02032019, दैनिक जागरण |
मुल्क के टुकड़े तो हो चुके। अब उसे दुरूस्त करने का तरीका क्या है? एक हिस्सा गंदा बने तो क्या दूसरा भी वैसा ही करे? हिंदुस्तान की रक्षा का, उसकी उन्नति का यह रास्ता नहीं कि जो बुराई पाकिस्तान में हुई उसका हम अनुकरण करे। अनुकरण हम सिर्फ भलाई का ही करें। अगर पाकिस्तान बुराई ही करता रहा तो आखिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान में लड़ाई होनी ही हैं मेरी बात कोई सुने तो यह संकट टल सकता है। अगर मेरी चले तो न तो मैं फौज रखूं और न पुलिस। मगर ये सब हवाई बातें हैं। मैं हुकूमत नहीं चलाता। आज जो चल रहा है, उससे तो लड़ाई का ही आभास होता है। यही संबोधन दिया था महात्मा गाँधी ने 16 सितंबर 1947 को दिल्ली की वाल्मीकि बस्ती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ताओं के समक्ष।
मैं यह देखने के लिए पंजाब जा रहा था कि जो हिंदू-सिक्ख पाकिस्तान से खदेड़ दिए गए हैं, वे अपने-अपने घरों को वापिस लौट सके और वहां हिफाजत और इज्जत से रह सकें। मगर रास्ते में मैं दिल्ली में रोक लिया गया और जब तक हिंदुस्तान की इस राजधानी में शांति कायम नहीं होती तब तक मैं यही रहूंगा। मैं मुसलमानों को यह सलाह कभी नहीं दूंगा कि वे लोग अपने घर छोड़कर चले जाय, भले ही ऐसी बात कहने वाला मैं अकेला ही क्यों न होऊं। अगर मुसलमान लोग हिंदुस्तान के कानून मानने वाले और वफादार नागरिक बनकर रहे तो उन्हें कोई भी नहीं छू सकता।
वहीं 18 सितंबर 1947 को दरियागंज मस्जिद में महात्मा गांधी ने मुसलमानों के बीच में भाषण देते हुए कहा कि मैं जिस तरह हिंदुओं और दूसरों का दोस्त और सेवक हूं उसी तरह मुसलमानों का भी हूं। मैं तब तक चैन नहीं लूंगा जब तक हिंद-यूनियन का हर एक मुसलमान, जो यूनियन का वफादार नागरिक बनकर रहना चाहता है, अपने घर वापिस आकर शांति और हिफाजत से नहीं रहने लगता।
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने कहा है कि सरदार पटेल ने मुसलमानों के पाकिस्तान में जाने की बात की ताईद की है। जब सरदार से मैंने यह बात कही तो वे गुस्सा हुए। मगर साथ ही उन्होंने मुझसे कहा कि इस शक के लिए मेरे पास कारण हैं कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की बहुत बड़ी तादाद हिंदुस्तान के प्रति वफादार नहीं है। ऐसे लोगों का पाकिस्तान में चले जाना ही ठीक है। मगर अपने इस शक का असर सरदार ने अपने कामों पर नहीं पड़ने दिया।
गाँधी ने कहा था कि अगर हिंदुओं को लगता है कि भारत में हिंदुओं के अलावा किसी और के लिए कोई स्थान नहीं है और अगर गैर-हिंदू, विशेष रूप से मुस्लिम, यहां रहना चाहते हैं, तो उन्हें गुलाम के रूप में रहना होगा तो ऐसे में वे (हिंदू) हिंदू धर्म को समाप्त कर देंगे। इसी तरह, अगर पाकिस्तान यह सोचता है कि पाकिस्तान में केवल मुसलमानों को रहने का अधिकार है और गैर-मुसलमानों को वहां पीड़ित होकर और उनके गुलाम के रूप में वहाँ रहना पडे़गा तो यह भारत में इस्लाम का अंत होगा।
मैं पूरी तरह मानता हूं कि जो मुसलमान भारतीय यूनियन के नागरिक बनना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले यूनियन के प्रति वफादार होना ही चाहिए और उन्हें अपने देश के लिए सारी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। जो लोग पाकिस्तान जाना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए आजाद हैं। मैं सिर्फ यही चाहता हूं कि एक भी मुसलमान, हिंदुओं या सिक्खों के डर से यूनियन न छोड़े। मगर पाकिस्तान रवाना होने से पहले मुझे दिल्ली की आग बुझाने में मदद करनी ही होगी।
No comments:
Post a Comment