शब्द को साधना सहज है पर उससे सीखना और भी कठिन है, सो जिसने मन के एकलव्य को जगा दिया सो उसे स्थानीय गुरु की भी आवश्यकता नहीं। बुद्ध का "अप्पो दीपो भव" सबका जीवन ध्येय वाक्य होना चाहिए।
स्वयं ही सीखने की प्रक्रिया में, गुरु भाव से अधिक सहचर का भाव सिखाता है क्योंकि साहचर्य में सकारात्मकता का स्वाभाविक संयोग बनता है। यही कारण है कि हिन्दू दर्शन में साध-संगत के भाव को आवश्यक माना है।
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