Saturday, September 16, 2017
Metro Rail changes Delhi Character_सूरत से सीरत तक बदली मेट्रो ने
पुस्तक के अनुसार, राजधानी में मेट्रो रेलवे पटरियों, स्टेशनों, तटबंधों, पुलों, सिगनलों और क्रॉसिंगों के बढ़ते नेटवर्क ने औपनिवेशिक भारत के परिदृश्य को स्थायी रूप से बदल दिया है। यही कारण है कि दिल्ली मेट्रो स्टेशन पहचान के नए निशान हैं तो मेट्रो के खंभे ठिकाने तक पहुंचने का नया जरिया बन चुके हैं। जबकि इस प्रक्रिया में मेट्रो के जमीन से ऊंचाई पर बने पुलों के रास्तों ने महानगर के क्षितिज को परिवर्तित कर दिया है। कुतुब मीनार के करीब से गुजरती मेट्रो लाइन के रास्ते को दोबारा केवल इसलिए बनाना पड़ा क्योंकि उससे जनता के शहर के इतिहास का अभिन्न भाग वाले ऐतिहासिक स्मारक को देखने के दृश्य के बाधित होने का खतरा था।
रितिका प्रसाद रेल और जमीन के सौदे की बात पर लिखती है कि भारतीय रेल की तरह, मेट्रो सीधे जमीन की खरीद नहीं करता है। दरअसल, असली फर्क यह है कि दिल्ली मेट्रो को अपने लिए किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण का भुगतान करना होता है। जबकि इसके विपरीत, ब्रिटिश भारत में रेलवे की मालिकान अंग्रेज कंपनियों के लिए शासन सीधे हस्तक्षेप करके इंपीरियल हुकूमत से निशुल्क भूमि मुहैया करवाता था। इस कदम से अंग्रेज रेल कंपनियों की बुनियादी ढांचा खड़ा करने की लागत में कमी आती थी और उनके मुनाफे की संभावना बढ़ती थी।
किताब बताती है कि दिल्ली मेट्रो के कुछ मामलों में, असली सवाल मूल्यांकन या मुआवजा न होकर विरासत है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भूमिगत लाइनों के लिए खुदाई करनी होती है। रेल निर्माण को कई मामलों में जैसे पुरातात्विक अवशेषों या 1857 की पहली आजादी की लड़ाई के ठीक बाद की महत्वपूर्ण धार्मिक इमारते, जो कि सचमुच मेट्रो के रास्ते में आई, उससे दिल्ली मेट्रो को कोई दिक्कत नहीं हुई। इसका कारण यह था कि मेट्रो के निर्माण में ऐतिहासिक इमारतों की तुलना में विरासत वाले स्मारकों को प्राथमिकता दी गई। कुल मिलाकर धार्मिक तीर्थस्थानों की बजाय ऐतिहासिक इमारतों की चिंता की गई है। विडंबना यह है कि मेट्रो की हेरिटेज लाइन को लेकर अधिक सवाल खड़े हुए हैं, जिसका उद्देश्य दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों को सुलभ बनाना है। विडंबना यह है कि दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारकों को सुलभ बनाने के उद्देश्य वाली मेट्रो की हेरिटेज लाइन को लेकर अधिक सवाल खड़े हुए हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान
कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...
No comments:
Post a Comment