मानचित्र का उपयोग प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है, बगैर मानचित्र के हम किसी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते हैं। युद्ध से लेकर विकास की प्रगति तक मानचित्र ही सहायक रहा है। हर एक व्यक्ति को अपने रोजमर्रा के कार्यों के लिए मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है तथा मानचित्रों के प्रयोग से जीवन को आसान और बेहतर बनाया जा सकता है।
मानचित्र का इतिहास मानव के इतिहास जितना ही पुराना है। सबसे पुराना मानचित्र मेसोपोटामिया में पाया गया था, जो कि चिकनी मिट्टी की टिकिया से बना है और 2500 ईसा पूर्व का माना जाता है। भारत में मानचित्र बनाने का कार्य वैदिक काल में ही शुरू हो गया था, जब खगोलीय यथार्थता तथा ब्रहांडिकी रहस्योद्घाटन के प्रयत्न किए गए थे। आर्यभट्, वराहमिहिर तथा भास्कर के पौराणिक ग्रंथों में इन अभिव्यक्तियों को सिद्वांत या नियम के निश्चित रूप में दिखाया गया था। प्राचीन भारतीय विद्वानों ने पूरे विश्व को सात द्वीपों में बांटा। महाभारत में माना गया था कि यह गोलाकार विश्व चारों ओर से जल से घिरा हुआ है। राजा टोडरमल ने भू सर्वेक्षण तथा मानचित्र बनाने के कार्य को लगान वसूली प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बना दिया था। इसके अतिरिक्त, शेरशाह सूरी के लगान मानचित्रों ने मध्यकाल में मानचित्र बनाने के कार्य को और अधिक समृद्ध किया।
मानचित्र मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं। भौतिक, राजनीतिक और थीमैटिक। भौतिक मानचित्रों में स्थलाकृतिक जानकारियों, जैसे-आकृति, अपवाह, कृषि-भूमि, वन, बस्ती, परिवहन के साधन, स्कूलों की स्थिति, डाकघरों तथा अन्य सेवाओं को दर्शाने के लिए समान रंगों तथा प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। राजनीतिक मानचित्र किसी क्षेत्र के प्रशासनिक विभाजन, जैसे-देश, राज्य या जिले को दर्शाते हैं। ये मानचित्र संबंधित प्रशासनिक इकाई के योजना एवं प्रबंधन में प्रशासनिक तंत्र की मदद करते हैं। जबकि थीमैटिक मानचित्र किसी विशेष विषय पर आधारित होते हैं।
भारतीय सर्वेक्षण विभाग, देश में सर्वेक्षण और मानचित्रण का कार्य करने वाली केन्द्रीय इंजीनियरिंग एजेंसी है। जो कि केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत भारतीय भौगोलिक/भू-स्थानिक डाटा के एकत्रण, संग्रहण तथा उसके प्रसार के कार्य के लिए उत्तरदायी है। भारतीय सर्वेक्षण विभाग अंतर्राष्ट्रीय सीमा मामलों पर भारत सरकार का सलाहकार है। यही कारण है कि उसके अंतर्राष्ट्रीय सीमा निदेशालय का कार्यालय नई दिल्ली में ब्रासी एवेन्यू, चर्च रोड पर स्थित है जबकि भारतीय सर्वेक्षण विभाग का मुख्य कार्यालय देहरादून में है।
भारतीय सर्वेक्षण विभाग अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के साथ आईबी स्तंभों का सीमांकन, पुनर्स्थापन, निरीक्षण और रखरखाव भी करता हैं। इसी कारण विदेश मंत्रालय ने भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा सर्वेक्षण क्रियाकलापों के लिए भारतीय सर्वेक्षण विभाग को जिम्मेदारी सौंपी है। उल्लेखनीय है कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग का काम ही भारत की बाहरी सीमाओं का सीमांकन और देश में प्रकाशित मानचित्रों पर उनका चित्रण करना और अन्तर्राज्य सीमाओं के सीमांकन के संबंध में भी परामर्श देना है।
यह देश के वर्तमान वैज्ञानिक संगठनों में सबसे पुराना है जिसकी बुनियाद आज से लगभग सवा दो शताब्दी से भी पूर्व रखी गई थी। उल्लेखनीय है कि अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के लार्ड क्लाइव ने वर्ष 1767 में भारतीय सर्वेक्षण की स्थापना हिंदुस्तान में कंपनी के विजित इलाकों को एकीकृत स्वरूप देने के उद्देश्य से की थी। उसने अपने एक इतिहासकार मित्र राबर्ट ओमेक के अनुरोध पर बंगाल का एक बड़ा नक्षा बनवाया, जो मेजर जेम्स रेनेल ने बनाया। मेजर के काम से खुश होकर लार्ड क्लाइव ने उसे कंपनी के स्थालाकृतिक सर्वेक्षण के लिए बंगाल का महासर्वेक्षक बना दिया। इस तरह, एक सैनिक मित्र से किसी इतिहासकार ने व्यक्तिगत अनुरोध के परिणामस्वरूप अंत में इतनी बड़ी सर्वेक्षण संस्था बन गई। वर्ष 1767-1814 तक की अवधि में सर्वेक्षण विभाग का कार्य कंपनी की सेना के अभियान और विस्तारवादी नीतियों को मदद पहुंचाना था। इन नीतियों के अंतर्गत वहां के लोगों की स्थिति, जीवन स्तर, सेना के लिए सही मार्गों की जानकारी देना था, आम तौर पर सर्वेक्षण करने वाले दल को वहां के स्थानीय लोग जासूस समझते थे, इसलिए शक की नजर से देखते थे।
मेजर जेम्स रेनेल के निर्देशन में ही "बंगाल एटलस" का मानचित्र तैयार हुआ। मद्रास में वर्ष 1796 में और मुंबई में वर्ष 1810 में अंग्रेज प्रेसिडेंसियों के लिए भी सर्वेक्षण विभाग बनाए गए। बाद में वर्ष 1815 में ये तीनों विभाग एक में मिला दिए गए और इसे कर्नल कॉलिन मैकेंजी की देखरेख में रखा गया। मैकेंजी वर्ष 1815 में ही भारत का पहला सर्वेयर जनरल (भारत का महासर्वेक्षक) बना, जिसके कार्यकाल में भारत का प्रामाणिक मानचित्र तैयार हुआ। तब से भारतीय सर्वेक्षण विभाग का काम बढ़ता ही चला जा रहा है।
केन्द्र सरकार ने 19 मई, 2005 को एक राष्ट्रीय मानचित्रण नीति घोषित की थी। इस नीति में यह निर्णय लिया गया कि मानचित्रों की दो श्रृंखला होंगी। पहली रक्षा श्रृंखला और दूसरी ओपन श्रृंखला। 'रक्षा श्रृंखला' में रक्षा सेनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और 'ओपन श्रृंखला' में देश में विकास कार्यकलापों में सहायता देने के लिए तैयार किए जाते हैं। पूरे देश में भारतीय सर्वेक्षण विभाग के प्रत्येक कार्यालय में एक मानचित्र विक्रय केन्द्र खुला हुआ है, जहां से आम नागरिक मानचित्र प्राप्त कर सकता है।
इसी तरह, दिल्ली को लेकर सरकारी मानचित्रों की अच्छी-खासी प्रकाशन संख्या उसके महत्व को रेखांकित करती है। यह बात अंग्रेजों के दौर के पुरातन मानचित्र सिरीज में दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्र (1807) का मानचित्र से उजागर होती है। आजादी के बाद देश की राजधानी पर प्रकाशित उल्लेखनीय मानचित्रों में दिल्ली का प्रशासनिक मानचित्र (1969), दिल्ली के भूमि उपयोग मानचित्र (1981), दिल्ली का परिवहन एवं पर्यटन मानचित्र (1985), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (1998), दिल्ली का भौतिक मानचित्र (2001), दिल्ली की स्वास्थ्य एवं रोग मानचित्रावली (2001) और दिल्ली-राज्य मानचित्र (एनसीटी) (2004) हैं। इसके अलावा, राज्य मानचित्र सिरीज में चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का मानचित्र, पर्यटन मानचित्र सिरीज में दिल्ली का मानचित्र, भारत ज्ञानवर्धक मानचित्र सिरीज में दिल्ली और निकटवर्ती क्षेत्र, परिदर्शी गाईड मानचित्र में दिल्ली का मानचित्र तथा दिल्ली-देहरादून-मसूरी का सड़क मानचित्र, दिल्ली-आगरा-जयपुर का मार्ग मानचित्र भी महत्पपूर्ण हैं। एक प्रकार से, ये मानचित्र राज से लेकर स्वराज तक की दिल्ली की एक लंबी और वैविध्यपूर्ण यात्रा को जीवंतता से प्रस्तुत करते हैं।
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