Saturday, March 23, 2019

Post Partition Settlement of Refugee Colonies in Delhi_दिल्ली में बसी विस्थापितों की काॅलोनियां





अगस्त 1947 में भारत के विभाजन के तुरंत बाद सांप्रदायिक कट्टरता और महजबी असहिष्णुता के कारण हुई अभूतपूर्व रक्तिम हिंसा हुई। इसी का नतीजा था कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और सिखों को अपनी जानमाल की सुरक्षा के डर से पलायन करके भारत आना पड़ा। इस अप्रत्याशित माननीय आबादी के पलायन की पहले से कोई व्यवस्था न होने का परिणाम यह हुआ कि सरकार को राहत और पुनर्वास की भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। 


दिल्ली में ही पाकिस्तान से कुल 459,391 हिंदू-सिख विस्थापित आकर बसे, जिनमें 265,679 पुरुष और 229,712 महिलाएँ थी। इन शरणार्थियों में कुछ तो पाकिस्तान गए मुसलमानों के खाली घरों में ठहरे, लेकिन अधिकांश विस्थापित खुले आकाश के नीचे ही रहने को विवश थे। तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उनके अस्थाई आश्रय के लिए पुनर्वास सहित अन्य व्यवस्थाएं की गई, जिसके तहत उनको पुरानी सैनिक बैरकों और तंबू वाले शिविरों में रखा गया। किंग्सवे कैंप की पुरानी सैन्य बैरकों में 50,000 विस्थापितों को आश्रय प्रदान किया गया। 

पुराना किला में छप्पर की छत वाले तंबू लगाए गए। यहां तक कि किले की दीवारों से सटाकर रहने लायक कमरों में तब्दील कर दिया गया। अनेक शरणार्थियों को फिरोजशाह कोटला और सफदरजंग मकबरे के मैदानों में शरण दी गई। तीस हजारी में एक तंबू शिविर बनाया गया, जिसमें करीब 3000 विस्थापितों की रहने की व्यवस्था की गई। इन सभी अस्थायी शिविरों में रहने वाले विस्थापितों के लिए रसोई, स्नानघर और शौचालय बनाए गए।

आजादी के बाद दो साल तक सरकार के लिए दिल्ली में विस्थापितों को राहत और आश्रय देने की समस्या एक बड़ी चुनौती बनी रही। केंद्र सरकार ने दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली को तीन लाख विस्थापितों के पुनर्वास का लक्ष्य दिया था। पर वास्तविकता में विस्थापितों की संख्या उपरोक्त में वर्णित लक्ष्य से बहुत अधिक थी। यहां आने वाले विस्थापितों में 470386 शहरी विस्थापित और 25005 ग्रामीण विस्थापित व्यक्ति थे। 
केंद्रीय राहत और पुनर्वास मंत्रालय ने शहरी पुनर्वास की बड़ी समस्या के समाधान के लिए कार्यालय स्थापित किए। जिनमें से एक शत्रु संपत्ति संरक्षक कार्यालय पी ब्लॉक, नई दिल्ली में और दूसरा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के ठीक सामने वेवल कैंटीन में हाॅउस एंड रेंट ऑफिसर का कार्यालय बनाया गया। इसमें पहले कार्यालय का काम शहर में खाली हुई संपत्ति के मामलों और दूसरे कार्यालय का काम नवनिर्मित घरों, दुकानों, किराए के मकानों, नए भूखंडों के आवंटन और ऋण और अनुदान के वितरण, रखरखाव के भत्तों और वजीफों के मामलों को देखना था। जबकि आवास और ग्रामीण क्षेत्र में भूमि के आवंटन की जिम्मेदारी मुख्य रूप से जिला प्रशासन के जिम्मे थी। 

1951 के अंत तक करीब 190, 000 विस्थापितों को दिल्ली छोड़कर पाकिस्तान गए परिवारों के खाली घरों में बसा दिया गया। केंद्रीय पुनर्वास मंत्रालय ने ऐसे व्यक्तियों को मकान उपलब्ध कराने के लिए नई आवास नीति और योजनाएँ तैयार की, जिन्हें खाली हुए घरों में रहने की जगह नहीं मिली। ऐसे में राजधानी में व्यापक स्तर पर आवासीय निर्माण की आवश्यकता को देखते हुए इस कार्य को केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, जिसने बृहत्तर दिल्ली की योजना बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, के माध्यम से करवाने का निर्णय लिया गया। जिसके तहत सभी क्षेत्र अनुसार वाली योजनाओं को उनके पड़ोस से जोड़ने और मुख्य शहर के केंद्र तक आसान पहुंच को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई गई। 

इस काम के लिए करीब तीन हजार एकड़ की भूमि चिन्हित की गई, जहां पर लगभग दो लाख व्यक्तियों को आवास प्रदान करने का लक्ष्य था। इस योजना के तहत विभिन्न कालोनियों बनाई गईं। इन काॅलोनियों में प्रमुख रूप से राजेंद्र नगर (नई दिल्ली उत्तरी विस्तार क्षेत्र), पटेल नगर (शादीपुर), मलकागंज, किंग्सवे, विजय नगर, निजामुद्दीन, निजामुद्दीन एक्सटेंशन, जंगपुरा, जंगपुरा एक्सटेंशन ए और बी, लाजपत नगर (किलोकरी) पूर्व, लाजपत नगर पश्चिम, कालकाजी, मालवीय नगर, भारत नगर, तिलक नगर (तिहाड़), पुराना किला, फिरोजशाह कोटला, आजादपुर, रैगरपुरा, अंगूरी बाग और प्रदेश गाॅर्डन थीं।



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