सागर से मिलकर जैसेनदी खारी हो जाती है
तबीयत वैसे हीभारी हो जाती है मेरीसम्पन्नों से मिलकर
व्यक्ति से मिलने काअनुभव नहीं होताऐसा नहीं लगताधारा से धारा जुड़ी है
एक सुगंधदूसरी सुगंध की ओरमुड़ी है
तो कहना चाहिएसम्पन्न व्यक्तिव्यक्ति नहीं है
वह सच्ची
कोई अभिव्यक्तिनहीं है
कई बातों का जमाव हैसही किसी भीअस्तित्व का अभाव है
मैं उससे मिलकरअस्तित्वहीन हो जाता हूँ
दीनता मेरीबनावट का कोई तत्व नहीं हैफिर भी धनाड्य से मिलकरमैं दीन हो जाता हूँ
अरति जनसंसदि कामैंने इतना हीअर्थ लगाया है
अपने जीवन केसमूचे अनुभव कोइस तथ्य में समाया हैकि साधारण जनठीक जन है
उससे मिलो जुलोउसे खोलोउसके सामने खुलो
वह सूर्य है जल हैफूल है फल हैनदी है धारा हैसुगंध है
स्वर है ध्वनि है छंद हैसाधारण का ही जीवन मेंआनंद है!
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