वर्तमान नया बाजार के छोर पर तीस हजारी की तरफ था), सलीम दरवाजा (1622), खिजरी दरवाजा (कुतुब के पास अलाउदीन खिलजी द्वारा निर्मित), तुर्कमान दरवाजा, मोरी दरवाजा (डफरिन पुल के आगे जहां आज निकोलसन रोड के पास फसील टूट हुई है) मशहूर है।


चांदनी चौक में वर्तमान दरीबा कलां बाजार का प्रवेश द्वार किसी समय में खूनी दरवाजा नाम से मशहूर था। यहीं तैमूरलंग के समय में और बाद में ब्रिटिश शासन के आंरभिक काल में कई देश भक्तों का कत्ल हुआ।

इसी तरह दिल्ली दरवाजे से बाहर बने जेल दरवाजे (खूनी दरवाजे) पर भी अब्दुल रहीम खान खाना के बेटों के सिर काटकर लटकाए गए थे। एक दिल्ली दरवाजा, शेरशाही का दरवाजा भी कहलाता था। इसका निर्माण 1541 के आसपास हुआ था।

लालकिले से जामा मस्जिद की ओर खुलने वाले दरवाजे का नाम भी शाहजहां ने दिल्ली दरवाजा रखा था। चांदनी चौक की तरफ खुलने वाले दरवाजे का नाम था-लाहौरी दरवाजा। ये दोनों नाम अभी तक प्रचलित हैं।

कश्मीरी दरवाजे से शुरू करें तो इन दरवाजों की स्थिति इस प्रकार थी मोरी दरवाजा (1867 में तोड़ दिया गया), काबुली दरवाजा (तोड़ दिया गया), लाहौरी दरवाजा, अजमेरी दरवाजा, तुर्कमान दरवाजा, दिल्ली दरवाजा, खैराती दरवाजा (वर्तमान अंसरी रोड पर घटा मस्जिद के साथ था), राजघाट दरवाजा (वर्तमान नई कोतवाली के समीप था), कलकत्ती दरवाजा (जहां आज किले के पूर्वी छोर की तरफ रेलवे लाइन के नीचे दो सुरंग मार्ग जैसे रह गए हैं), केलाघाट दरवाजा  (उत्तर पश्चिम में यमुना के पास था-तोड़ दिया गया), निगमबोध दरवाजा, पत्थर घाटी दरवाजा (तोड़ दिया गया) और बदर रौ दरवाजा।

आज की बदली हुई परिस्थितियों और सुरक्षा व्यवस्था में न तो परकोटा-फसीलों का स्थान रह गया है, न ही दरवाजों का। बहरहाल, दिल्ली के पुराने इतिहास को इन दरवाजों की सहायता से मुखर अवश्य किया जा सकता है।



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