Saturday, September 2, 2017

Butterfly world in Delhi_राजधानी का तितली संसार





भारत के अधिकांश तितलियां दक्षिण, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्व में पाई जाती है पर ऐसे में दिल्ली भी पीछे नहीं है। दुनिया में पाई जाने वाली तितलियों की 17000 प्रजातियों में से देश में 1600 और दिल्ली में करीब 90 प्रजातियां हैं। गौर करने वाली बात यह है कि राजधानी में बारिश के बाद तितलियों की उपस्थिति न केवल संख्या में बल्कि विविधता में भी बढ़ जाती है और ऐसे में मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्तूबर के दौरान तितलियों की अच्छी संख्या दिखती है।


डेनमार्क के कीट विज्ञानी टॉरबेन बी लार्सन ने 1986 में दिल्ली की तितलियों पर काम करते हुए तितलियों की 86 प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की थी। उनका यह शोध पत्र 2002 में ही प्रकाशित हुआ था। इससे पहले राजधानी में तितलियों पर 1943, 1967 और 1971 में शोध कार्य हुए हैं। उल्लेखनीय है कि हिंदी में भारतीय तितलियों पर प्रथम संदर्भ पुस्तक "भारत की तितलियां" भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के डॉ आर.के. वार्ष्णेय ने लिखी।


पिछले दशक के अध्ययन में राजधानी में तितलियों की छह नई प्रजातियां देखी गई हैं। जेएनयू के जीव विज्ञानी तितलियों और पतंगों में विशेषज्ञ डॉ सूर्य प्रकाश ने अपनी दस साल (2003-2013) के शोध के बाद इस बात का खुलासा किया कि रेड पियरोट, काॅमन जे, कॉमन बैरन, इंडियन टोर्टोसेसेल्ल,
कॉंनजोइन्ड स्विफ्ट और कॉमन ब्लूबॉटल नामक प्रजातियाँ अब आधिकारिक रूप से दिल्ली के तितली संसार का अभिन्न हिस्सा है।


2013 में अरावली जैव विविधता पार्क में तितलियों की 95 प्रजातियां और यमुना जैव विविधता उद्यान में 70 प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई थी। जबकि आसोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में तितलियों की 80 से अधिक प्रजातियां है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने 2009 में लोदी गार्डन में तितलियों के लिए विशेष रूप से एक संरक्षक क्षेत्र बनाया।


यह एक आम धारणा है कि तितलियां अपने भोजन के लिए केवल फूलों पर निर्भर है। जबकि सच यह है कि तितलियों गली हुई लकड़ी, मृत पशु और यहां तक कि गोबर से भी अपना खाना पाती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली के सब्जी मंडियों में आम तौर पर दिखने वाली काॅमन बैरोन तितली आम से अपना भोजन प्राप्त कर रही थी। जबकि दिल्ली में लाल पिएरॉट तितली के आगमन का कारण दिल्ली में उगाया जा रहा "कलंचो पिननाटा" नामक एक विदेशी सजावटी पौधा है, जिससे यह तितली अपना भोजन लेती
है। इसी तरह काॅमन जय तितली का राजधानी में दक्षिण भारत से करी पत्ता के औषधीय पौधे के साथ आगमन माना जाता है।


पर दिल्ली के तितली संसार में हालात इतने अच्छे भी नहीं है। 1986 में लार्सन की तितलियों की गणना के बाद से राजधानी में तितलियों की कुछ विशेष
प्रजातियों की संख्या में कमी आई है या वे पूरी तरह से लुप्त प्रायः हो गई है। इनमें प्रमुख हैं ब्लैक राजा, कॉमन सैलर, जेंट रेडये, इंडियन फ्र्रिटलरी, कॉमन प्योरॉट, कॉमन रोज, क्रिमसन रोज, टैवनी कॉस्टर और इंडियन ईजेबल। जबकि महत्वपूर्ण बात यह है कि लार्सन ने अपनी पुस्तक "द हैजर्ड्स ऑफ बटरफ्लाई कलेक्टिंग" में इस बात का उल्लेख किया है कि उन्होंने इंडियन ईजेबल की सुंदरता से प्रेरित होकर ही तितलियों का अध्ययन
आरंभ किया था।


No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...