Saturday, December 9, 2017

First colour film_Delhi Durbar_1911_दुनिया की पहली रंगीन फिल्म बनी थी, दिल्ली दरबार में





यह बात जानकर हर किसी को अचरज होगा कि दुनिया की पहली सफल रंगीन छायांकन, हकीकत में 1911 में दिल्ली में हुए राज्यारोहण दरबार में फिल्मायी गयी थी। वह बात अलग है कि वर्ष 2000 तक इसकी रील गायब हो रखी थी। विश्व फिल्म के इतिहास में आम तौर पर दिल्ली दरबार में चार्ल्स अर्बन की उपस्थिति की अनदेखी की जाती है। अर्बन ने दिल्ली दरबार की घटनाओं, अंग्रेज साम्राज्य के उत्कर्ष की घड़ियों और उसके सबसे बड़े दृश्यमान जमावड़े को फिल्मांकन के लिए अपनी कीनेमाक्लोर प्रक्रिया का इस्तेमाल किया। हिंदुस्तान के माध्यम से अंग्रेज राजा और रानी को पहली बार रंगीन छायांकन या किसी तरह की एक फिल्म का भाग बनने के कारण अधिकतर पश्चिमी दुनिया के दर्शकों ने इसे देखा।

इस फिल्म ने कामकाजी तबके के लिए एक सस्ते रोमांचक पिक्चर शो को दुनिया भर के भद्रलोक के लिए एक उपयुक्त मनोरंजन का स्थान दिला दिया। उल्लेखनीय है इसे देखने वाले भद्रलोक में ब्रिटिश शाही परिवार, पोप और जापान के सम्राट तक थे। इसके बावजूद कुछ वर्षों के भीतर ही इस फिल्म का फुटेज गायब हो गया था। वर्ष 2000 में इसकी एक रील, रूस के एक शहर क्रास्नोगोस्र्क में मिली। प्राकृतिक रंगीन फिल्मों की पहली पीढ़ी में फिल्म उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली इस भव्य फिल्म के केवल दस मिनट का फुटेज ही शेष बचा है।

कीनेमाक्लोर की अंग्रेज शाही परिवार के आयोजनों में भागीदारी बाॅम्बे के विक्टोरिया मेमोरियल के उद्घाटन से शुरू हुई जो कि बाद में जॉर्ज पंचम के राज्यारोहण तक चली। जब तत्कालीन अंग्रेज वाइसराॅय लॉर्ड हार्डिंग ने हिंदुस्तान की प्राचीन राजधानी दिल्ली में नए राजा-सम्राट की मेजबानी की तब अर्बन ने इस फिल्म शूटिंग की।

वर्ष 1911 के दिल्ली दरबार में कुल पांच फर्मों को शूटिंग, जिसे अब डाक्यूमेंटरी फुटेज कहा जाता है, करनी की अनुमति दी गई थी। इनमें से रंगीन शूटिंग करने वाली अर्बन की ही टीम थी। इस टीम ने अंग्रेज राजा और रानी के मुंबई में अपोलो बंदर (जहां पर बाद में गेटवे ऑफ इंडिया बना) में उतरने-जाने तक की फुटेज तैयार की। शाही युगल दम्पति ने लाल किला के उत्तर में बने सलीमगढ़ किले के द्वार पर बने प्रस्तर हाथियों के बीच से होते हुए दिल्ली में प्रवेश किया। जबकि हकीकत में दिल्ली दरबार अनेक परेडों और शाही घोषणाओं की एक श्रृंखला थी, जिसका अंत अंग्रेज सम्राट की दो घोषणाओं के साथ हुआ। इनमें से पहली बंगाल विभाजन की समाप्ति और दूसरी अंग्रेज साम्राज्य की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की थी।

अगर दिल्ली दरबार को पूरी तरह फिल्माने के साथ उसकी फोटोग्राफी नहीं की गई होती तो वर्ष 1911 के इस दरबार की विशालता का आकलन करना मुश्किल ही नहीं असंभव होता। यहां एकत्र हुए महाराजाओं, चमकदार पीतल के साथ जुटे 34,000 सैनिकों, अंग्रेज वाइसराॅय के दल सहित शाही अमला, जहां अंग्रेज राजा ने 6,100 हीरे से जड़ित् भारत का शाही ताज पहना, मौजूद था। ऐसे में अर्बन के लिए फिल्म शूटिंग के हिसाब से इससे अधिक रंगदार घटना नहीं हो सकती थी।

वर्ष 1912 में पूरे लंदन में अंग्रेज राजा और रानी के हिंदुस्तान के दौरे का 150 मिनट का कार्यक्रम, जो कि तब तक की सबसे लंबा फिल्म शो था, प्रदर्शित किया गया। इसके साथ 48 वाद्य यंत्रों का एक ऑर्केस्ट्रा, गाने वाले 24 व्यक्तियों के एक दल सहित बांसुरी-ड्रम बजाने वाले थे जो कि फिल्म प्रस्तुति का अभिन्न अंग थे।



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