ब्रह्मपुत्र मेल से मुग़लसराय से कल से शुरू यात्रा पुरानी दिल्ली में आखिरकार आज खत्म हुई। वैसे सात घंटे से अधिक से देरी से पहुंची इस ट्रेन की रसोई में पीने का पानी और शौचालय में पानी दोनों ही चुक गया था।
पुरानी दिल्ली स्टेशन पर बिजली की सीढ़ियों के अभाव में कुलियों को ही पाँच सौ देने पड़े वही मुग़ल सराय में भी कुलियों की कुलीगीरी कमतर नहीं थी। महिलाओं-बच्चों को देखकर 1500 रुपए मांगे फिर तोल-मोल के बोल के बाद कम पर माने।
मजेदार था कि मुग़ल सराय में रेलवे की समय सारिणी हिन्दी की बजाए अँग्रेजी में ही उपलब्ध थी सो भारतीय रेल की अखिल भारतीय और पूर्वोतर रेल दोनों की समय सारिणी खरीदी। जबकि बनारस में तो उपलब्ध ही नहीं थी। रेलवे में हिन्दी के प्रकाशनों का न मिलना सोचने की बात है।
नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर तो बिजली से चलने वाली सीढ़ियों से बनारस जाते समय कोई परेशानी नहीं हुई पर लगता है कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का सुधार अभी होना बाकी है। जबकि नयी दिल्ली की तुलना में पुरानी दिल्ली से ज्यादा यात्रा चढ़ते-उतरते हैं। जिसमें स्वाभाविक रूप से गरीब-गुरबा ज्यादा होते हैं।
ऐसा नहीं है कि भारतीय रेल ही इस सौतेले बर्ताव में आगे हो, मेट्रो भी कुछ पीछे नहीं है। यह बात मेट्रो कि दोनों स्टेशनों-चाँदनी चौक और कश्मीरी गेट-पर भी नज़र आती है, जहां रखरखाव और सफाई अपनी कहानी खुद ही बयान करती है।
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