Saturday, September 24, 2016

लोक साहित्य_देवेंद्र सत्यार्थी_Lok Sahitya_Devendra Sathyarthi

चित्र: देवेंद्र सत्यार्थी दिल्ली में आयोजित पंजाबी कवि दरबार में कविता पढ़ते हुए (1957)

लोक साहित्य की भावधारा श्रुति परंपरा के सहारे अगणित मोड़ लेती हुई आज भी अपने प्राचीन रूप में प्रवाहित है। इसका लिखित साहित्य पहले नहीं उपलब्ध था, ग्रामीण जनता की यह निधि अत्यंत ही भावपूर्ण है और यह प्रकीर्ण साहित्य अत्याधिक विस्तृत है। उसमें कृत्रिमता का अभाव है, अनुभूतियों का सहज स्पंदन है। लोकगीतों की मानसी गंगा की समता बंधनयुक्त शास्त्रीय राग-रागनियां नहीं कर सकती हैं।
लोक साहित्य मानव जाति की वह धरोहर है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती हुई निरंतर परिवर्द्ममान्ध होती हुई अक्षुण्ण बनी रहती है। लोक-साहित्य का रूपाकार अवश्य किसी देश या जाति की भौगोलिक सीमा में आबद्व रहता है। पर उसकी आत्मा सार्वभौम और शाश्वत है, उसकी स्थिति व परिस्थिति, आशा-निराशा, कुंठा और विवशताएं एक सी है।
लोक साहित्य की छाप जिसके मन पर एक बार लग गई फिर कभी मिटाए नहीं मिटती। सच तो यह है कि लोक-मानस की सौंदयप्रियता कहीं स्मृति की करूणा बन गई है। तो कहीं आशा की उमंग या फिर कहीं स्नेह की पवित्र ज्वाला। भाषा कितनी भी अलग हो मानव की आवाज तो वही है।

-देवेंद्र सत्यार्थी (मोहनलाल बाबुलकर-गढ़वाली लोक साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन की भूमिका में)

No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...