Saturday, June 23, 2018
Yamnuna river connection of delhi_शहर के भाग्य के साथ जुड़ी नदी की कहानी
दिल्ली पर ऐतिहासिक साहित्य मुख्य रूप से राजनीतिक, सामाजिक, पुरातात्विक या स्थापत्य इतिहास पर केंद्रित है। जहां तक आसपास के पर्यावरण की बात है, उसको लेकर साहित्यिक संदर्भ नाममात्र के ही रहे हैं। ऐसे संदर्भ भी शायद नदी, पहाड़ियों, वनस्पतियों, जीवों और भूविज्ञान के सामान्य विवरण तक ही सीमित थे। हाल के दशकों में दिल्ली के भूदृश्य के प्राकृतिक स्थिति में शहरी प्रक्रियाओं के विभिन्न स्वरूपों के कारण नाटकीय परिवर्तन हुआ है। इस विकास की कहानी एक हद तक अनजानी ही है।
यमुना नदी दिल्ली के भूदृश्य का एक मुख्य आकर्षण है। आज संकुचित स्वरूप और प्रदूषित जल वाली इस नदी की स्थिति दयनीय है। मानसून के दौरान जब इसका पानी खतरे के निशान से ऊपर उठता है तभी यमुना की ओर सबका ध्यान जाता है। लेकिन यमुना नदी का इतिहास पुराना और घटनापूर्ण रहा है और दिल्ली शहर के बसने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
एक समय यमुना की धारा पश्चिम की ओर होकर बहती थी और यह घग्गर-हकरा नदी में मिलती थी। समय के साथ इसकी धारा पूरब की ओर होती गई और अंततः यह गंगा नदी में मिल गई। नजफगढ़, सूरजकुंड और बड़कल की झीलें यमुना की पुरानी धाराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
खादर यमुना नदी की नई बालू मिट्टी का निक्षेप है। इसके पश्चिम में बांगर है जो बहुत समय पूर्व नदी के पुराने प्रवाह-मार्गों के निक्षेपों से बने बालू मिट्टी के टीले हैं। डाबर दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली की बाढ़ प्रभावित नीची भूमि है। यह पहाड़ियों के पश्चिम में जल जमाव का क्षेत्र है जहां से धाराएं पश्चिम को जाती है।
वैसे तो यमुना दिल्ली से होकर बहने वाली एक बारहमासी नदी है, तथापि यहां की छोटी बरसाती नदियां भी महत्वपूर्ण हैं। ये बरसाती नदियां अब प्रायः गंदे और बदबूदार पानी वाले नालों के रूप में शेष रह गई हैं, इनका ऐतिहासिक या पर्यावरणीय महत्व गौण हो गया है। अधिकांश नदी-नाले, जिनमें भूरिया नाला सबसे प्रमुख है, दक्षिणी दिल्ली के बल्लभगढ़ पहाड़ी इलाके से पूर्व की ओर बहता है। प्राचीन काल की बस्तियां प्रायः ऐसे ही जल स्त्रोतों के अपवाह क्षेत्र में सघन रूप से बसीं।
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