महाभारत द्वारा अनेक रचनाओं को जन्म देने का पहला बड़ा कारण तो यह प्रतीत होता है कि यह एक उदार रचना है जो अपने स्त्रोत से जन्म लेने वाली किसी रचना की स्वायत्तता का हरण नहीं करती, किसी को ‘अनुकरण’ की लज्जा में नहीं बांधती, उलटे सर्जक को देश काल की भिन्नता के बावजूद सृजन की मौलिकता के लिए मुक्त करती है।
संक्षेप में वह लोकतांत्रिक अवकाश (स्पेस) देती है, जो किसी भी स्तर पर ‘धर्मशास्त्र’ कही जाने वाली दुनिया में कोई रचना नहीं देती। (यही वह सबसे बड़ी विभाजक रेखा है, जो दुनिया के दो बड़े सामी धर्मों ‘इस्लाम’ और ‘खिस्त’ से हिंदू धर्म को अलग करती है।) संभवतः इसलिए कि यह धर्म, महाभारत, रामायण जैसी सर्जनात्मक कृतियों से रचा हुआ है, जो धार्मिकता के बहाने लोकचेतना और जीवन की समग्रता के काव्य है।
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