चाँद हर बार न देखने पर भी, तेरे वजूद की याद दिला देता है
यह अँधेरी रात का सूनापन, तेरी जुदाई को और बढ़ा देता है
चांदनी न चाहते हुए भी, तेरे उजलेपन का अहसास करा देती है
जुगनुओं की तरह टिमटिमाते मन की, उम्मीद को बढ़ा देती है
उम्र के इस मुकाम पर, सपने अधूरे कोई याद दिला देता है
इंकार करूँ कैसे उस रिश्ते से, जो गम के साए बढ़ा देता है
साथ रहे रहगुज़र की याद, बेमानी सही पर दिल को हिलाती है
तन और मन की अजीब कशमकश, उम्मीद को बढ़ा देती है
छूटा हुआ रास्ता और हाथ, भला कब वापस मिले हैं
इसका अहसास, मीलों के दरमयान को और बढ़ा देता है
उम्र के इस पड़ाव में, यह कैसी अजब-आरजू का अहसास है
जिंदगी में भूली हुई पीड़ा, उसकी उम्मीद को बढ़ा देती है
हर बार मन की सांकल का खटका, उस आवाज़ की याद दिला देता है
छोड़ आया था जिसे उस मोड़ पर, अब मन की टीस बढ़ा देता है
मेरे होने का भ्रम, मेरे वजूद पर ही सवाल खड़ा कर देता है
वह तो बस तुम्हारी याद है, जो हरदम मेरी उम्मीद को बढ़ा देती है
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