Sunday, December 23, 2018

Saint James Church_Delhi_दिल्ली का सेंट जेम्स चर्च

22122018_Dainik Jagran




1826 में किराए पर लड़ने वाले एक अंग्रेज सैनिक जेम्स स्किनर ने प्रोटेस्टेंट मत को मानने वाले ईसाइयों के लिए पहली बार पुरानी दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास सेंट जेम्स गिरजाघर बनवाया था। स्किनर पहले ग्वालियर महाराजा की चाकरी में था। जब महाराजा ग्वालियर अंग्रेजों से लड़ने के लिए तैयार हुए तो इसने उनकी नौकरी छोड़ दी और ईस्ट इंडिया कंपनी की मुलाजमत कर ली।


सेंट जेम्स चर्च के निर्माण के लिए नवाब अली मर्दन खान की 17 वीं शताब्दी की हवेली की जद वाली जमीन तय हुई। यह गिरजाघर 1826 से 1836 तक दस वर्ष नब्बे हजार की लागत में बन कर तैयार हुआ। यह इमारत बहुत सुंदर बनी हुई है। गुम्बद कमरखी है। उस पर सुनहरी सलीब लगी हुई है। कमरों में संगमरमर का फर्श है।

1857 की आजादी की पहली लड़ाई में यह जंग का मैदान भी रहा। तब हुई लड़ाई में गोलाबारी से गिरजाघर के गुम्बद को नुकसान पहुंचा था और वह गिर गया था। 1865 में उसे ठीक करवाया गया। तब गिरजा पर एक तांबे का गोला लगा हुआ था, जो 1883 में उतारकर नीचे रख दिया गया। यह एक चबूतरे पर रखा हुआ है।

यह गिरजाघर लाल किले के उत्तर और कश्मीरी गेट के दक्षिण के मध्य में अंग्रेजों की बसावट वाले गलियारे के ठीक बीच में बना था। महत्वपूर्ण बात यह है कि 1911 में जब अंग्रेज भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली घोषित हुई तब यह भारत में अंग्रेज सरकार का आधिकारिक गिरजाघर था। जबकि नई दिल्ली के निर्माण के बाद 1931 में चर्च ऑफ रिडेमशन को यह दर्जा मिला। यह स्थान लालकिले के उत्तर वाले क्षेत्र का हिस्सा था जिसे अंग्रेजों ने अपने उपयोग के लिए चिन्हित किया था। तब यह स्थान अंग्रेजों के गलियारे के केन्द्र में स्थित था, जिसके पास सड़क का एक घेरा था। उसके पड़ोस में महत्वपूर्ण अंग्रेज प्रतिष्ठान थे, जैसे पश्चिम दिशा में स्किनर की जागीर-उत्तर दिशा में कर्नल फॉस्टर का घर और दक्षिण में अंग्रेज रेसिडेंसी बनी हुई थी।

यह गिरजाघर दिल्ली में अंग्रेज आबादी की धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ सांकेतिक रूप से दिल्ली के शहरी भूदृश्य में अंग्रेजों की पहचान का भी प्रतीक था। एक तरह से मस्जिदों के गुंबदों और मीनारों की बहुलता वाले शहरी परिदृश्य में सेंट जेम्स गिरजाघर का गुंबद एक प्रमुख तत्व के रूप में उभरकर सामने आया।

एक तरह से, यह गिरजाघर न केवल भारतीयों बल्कि यूरोपीय नागरिकों के लिए भी एक सहज जिज्ञासा का केन्द्र था। इसका कारण यह था कि यह गिरजाघर भारतीय उपमहाद्वीप में बने अधिकतर जेम्स गिब्ब के सेंट मार्टिन-इन-द-फील्ड्स के डिजाइन पर आधारित नहीं था। यह गिरजाघर एक व्यक्ति की पहल का परिणाम था। कुछ लोग इसके डिजाइन का श्रेय स्किनर को तो कुछ कर्नल रॉबर्ट स्मिथ और बंगाल इंजीनियर के कैप्टन डी बुडे को देते हैं।

इस स्थान पर गिरजाघर परिसर के साथ एक दीवार का परकोटा भी था। एक बगीचे के रूप में विकसित इस स्थान में एक कब्रिस्तान भी था। जहां विलियम फ्रेजर की कब्र है, जो 1835 में कत्ल हुआ था। गिरजे के उत्तर-पूर्वी कोने में थॉमस मेटकॉफ की कब्र है। वह आजादी की पहली लड़ाई के समय में मजिस्ट्रेट था। इसी ने मेटकॉफ हॉउस बनवाया था। इसके अलावा स्किनर खानदान वालों की कई कब्रें इस गिरजे के चारदीवारी में बनी हुई है।

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