वर्ष 1911 में अंग्रेज सरकार ने ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने निर्णय किया। यहां आयोजित तीसरे दिल्ली दरबार में सम्राट जाॅर्ज पंचम ने 12 दिसंबर 1911 को इस आशय की घोषणा की कि अब दिल्ली अंग्रेज वाइसराय के आवास और नए प्रशासनिक केंद्र का स्थान होगी। नई राजधानी के स्थान का चयन करने के लिए एक समिति गठित की गई। इस कार्य के लिए अनेक स्थानों को देखा गया और आखिरकार रायसीना पहाड़ी के स्थान को अंग्रेज भारत की नई राजधानी बनाने के लिए चुना गया। एडविन लुटियंस-हर्बर्ट बेकर के नेतृत्व में दूसरे अंग्रेज वास्तुकारों ने आज की नई दिल्ली को बनाया। इस नई दिल्ली का वाइसराय पैलेस (अब राष्ट्रपति भवन), सर्कुलर पिलर पैलेस, जो कि संसद सचिवालय भवन कहलाता था, सहित हरियाली के लिए छोड़े गए खुले स्थान, पार्क, बाग और चौड़ी सड़कें थीं।
नई राजधानी के निर्माण कार्य की विशालता की बड़ी चुनौती को ध्यान में रखते हुए राजधानी के निर्माण कार्य और प्रबंधन की जिम्मेदारी स्थानीय स्तर पर न देते हुए इस कार्य की जिम्मेदारी एक केन्द्रीय प्राधिकरण को देने का निर्णय हुआ। इसी कारण 25 मार्च 1913 को इंपीरियल दिल्ली कमेटी का गठन हुआ जो कि नई दिल्ली नगरपालिका की शुरुआत थी।
फरवरी 1916 में दिल्ली के मुख्य आयुक्त ने रायसीना म्युनिसिपल कमेटी बनाई। 7 अप्रैल 1925 को पंजाब म्युनिसिपल एक्ट के तहत इसका दर्जा बढ़ाकर दूसरे दर्जे की म्युनिसिपलिटी कर कर दिया गया। इस कमेटी में स्थानीय निकाय की ओर से नाम या पद के आधार पर नियुक्त दस सदस्य होते थे। इस तरह गठित पहली कमेटी में पांच पदेन सदस्य और पांच सदस्य नाम के आधार पर नियुक्त किए गए। पहली बार स्थानीय मामलों और समस्याओं पर विचार-विमर्श के लिए सार्वजनिक जीवन से व्यक्तियों को शामिल किया गया। 9 सितंबर 1925 को इस कमेटी को शहर की इमारतों पर कर लगाने की अनुमति दी गई और इस तरह राजस्व की वसूली का पहला स्रोत बना। मुख्य आयुक्त ने इस नागरिक निकाय को कई प्रशासनिक कार्यों की भी जिम्मेदारी सौंपी, जिससे उसकी आमदनी और खर्चे में बढ़ोत्तरी हुई।
22 फरवरी 1927 को कमेटी ने नई दिल्ली का नाम अपनाया गया, इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया और इस कमेटी को नई दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी के रूप में नामित किया गया। 16 मार्च 1927 को मुख्य आयुक्त ने इस निर्णय को अनुमोदित कर दिया। 15 फरवरी 1931 को आधिकारिक तौर पर नई राजधानी का श्रीगणेश कर दिया गया। वर्ष 1932 में, नई दिल्ली नगर पालिका प्रथम श्रेणी की म्युनिसिपलिटी बन गई। उसे दी गई समस्त सेवाओं और गतिविधियों को पूरा करने के लिए निरीक्षणात्मक शक्तियां प्रदान की गई। वर्ष 1916 में, यह नगर पालिका नई राजधानी के निर्माण में लगे मजदूरों की स्वच्छता जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी निभा रही थी।
जबकि वर्ष 1925 के बाद नगरपालिका के कार्यों में कई गुना की बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 1931 में नई राजधानी की इमारतों, सड़कों, नालियों, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े कार्य भी कमेटी को हस्तांतरित कर दिए गए। फिर इसके बाद, वर्ष 1932 में बिजली वितरण और पानी की आपूर्ति का काम भी इसी नागरिक निकाय को स्थानांतरित कर दिया गया। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद अपने अस्तित्व के नब्बे वर्ष में एक ऐसे संगठन के रूप में विकसित हुई है, जिस पर देश की राजधानी को सुंदर बनाए रखने के साथ मूलभूत नागरिक सेवाएं प्रदान करने का दायित्व है।
फरवरी 1980 में कमेटी के स्थान पर प्रशासक के हाथ में इसकी बागडोर दे दी गई। मई 1994 में नए कानून के लागू होने तक प्रशासक के हाथ में इसकी कमान रही। मई 1994 में, पंजाब म्युनिसिपल एक्ट 1911 के स्थान पर एनडीएमसी एक्ट 1994 लागू किया गया और कमेटी का नाम बदलकर नई दिल्ली म्युनिसिपल कांउसिल कर दिया गया। देश की संसद ने इस अधिनियम को पारित किया। केंद्र सरकार ने एनडीएमसी एक्ट 1994 की धारा 418 के तहत सदस्यों के नामांकन तक के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किया। नई दिल्ली म्युनिसिपल कांउसिल की पहली बैठक 23 दिसंबर 1995 को हुई। एनडीएमसी एक्ट, 1994 के अनुसार, एक अध्यक्ष के नेतृत्व में एक तेरह सदस्यीय परिषद एनडीएमसी के कामकाज को देखती है। इन 13 सदस्यों में से दो विधान सभा के सदस्य, केंद्र सरकार या सरकार या सरकारी उपक्रमों के पांच अधिकारी, जिन्हें केंद्र सरकार नामित करती है, केंद्र सरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री के परामर्श से महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से चार सदस्य होते हैं। नई दिल्ली का सांसद भी इसका सदस्य होता है क्योंकि वह इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है जो कि आंशिक रूप से या पूरी तरह नई दिल्ली में आता है।
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