आज यह बात जानकर हर किसी को अचरज होगा कि अंग्रेजों के जमाने में दिल्ली में रेलवे लाइन को लाने में शहर के व्यापारियों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज की राजधानी में रेलवे लाइन बिछाने की बात पर सबसे पहली बार 1852 में विचार किया गया था। जबकि 1857 की पहली आजादी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली की बजाय मेरठ से रेलवे लाइन बिछाने का मन बना लिया था। जिससे ब्रिटेन और दिल्ली में निराशा का माहौल बना।
1863 में व्यापारियों की एक बैठक हुई, जिसमें अंग्रेज सरकार से दिल्ली को रेलवे लाइन से वंचित नहीं किए जाने का अनुरोध किया गया। इस बैठक में अनेक अधिकारियों सहित सम्मानित नागरिकों ने हिस्सा लिया। आजादी की पहली लड़ाई के पांच साल बाद राजधानी में जुटी यह एक बड़ी संख्या थी। इनमें हिंदू और जैन साहूकार, हिंदू, मुस्लिम और एक पारसी व्यापारी और पांच मुस्लिम कुलीन शामिल थे। उन्होंने सेक्रेटरी आॅफ स्टेट को सौंपी एक याचिका में कहा कि रेलवे लाइन को हटाने से न केवल दिल्ली का कारोबार प्रभावित होगा बल्कि यह रेलवे के शेयर खरीदने वालों के साथ अन्याय होगा। यह एक महत्वपूर्ण बात थी क्योंकि आमतौर पर चुनींदा भारतीयों ने ही ब्रिटिश भारतीय रेलवे कंपनियों के उद्यमों में निवेश किया था लेकिन यह 1863 की बात थी जब यह कहा गया था कि दिल्ली के कुछ पूंजीपतियों ने शेयर खरीदे हैं।
इन व्यापारियों और पंजाब रेलवे कंपनी (जो कि ईस्ट इंडिया रेलवे के साथ दिल्ली में एक जंक्शन बनाना चाहती थी क्योंकि मेरठ अधिक दूरी पर था) के
दबाव के नतीजन चार्ल्स वुड ने वाइसराय के फैसले को पलट दिया। 1867 में नए साल की पूर्व संध्या की अर्धरात्रि को रेल की सीटी बजी और दिल्ली में पहली रेल दाखिल हुई। गालिब की "जिज्ञासा का सबब" इस "लोहे की सड़क" से शहर की जिंदगी बदलने वाली थी।
Saturday, September 2, 2017
Traders of Delhi_Railway connection_दिल्ली के कारोबारियों का रेल कनेक्शन
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