Saturday, July 27, 2019

Delhi and migrants of partition_जब विभाजन के शरणार्थियों की दुखहर्ता बनी थी, दिल्ली

27/07/2019, दैनिक जागरण 



अगस्त 1947 में भारत के विभाजन के बाद दिल्ली में पश्चिमी पाकिस्तान से आए हिंदू-सिख शरणार्थियों को अनेक कष्टों-समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसमें सबसे बड़ी समस्या सबको सिर ढकने लायक एक छत और आजीविका के लिए रोजगार प्रदान करना था।


ऐसे में, तत्कालीन केंद्र सरकार के समक्ष इन शरणार्थियों का पुनर्वास सबसे बड़ी चुनौती था। उस दौर में दिल्ली में करीब 50 लाख से अधिक शरणार्थी आए थे। जबकि दिल्ली से इसकी तुलना में कम परिवार पाकिस्तान गए थे। ऐसे में पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों की संख्या की तुलना में खाली हुए मकानों की संख्या बहुत कम थी।

वैसे मकान की खोज तो समस्या का एक पक्ष ही था। घर बसाने के लिए धन की जरूरत थी तो धन के लिए रोजगार की। उस समय दिल्ली में सरकार ने करीब साठ हजार शरणार्थी परिवारों को पंजीकृत किया था यानि लगभग चार लाख आदमी। इसका ही नतीजा था कि तब दिल्ली की मानवीय जनसंख्या करीब साढ़े सात लाख से बढ़कर साढ़े ग्यारह लाख हो गई। इनमें लगभग बयालीस हजार व्यक्ति शरणार्थी शिविरों में और बाकी लोग अपने संबंधियों और दोस्तों के साथ रह रहे थे। यह अचानक बढ़ी जनसंख्या के दबाब का ही नतीजा था कि दिल्ली के तत्कालीन मुख्य आयुक्त ने राजधानी में पानी की आपूर्ति और सार्वजनिक स्वच्छता की व्यवस्था पर सर्वाधिक भार होने और गर्मियों में पानी की अधिक मांग की बात को उठाया था। साथ ही गर्म मौसम के कारण मक्ख्यिों के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक गंभीर खतरा माना था।

तब सरकार ने विभाजन के कारण हुए शरणार्थियों की दिल्ली में सैनिकों की बैरकों, पुराने किला, सरकारी अस्थायी शिविरों, देसी रियासतों और कमांडर-इन-चीफ हाउस (आज का तीन मूर्ति भवन) में स्टाफ क्वार्टरों में रहने की व्यवस्था की। इतना सब होने पर भी लगभग 42,000 व्यक्तियों को ही समायोजित किया जा सका।

दिल्ली में हालात ऐसे हो गए थे कि राजधानी और अधिक शरणार्थियों को शरण देने की स्थिति में नहीं रह गई थी। तब सरकार ने शरणार्थियों और दिल्ली के हित में यह अस्थायी समाधान तय किया कि उन्हें देश के दूसरे दूर-दराज के कमतर जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों, जैसे बिहार, असम, मद्रास में बसाया जाएं। इस तरह, शेष जनसंख्या धीरे-धीरे दिल्ली से दूसरे राज्यों में स्थानांतरित हो गई।

दिल्ली राज्य की 1951 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, यहां पर बंटवारे के बाद कुल 4,59,391 व्यक्ति आएं, जिनमें 2,65,679 पुरुष और 229,712 महिलाएं थी। यही कारण है कि 1931-41 की 44 प्रतिशत की दशकीय जनसंख्या वृद्धि की तुलना में 1941-51 की दशकीय जनसंख्या वृद्धि 90 प्रतिशत से अधिक थी।

वहीं दूसरी तरफ, दिल्ली इप्रूवमेंट ट्रस्ट ने शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम के तहत शरणार्थियों के लिए घरों के निर्माण में मदद देने के हिसाब से केंद्रीय पुनर्वास मंत्रालय को राजधानी में विभिन्न स्थानों पर विकसित और अविकसित दोनों प्रकार की करीब 2000 एकड़ भूमि प्रदान की। दिल्ली में मौजूद चार लाख से अधिक शरणार्थियों के आवास के लिए करोलबाग और शादीपुर एक्सटेंशन में नए निर्माण की परियोजनाएं आरंभ हुईं। इतना ही नहीं, तिहाड़, कालकाजी, शेख सराय और महरौली में टाउनशिप बनाने की योजना पर विचार विमर्श को शुरू हुआ।

दिल्ली में आएं शरणार्थियों को रोजगार के मामले में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 15 जनवरी 1948 तक सरकार का स्थानांतरण ब्यूरो केवल 1118 व्यक्तियों को ही रोजगार दिला पाया था। इसी तरह, दिल्ली रोजगार कार्यालय केवल 1105 शरणार्थियों को नौकरी देने में सफल रहा जबकि 131 परिवारों को राजधानी में कृषि भूमि आवंटित की गई। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विभाजन की भयावहता को देखते हुए सीमित साधनों के माध्यम से शरणार्थियों के तन-मन के कष्टों को दूर करने के प्रयास किए गए।


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