आधुनिक भारत के नोटों पर नजर आने वाली चित्रों की अवधारणाओं में परिवर्तनशील सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं सहित तात्कालिक वैश्विक दृष्टिकोण की झलक मिलती है। यह समुद्री लुटेरे और वाणिज्यवाद, औपनिवेशिक काल, विदेशी साम्राज्यवाद, साम्राज्य की श्रेष्ठता के दर्प से लेकर भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता के प्रतीकों और स्वतंत्र राष्ट्र की प्रगति के रूप में इन नोटों पर परिलक्षित होती है।
कलकत्ता के जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार (1773-75) ने देश में शुरुआती नोट छापे। इन नोटों के मुख भाग पर बैंक का नाम और मूल्यवर्ग (100, 250, 500 रूपए) तीन लिपियों उर्दू, बांग्ला और नागरी में छपा था।
वर्ष 1840 में बंबई प्रेसिडेन्सी बैंक बना, जिसने अपने नोटों पर टाउन हाल और माउंट स्टुअर्ट एलफिन्स्टन तथा जॉन मालकोल्म के चित्र, वर्ष 1843 में बने मद्रास प्रेसिडेन्सी बैंक ने मद्रास के गवर्नर सर थॉमस मुनरो (1817-1827) के चित्र वाला नोट छापा।
कागजी मुद्रा अधिनियम ,1861 के बाद प्रेसिडेन्सी बैंकों के नोट छापने पर रोक लग गयी और भारत सरकार को देश में नोट छापने का एकाधिकार मिल गया और कागजी मुद्रा का प्रबंधन टकसाल मास्टरों को सौंप दिया गया।
अंग्रेज़ सरकार ने भारतीय सिक्का अधिनियम, 1906 के पारित होनेके साथ देश में टकसालों की स्थापना और सिक्कों और मानकों की व्यवस्था बनी।
ब्रिटिश इंडिया नोटों के पहले सेट में रानी विक्टोरिया के चित्र वाले 10, 20, 50, 100, 1000 मूलवर्ग में दो भाषाओं के पैनल वाले हाथ से बने एकतरफा नोट छापे गए। पहली बार वर्ष 1917 में एक रूपए का नोट और फिर दो रूपए आठ आने के नोट जारी हुए। इन नोटों पर पहली बार अंग्रेज़ राजा की तस्वीर छपी।
वर्ष 1923 में दस रूपए का नोट छापा गया। सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के कायम होने तक 5, 10, 50, 1000, 10,000 रूपए के नोट छापे।
1 अप्रैल 1935 को कलकत्ता में भारतीय रिजर्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय खुला और उसने सरकारी लेखा और लोक ऋण के प्रबंधन का काम संभाल लिया। वर्ष 1937 में जार्ज छठे के चित्र के साथ पहली बार पांच रूपए का नोट, 1938 में 10 रूपए, 100 रूपए, 1,000 रूपए और 10,000 रूपए के नोट छापे गए।
दूसरे महायुद्ध में जालसाजी से बचने के लिहाज से नोटों को रक्षा धागा के साथ छापना शुरू किया गया। वर्ष 1940 में दोबारा एक रूपए का नोट और वर्ष 1943 में 2 रूपए का नोट छापा गया।
एक कम-जाना तथ्य यह है कि देश को अगस्त 1947 में आजादी मिलने के बाद भी वर्ष 1950 तक अंग्रेज़ राजा के चित्रों वाले नोट छपते रहे।
आजाद भारत में अंग्रेज़ राजा के चित्र की बजाय नोट पर सारनाथ के सिंह की आकृति को छापने का फैसला हुआ।
वर्ष 1969 में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी समारोह के समय नोट की पृष्टभूमि में सेवाग्राम आश्रम में बैठे गांधी का चित्र छपा।
वर्ष 1954 में दोबारा 1,000 रूपए, 5000 रूपए, 10,000 रूपए के नोट छापे गए। वर्ष 1967 में नोटों का आकार छोटा कर दिया। वर्ष 1972 में 20 रूपए और वर्ष 1975 में 50 रूपए के नोट छपे।
वर्ष 1978 में एक बार फिर नोटों का विमुद्रीकरण किया गया। अस्सी के दशक में 1 रूपए के नोट पर तेल रिंग और 5 रूपए के नोट पर फार्म मशीनीकरण के चित्र वाले नोटों के साथ 20 रूपए और 10 रूपए के नोटों पर कोणार्क चक्र, मोर की चित्र वाले नये नोट छापे गए जबकि वर्ष 1987 में महात्मा गांधी के चित्र वाला 500 रूपए का नोट छपा।
(मुद्दा, पेज 13, 27/11/2016, दैनिक जागरण)
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