एशिया की सबसे बड़ी देह मंडियों में से एक मुंबई के कमाठीपुरा की शुरुआत 150 साल पहले अंग्रेज़ो के उपनिवेशवादी राज में अंग्रेज़ सैनिकों की शरीर की भूख को मिटाने वाली एक 'ऐशगाह' के रूप में हुई थी.और आज भी 14 तंग गंदी और गंदी गलियों की एक भूलभूलैया कमाठीपुरा, एशिया का मशहूर, बड़ा और पुराना रेडलाइट इलाका है.19वीं शताब्दी में अंग्रेज़ सैनिकों के लिए पूरे भारत में बाकायदा अनेक वेश्यालय खोले गए. देश भर के दूर दराज़ के गांवों से ग़रीब गुरबा परिवारों की सुन्दर और जवान लड़कियों को इन वेश्यालयों को लाया जाता था. इस जिस्मानी सौदे के सारे लेन-देन का कम अंग्रेज़ सेना ही संभालती थी, यहाँ तक कि सेना ही 'उनकी' क़ीमत तय करती थी.वर्ष 1864 के बाद मुंबई के आसपास करीब आठ बस्तियों में 500 से वेश्याएं रहती थी जबकि आज उनमें से केवल दो बस्तियां ही रह गयी है, जिसमें कमाठीपुरा सबसे बड़ी थी. हालांकि आज भी वही रवायत कायम है.साल 1890 में हिंसक ग्राहकों से बचाने के लिए पुलिस ने स्त्रियों के लिए वेश्यालय की खिड़कियों और दरवाजों पर सलाखें लगवा दी थीं. कई महिलाएं आज भी अंग्रेज़ों के बनाए इन 'पिंजरों' में रहतीं और काम करती हैं.
Wednesday, July 2, 2014
British connection of kamathipura (अंग्रेज़ों की देन कमाठीपुरा)
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