स्मरण को पाथेय बनने देना चाहिए।
लेखन भी एक तरह से सबकी अपनी अपनी यात्रा है, अनुभव हैं, संघर्ष हैं, दुख हैं, चाहने की अनुभूति हैं।
समय के साथ लेखन के प्रति समझ विकसित होने से आत्म विश्वास यह भी आ जाता है।
ऐसे में, किसी से अप्रभावित होकर लिखने का तरीका ही उत्तम है।
वैसे, लिखने में निरंतरता और सातत्य महत्वपूर्ण है, बाकी तो बस खामखयाली है।
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