Hyderabad Police Action_Operation Polo_September 17_1948_हैदराबाद का सैनिक अभियान पोलो_17 सितंबर 1948
Rajasthan Patrika, 17/09/2020
वर्ष 1971 में पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के ढाका में भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण की घटना आधुनिक भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर है।
आज से 72 बरस पहले, 17 सितंबर 1948 को भी हैदराबाद में आत्मसमर्पण की एक ऐसी ही घटना हुई थी। जहां हैदराबाद रियासत के सैनिक कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अहमद एल एडरूज ने भारतीय थल सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जयंतो नाथ चौधरी के सामने सिकंदराबाद में अपने हथियार डाले थे। इस तरह, हैदराबाद का भारतीय संघ में एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इस सैन्य कार्रवाई का आधार हैदराबाद में उत्पन्न नकारात्मक परिस्थितियां थीं, जिसके मूल में निजाम मीर उस्मान अली खान की स्वतंत्र शासक बनने की इच्छा थी। इसी कारण निजाम 15 अगस्त, 1947 के बाद से हैदराबाद के भारतीय संघ में विलय को येन-प्रकारेण टालता रहा। जबकि दूसरी तरफ, उसने पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र से संपर्क करके एक स्वतंत्र मुस्लिम राज्य के रूप में हैदराबाद की स्थापना के प्रयास किए। वह भी तब जब हैदराबाद राज्य की 85 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी।
भारतीय सेना के हैदराबाद पुलिस एक्शन का कूट नाम आपरेशन पोलो था। यह नाम उस समय देश में सर्वाधिक पोलो मैदान, हैदराबाद-सिकन्दराबाद में होने के कारण रखा गया था। इस सैन्य अभियान 13 सितंबर सुबह चार बजे से लेकर 17 सितंबर 1948 को शाम पांच बजे तक करीब साढ़े चार दिनों तक चला। भारतीय सेना की इस कार्रवाई में 42 सैनिक शहीद हुए और 97 घायल हुए। जबकि निजाम की सेना के 490 सैनिक मारे गए, 122 घायल हुए, वही 2727 रजाकार मारे गए, 102 घायल हुए और 3364 को धर पकड़ा गया।
तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल ने हैदराबाद में सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता पर संविधान सभा में कहा था कि "हैदराबाद में ऐसी ताकतें काम कर रही हैं जिन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया है कि हैदराबाद और भारतीय संघ के बीच कोई समझौता न होने दिया जाय। रजाकारों द्वारा चलाये जाने वाले हिंसा के इस उत्तेजक आन्दोलन में राज्य के भीतर 71 गांवों पर हमले किये गये हैं, 140 आक्रमण हमारे भूभाग पर किये गये हैं, 325 आदमी मारे गये हैं, 12 रेलगाड़ियों पर हमले हुए हैं तथा डेढ़ करोड़ की सम्पति लूटी गई है। हम ऐसे अत्याचारों और नृशंस कृत्यों को बिना किसी रोकटोक के जारी नहीं रहने दे सकते।"
उल्लेखनीय है कि हैदराबाद में वर्ष 1926 में बना मजलिस-इ-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन एक धर्मान्ध मुस्लिम संगठन था। इसके नेता कासिम रिजवी रजाकारों का सैन्य दल बनाकर निजाम के समर्थन में मुसलमानों को एक करने और हिन्दुओं के धार्मिक उत्पीड़न में सक्रिय था।
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