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ए पी एस कोर की शुरूआत हालांकि 1856 से मानी जाती है, जब ए पी एस को सबसे पहले तीव्रगामी सेना के युद्धकालीन समेकित संगठन के तौर पर चालू किया गया था। ये सेना फारस की खाड़ी में बुशायर में सबसे पहले और बाद में कर्इ अन्य ऐसे मिशन पर भेजी गर्इ थी।
सेना डाक सेवा (ए पी एस) के दो प्रमुख प्रसिद्ध डाक केंद्रों की शुरूआत का रोचक इतिहास है। अगस्त 1945 में सहयोगी सैनिकों की जापान पर विजय के बाद भारतीय सेना डाक सेवा के रूप में विख्यात सेवा की शुरूआत की गर्इ और इससे मौजूदा 137 एफ पी ओ - क्षेत्रीय डाक घरों को बंद करने की भी प्रक्रिया शुरू हुर्इ।
सिकंदराबाद में 30 जून 1941 को गठित 56 एफ पी ओ जो कि एक मात्र अंतिम एफ पी ओ बचा था, अभी इसे बंद किया जाना था। जापान में इवाकूनी से ब्रिटिश कामनवेल्थ आकुपेशन फोर्स एयर बेस के लौटने के बाद भी इस एफ पी ओ को जारी रखा गया।
ए पी एस 1947 तक भारतीय सामान्य सेवा का अंग था, जिसे बंद करके सेना सर्विस कोर के साथ इसकी एक डाक शाखा के रूप में संबद्ध किया गया था। 24 अक्तूबर 1947 को इसे नया कोड सुरक्षा पता देकर नर्इ दिल्ली में डाक छांटने के नए आधार के लिए C/o 56 ए पी ओ के रूप में शुरू किया गया। इसका मकसद 20 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तानी हमलावरों के प्रवेश के फलस्वरूप पंजाब और जम्मू कश्मीर में सैनिकों की डाक ज़रूरतों को पूरा करना था।
पहली मार्च 1972 ए पी एस को एक स्वतंत्र कोर के रूप में स्थापित किया गया।
इसने उड़ते हुए हंस का प्रतीक चिन्ह अपनाया जिसे महाभारत सहित कर्इ भारतीय पौराणिक गाथाओं में संदेशवाहक के रूप में जाना जाता था। इसने अपने चिन्ह पर ध्येय रखा मेल मिलाप। हंस एक ऐसा शालीन पक्षी है जिसे शकित, साहस, गति और दुर्गम स्थानों तक पहुंचने की क्षमता के रूप में जाना जाता है। यह प्रतीक चिन्ह ए पी एस के लिए उपयुक्त है।
56 और 99 ए पी ओ नर्इ दिल्ली से बाहर काम कर रहे दो (1 सी बी पी ओ) और कोलकाता (2 सी बी पी ओ) केंद्रीय आधार डाक घर हैं जहां डाक छांटी जाती है। इन दोनों के द्वारा सशस्त्र सेनाओं की समूची डाक जरूरतों और कुछ अन्य सहायक अर्ध सैनिक संगठनों की ऐसी जरूरतों को भारत के भीतर पूरा किया जाता है।
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