Monday, May 28, 2012

Vodafone (so called) goof-up in IPL promotional SMS

बस जीवन ही फिक्स नहीं है बाकी सब फेवीकोल का जोड़ हो गया है । नौकरी से लेकर छोकरी तक, आइपीएल से लेकर स्कूल एडमिशन तक ।
(वोडाफोन के चेन्नई-कलकत्ता के बीच एंडवास में ही फाइनल मैच का एसएमएस चलाने पर दी गई सफाई पर । काश मंहगाई कम होने के लिए भी कोई एसएमएस आता)

Sunday, May 27, 2012

Glittering Delhi: New Delhi in Love and War


ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली भारतीय मूल की लेखक नयनतारा पोथन ने इस किताब में सन् 1931 से 1952 के कालखंड में राजधानी के सामाजिक जीवन का लेखाजोखा प्रस्तुत किया है


नयनतारा पोथन .. 



कुछ इस तरह भी बदली दिल्ली
अंगरेजों ने नई साम्राज्यवादी राजधानी नई दिल्ली की स्थापना के लिए पुरानी दिल्ली के उत्तरी भाग, जहां 12 दिसंबर, 1911 को किंग जॉर्ज पंचम ने एक भव्य दरबार में सभी भारतीय राजाओं और शासकों को आमंत्रित कर राष्ट्रीय राजधानी को कलकत्ता से यहां पर स्थानांतरित करने की घोषणा की थी, की तुलना में एक अलग स्थान को वरीयता दी। इस तरह, शाहजहांनाबाद के दक्षिण में एक स्थान का चयन केवल आकस्मिक नहीं था। राजधानी के उत्तरी हिस्से को इस आधार पर अस्वीकृत किया गया कि वह स्थान बहुत तंग होने के साथ-साथ पिछले शासकों की स्मृति के साथ गहरे से जुड़ा था और यहां अनेक विद्रोही तत्व भी उपस्थित थे। जबकि इसके विपरीत स्मारकों और शाही भव्यता के अन्य चिह्नों से घिरा हुआ नया चयनित स्थान एक साम्राज्यवादी शक्ति के लिए पूरी तरह उपयुक्त था, क्योंकि यह प्रजा में निष्ठा पैदा करने और उनमें असंतोष को न्यूनतम करने के अनुरूप था।

ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली भारतीय मूल की लेखक और शोधकर्ता नयनतारा पोथन ने पेंगुइन, इंडिया से प्रकाशित अपनी पहली किताब 'न्यू दिल्ली इन लव एंड वारः ग्लिटरिंग डिकेड्स ' में इस तथ्य का खुलासा करते हुए इस बात को रेखांकित किया है कि किस तरह नस्लीय और सामाजिक-राजनीतिक पदानुक्रम को शहर के वास्तुशिल्प डिजाइन के अनुरूप ढाला गया था और किस तरह इस पदानुक्रम को आवासीय भूखंडों के वितरण में बनाए रखा गया था। इस पुस्तक के लिए नई दिल्ली के एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के सदस्यों के संस्मरण, प्रकाशित डायरियां, पत्र और साक्षात्कार की पांडुलिपियों का उपयोग करने वाली नयनतारा कहती हैं कि 19वीं सदी और 20वीं सदी के आरंभ से 1930 की शुरुआत तक की दिल्ली में जीवन शैली पदानुक्रमित थी। भारतीयों और अंगरेजों के बीच संबंधों में अलगाव था।

डिनर जैकेट, सफेद टाई और टेल
वारंट ऑफ प्रीसिडेंस एक कठोर औपनिवेशिक प्रोटोकॉल का जीता जागता उदाहरण था, जो कि भारतीय सिविल सेवा और सेना के सदस्यों की सामाजिक स्थिति को परिभाषित करता था। यह न केवल इस बात को तय करता था कि किसी रात्रिकालीन भोज आयोजन में, किसको कहां बैठना है, बल्कि यह भी निश्चित करता था कि किसे आमंत्रित किया जाएगा, क्योंकि एक निश्चित रैंक के ऊपर या नीचे वाला अफसर खुद न तो किसी को रात्रिकालीन भोज पर बुला सकता था और न ही कोई उसे उसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित कर सकता था। दूसरे शब्दों में, यह न केवल अंतरजातीय, बल्कि अंतर नस्लीय अलगाव का भी एक स्रोत था। इसने आधिकारिक सामाजिक जीवन के हर पक्ष, आवास प्राप्त करने की पात्रता से लेकर किसी रात्रिकालीन भोज में सीटों की पात्रता तक, को गहरे से प्रभावित किया।

नई राजधानी के सामाजिक क्षेत्र में यूरोपीयों और भारतीयों के आपस में घुलने-मिलने पर प्रकाश डालते हुए नयनतारा बताती हैं कि साम्राज्यवादी राजधानी को जानबूझकर इस तरह बनाया गया कि साम्राज्यवादी शासन परिलक्षित भी हो। इस तरह, सरकारी समाज और शहर में स्थान बनाने में सफल रहे, देसी आबादी के सदस्यों, जैसे नौकरशाही में एक स्तर तक के कुछ भारतीय नौकरशाह, वायसराय की कार्यकारी परिषद के भारतीय सदस्य, भारतीय राजकुमार और कुछ भारतीय व्यापारियों से उनके यूरोपीय समकक्षों के अनुरूप समान सामाजिक व्यवहार के स्तर को अपनाने और बढ़ावा देने की अपेक्षा थी।

वह लिखती हैं कि ऐसी रात्रिभोज पार्टियों के उदाहरण हैं, जिनमें केवल भारतीय आईसीएस अफसर भाग लेते थे। इन पार्टियों में आधिकारिक पोशाक के नियम लागू थे, जिसमें एक डिनर जैकेट, एक सफेद टाई और टेल पहनना जरूरी था। उस दौर में, सरकारी अधिकारियों के समाज में उठने-बैठने वालों में व्यवहार की एकरूपता को प्रोत्साहित किया जाता था और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह राज की प्रतिष्ठा को बताने और बनाए रखने का एक तरीका था। सरकारी अधिकारियों के इस छोटे और कठोर सामाजिक दायरे ने इस एकरूपता के क्रियान्वयन को आसान बना दिया था। इस वजह से सरकारी आधिकारियों के समाज से रिश्ते और उससे जुड़ी राज की प्रतिष्ठा तथा उसके प्रशासनिक अंग सहजता से नियंत्रित थे। यह इसलिए भी संभव हो पाया, क्योंकि अखिल भारतीय स्तर पर आईसीएस के सदस्यों की संख्या कभी भी 1300 से अधिक नहीं हुई और उसमें से भी गिनती के अफसर ही केंद्र यानी नई दिल्ली में तैनात होते थे।

जिमखाना में भारतीय
अपनी पुस्तक के लिए सन् 1931 से 1952 के कालखंड में राजधानी के सामाजिक जीवन का लेखाजोखा जमा करने वाली नयनतारा कहती हैं कि 20वीं शताब्दी के इंग्लैंड के अंगरेज समाजवादी थे और समानता में रुचि रखते थे। वे 19वीं सदी के साहबों की तरह, ब्रिटिश साम्राज्य में विश्वास नहीं करते थे। उस समय आपस में अधिक मेलजोल था और आजादी के बाद भी कुछ अच्छे मित्रवत संबंध कायम रहे। जवाहर लाल नेहरू और लार्ड माउंटबेटन की मित्रता ऐसा ही एक उदाहरण है।

दूसरे विश्व युद्ध के वर्षों ने वारंट ऑफ प्रीसिडेंस की लक्ष्मण रेखा से इतर राजधानी के सामाजिक जीवन में बहुलवाद की जगह बनाई। 40 के दशक में धीरे-धीरे राजधानी के सामाजिक जीवन के केंद्रों में नस्लीय भेदभाव और असमानता कम होने लगी थी। नयनतारा बताती हैं कि कड़ाई से भेदभाव का अनुसरण करने वाले जिमखाना क्लब ने सांकेतिक रूप से भारतीय सदस्यों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे, पर उन्हें अपनी पत्नियों के साथ ही क्लब में आने की अनुमति दी गई थी। अनेक बुजुर्ग भारतीय महिलाएं बॉलरूम डांस के साथ सहज नहीं थीं।

सन् 1947 के बाद दिल्ली में पंजाबी तबके की आमद के साथ क्लब का चरित्र बदलने लगा। लंबे बालों के साथ (पंजाबी) पुरुषों को बाथिंग कैप पहननी पड़ती थी और भारतीय सदस्यों को उनकी सामाजिक और वित्तीय हैसियत दिखानी पड़ती थी। राजधानी के सामाजिक अड्डे के रूप में इम्पीरियल जिमखाना क्लब, उस समय यही नाम था, ने भारतीयों को सदस्य के रूप में प्रवेश देना शुरू कर दिया था, हालांकि उनको मतदान का अधिकार नहीं था। उनके अनुसार, महिलाओं का लेखन, उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में नई दिल्ली के सामाजिक जीवन की एक विस्तृत झांकी देता है। उस समय के रेस्तरां जैसे कनॉट प्लेस का वेंगर जाज बैंड के साथ चाय नृत्य की मेजबानी करता था। आमतौर पर यहां आने वाले मेहमानों की संख्या मिलीजुली होती थी और सन् 1940 के दशक तक यहां पर भारतीय और अंगरेज एक-साथ बैठे और नाचते हुए दिखते थे।

नाइट क्लब में दादी
एक नाइट क्लब में अपनी दादी की तस्वीर से प्रेरित होने वाली नयनतारा कहती हैं, 'मैंने तस्वीर देखी और मैंने सोचा कि आमतौर पर सलवार-कमीज पहनने वाली यह सुंदर पंजाबी महिला आखिर एक नाइट क्लब में क्या कर रही है। मैंने सोचा था कि असली कहानी तो यही है। मैं इस दौर से संबंधित कागजात, इतिहास, और साधन की तलाश में राष्ट्रीय अभिलेखागार, तीन मूर्ति भवन और लंदन निकल गई। सन् 30 के दशक में अंतर-जातीय और अंतर-राष्ट्रीय विवाह अपवाद थे और सन् 1930 और 1940 के दशक में अधिकतर मिश्रित जोड़े क्लबों में ही मिलते थे। जिन भारतीय परिवारों में मिश्रित विवाह हुए थे, वे रहन सहन में अत्यंत पश्चिमी थे। यहां यह उल्लेख करना लाजिमी होगा कि नयनतारा एक मलयाली पिता और एक उत्तर भारतीय मां की संतान हैं।

न्यू दिल्ली इन लव एंड वारः ग्लिटरिंग डिकेड्स
लेखकः नयनतारा पोथन
प्रकाशकः पेंगुइन, इंडिया
(साभार: अमर उजाला, 27 मई 2012 में प्रकाशित)

Thursday, May 24, 2012

Dawn_पौ





पौ फटने से पहले
कुंआ अंतस तक प्यासा हो जाता है
और तुमने स्वयं को
रस्सी के सहारे भीतर तक उतार दिया
चुनने के लिए
दिन भर गिरने वाले पत्थरों को
हर एक कंकर को
( मित्र अरविंद जोशी की अंग्रेजी कविता का हिंदी अनुवाद )

I heard your name today

मैंने आज तुम्हारा नाम सुना । लगा सुदूर के शहर जैसा जाना-पहचाना । जैसे याद एक कहानी का किस्सा । कहीं देखी एक पाती । ऐसा अपनापा लगता कि खुद ही था वही । और ऐसा परायापन हो सकता था जो कहीं भी । इस्तानुबल लंदन दिल्ली मैंने आज तुम्हारा नाम सुना लगा सन्नाटे का मौन लिपटा हुआ निस्तब्धता से ।
( मित्र अरविंद जोशी की अंग्रेजी कविता का हिंदी अनुवाद )

Monday, May 21, 2012

conversion of sex desire into power

The transformation is 'real' just convert the carnial desire into action. one has to lead his power of self from bottom to upper state of mind that is the real conversion of sex power into self power.
मां चिंतमामि सततं मयि सा विरक्ता
साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्ससक्तः
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या
धिक तां च तं च मदनं च इमां च मां च
अर्थात मैं अपने चित में दिन रात जिसकी याद संजोये रहता हूं, वह स्त्री मुझसे प्रेम नहीं करती। वह किसी और पुरुष पर मोहित है। वह पुरुष किसी दूसरी स्त्री को चाहता है। वह स्त्री, किसी और को प्रेम करती है। धिक्कार है मुझे और धिक्कार है उस कामदेव को, जिसने यह माया जाल रचा है। धिक्कार है, धिक्कार है धिक्कार है।

Love: Forgiveness

प्यार-क्षमा
हम सोचते है कि ‘अलग हो गए‘, ‘भूल गए‘, प्यार ‘मर गया‘, अब कुछ नहीं बचा या कि भूला दिया इसलिए ‘क्षमा‘ हो गई । पर वास्तव में यह होता नहीं । ‘भूलना‘ है ही नहीं । याद दब जाती है तो भी क्रियाशील रहती है । तो प्यार ‘था‘ ही सही । भूलना निष्क्रिय नहीं होता, न वह क्षमा का पर्याय होता है। एक सोद्ेश्य, सक्रिय क्षमा होनी चाहिए कि वह ‘था‘ ही कडुवा कर एक वैर-भरा ‘है‘ न बन पाए ।

Sunday, May 20, 2012

दुख

सुखी होने का यह अर्थ नहीं कि मुझे कोई दुख नहीं है । अर्थ इतना ही है कि अपने दुखी होने का कारण मैं पहचानता हूं और उसे स्वीकार करता हूं-बिना किसी अपराध भावना के ।

Agehya: Novel

प्रेम का कायरानापन

आज अंतिम विदा ले रहा हूं । हमारा सम्बंध विच्छेद तो उसी दिन हो गया था, जिस दिन तुम्हारा विश्वास उठ गया था, किन्तु अभ्यासवश विदा मांग रहा हूं । मैं कायर नहीं हूं , इस बात का विश्वास में तुम्हें उसी समय दिला सकता था पर तुम विश्वास नहीं कर सकीं । मुझे तुमसे विश्वास की, सहज, स्वाभाविक, अटल विश्वास की-आशा थी । यह आशा प्रत्येक मनुष्य करता है । तुम वैसा विश्वास नहीं कर सकी । जहां तक तुम्हारी मुझे देख कर भी अनदेखी करने की प्रवृत्ति, जिसकी वजह तुम ही जानती हो, को ढापने के लिए मेरे ही महीनों गायब रहने की बात पर तुमने झूठ बोला-ऐसा कहने की स्थिति में मैं नहीं हूं । इस शब्द का प्रयोग करने के लिए बहुत गहरे संबंधों की आवश्यकता होती है और झूठ और सच के बीच में भी बहुत कुछ होता है । अगर प्रत्येक बात में विश्वास का पात्र होने के लिए ‘प्रमाण‘ देना पड़े, अगर तुम्हारा प्रेम प्राप्त करने के लिए नित्य यह दिखाना पड़े कि मैं उसका पात्र हूं, तो ऐसे प्रेम का क्या मूल्य है घ् अगर तुम विश्वास-भर कर लेती ! दो-एक दिन में मैं नहीं रहूंगा। तब तक या उस के बाद तुम्हें प्रमाण भी मिल जाएंगे कि मैं कायर नहीं हूं, अगर तुम अब किसी से प्रेम करो तो ऐसा व्यक्ति चुनना, जिस का तुम अकारण विश्वास कर सको । एक कायर से इतनी ही शिक्षा ग्रहण कर लो । अब मेरे मन में शांति है । अपना मन टटोल कर देख लेना, उस में क्या है ।

Saturday, May 5, 2012

Night Life-Delhi (दिल्ली-इम्तहान)


दिल्ली इम्तहान लेती है, कड़े इम्तहान लेती है ।
गुजारे है मैंने भी दिन और रात, कनाट प्लेस के पालिका प्लेस पर बने बगीचों में ।
देखी है, रात को कनाट प्लेस की अंधा कर देने वाली नियोन रोशनी की जगमगाहट ।
आधी रात के काले अंधेरों में हनुमान मंदिर और कनाट प्लेस थाने के सामने होती हिजड़ों और कोढि़यों की हरकतें ।
फुटपाथ और अंडर पास में स्मैक और चरस के सुट्टों पर धुंआ होती जिंदगी ।
बाबा खड़क सिंह मार्ग से लेकर वेलिंगडन अस्पताल के गोल चक्कर पर सड़क किनारे और स्टाप की ओट में बिकने को तैयार गर्म जिंदा गोश्त की पुतलियां ।
आखिर कौन जा पाया है दिल्ली की इन गलियों को छोड़कर, चाहे या अनचाहे, जाने अथवा अनजाने ।

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...