हर बार मन का कहाँ होता है
फिर भी हर कोई जीता है,
हर सांस की आस रहती है
जिंदगी में कितना कुछ बेसबब होता है,
जिसको चाहो नहीं मिलता
बिना रोशनी, कहाँ फूल खिलता,
फिर भी जीवन, यूँ ही चलता
जिंदगी में कितना कुछ बेसबब होता है,
मौत आसान, जिंदगी दुश्वार लगती है
कम हो, ज्यादा हो, मन को मनाना पड़ता है,
इतना ही नहीं, मन-मसोसकर जीना पड़ता है
जिंदगी में कितना कुछ बेसबब होता है,
दिल है, मगर धड़कने का बहाना नहीं है
ऐसे सोचकर भी धड़कन चलती ही है,
टुकड़ों में ही सही पर लड़ना पड़ता है
जिंदगी में कितना कुछ बेसबब होता है,
हर बात का सबब, समझ भी कहाँ आता है
जिसे अपना समझते हैं, बेगाना निकलता है,
बेगानों की गिनती में शामिल अपना होता है
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