Saturday, September 30, 2017

Rajendra Prasad_Mahtma Gandhi_राजेन्द्र प्रसाद के गांधी




आजादी के बाद लोकप्रिय अर्थ में बेशक जवाहर लाल नेेहरू को महात्मा गांधी को उत्तराधिकारी माना गया हो पर सच्चाई यही है कि देश के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद सरकार में गांधी के आचरण-व्यवहार के जीवंत प्रतीक थे। 


इसी जुड़ाव के बारे में 17 अप्रैल 1950 को भंगी काॅलोनी, नई दिल्ली में अखिल भारतीय हरिजन कार्यकर्ताओं की सभा में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि महात्मा गांधी जी के साथ जब से रहने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ तब से उनकी आज्ञा के मुताबिक उनके बताये हुये रास्ते पर चल कर आप लोगों की जो थोड़ी बहुत सेवा करने का मौका मिला उसे मैंने किया। 


महात्मा गांधी जी ने हमें यह सिखाया था कि यह काम सबसे महत्व का है। यह स्थान भी जो आप के सम्मेलन के लिए चुना गया है वह भी एक महत्व का स्थान है। महात्मा गांधी जी ने यहां बहुत दिन बिताये थे और वे भी ऐसे समय में बिताये थे जब कि देश के भाग्य का फैसला होने वाला था। यहां बहुत से ऐसे फैसले किये गये जिन से देश के भाग्य का निर्णय हुआ। मैं कोशिश करूंगा कि यहां एक ऐसा स्मारक बने जो केवल ईट पत्थर का स्मारक न रहे बल्कि ऐसा स्मारक, एक शिक्षा संस्था, हो जो यहां के लोगों के दिलों में वह चीज पैदा करे जिस से आप की सच्ची सेवा हो।

इतना ही नहीं, गांधी के राम से जुड़ाव को लेकर राजघाट पर बलिदान दिवस (30/01/1951) पर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि महात्मा जी ने देश को बहुत कुछ बताया, देश को बड़ी शक्ति दी। पर महात्मा जी ने स्वयं वह शक्ति कहां से पायी जिसको उन्होंने सारे देश में और सारे संसार में इस तरह से वितरित किया? वह मानते थे कि और बार बार कहते थे और लिखते थे कि उनकी सारी शक्ति ईश्वर की दी गई है; राम नाम की शक्ति है और उसी राम नाम के बल से उन्होंने जो कुछ किया वह किया और अन्तिम शब्द भी जो उनके मुंह से निकला वह था-हे राम। महात्मा गांधी जी ने अपनी सारी जिन्दगी में जो तपस्या की थी जो काम किया था उसे उन्होंने संसार के लिये दे दिया और साथ ही साथ अन्त में उनके सामने ईश्वर का नाम लेेते हुए वह इस शरीर को छोड़ कर जो इसी स्थान पर अग्नि में जल कर भस्म हो गया फिर ईश्वर में जाकर मिल गये।

वहीं एक विश्वविद्यालय के समारोह में उन्होंने कहा था कि भारत वर्ष ने विजय प्राप्त की है क्योंकि साम्राज्य के विरोध में भी अपने आन्दोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसा के उस सिद्वांत का पालन किया जिसका प्रचार वह अपने सारे जीवन में करते रहे थे। उनका इसके लिए जैसा आग्रह था वैसी अहिंसा में श्रद्वा आज किसी व्यक्ति की नहीं है जो इस आदर्श को उसी बल और श्रद्वा से संसार के सामने रख सके। जब तक यह उस श्रद्वा और विश्वास के साथ नहीं रखा जाता है तब तक उसका वह प्रभाव नहीं होगा जो महात्मा गांधी के शब्दों का हुआ करता था।


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