Sunday, November 24, 2019

Temporary Capital of British_Civil Lines_अंग्रेजों की अस्थायी राजधानी सिविल लाइंस

23112019_ दैनिक जागरण 







वर्ष 1857 में देश की आजादी की पहली लड़ाई में भारतीयों की हार के बाद दिल्ली अंग्रेजी राज के गुस्से और विध्वंस की गवाह बनी। उसके बाद, अंग्रेजों ने अपनी सेना और प्रशासन में कार्यरत गोरों के लिए शाहजहांनाबाद के बाहर घर, कार्यालय, चर्च और बाजार बनाए। इस तरह, गोरों की आबादी शाहजहांनाबाद के परकोटे की दीवार से बाहर बस गई और सिविल लाइंस का नया इलाका दिल्ली के नक्शे में उभरकर सामने आया।


तब नई दिल्ली को अपनी खूबसूरत-विशाल इमारतों के दुनिया के नक्शे पर उभरने में दो दशकों की दूरी थी। जॉर्ज पंचम की घोषणा (वर्ष 1911) और राजधानी के रूप में नई दिल्ली के बसने में बीस बरस (वर्ष 1931) का समय लगा।



अंग्रेजों की राजधानी नई दिल्ली को बनाने के काम को उत्तरी दिल्ली यानी सिविल लाइंस से पूरा किया गया। इस इलाके को अस्थायी राजधानी के रूप में स्थापित किया गया। दिल्ली के राजधानी बनने के बाद, अस्थायी राजधानी (उत्तरी दिल्ली) में 500 एकड़ क्षेत्र जोड़कर उसकी देखभाल का जिम्मा "नोटिफाइड एरिया कमेटी" और प्रस्तावित नई दिल्ली को बनाने का जिम्मा "इंपीरियल दिल्ली कमेटी" को दिया गया। इंपीरियल सिटी, जिसे अब नई दिल्ली कहा जाता है, का जब तक निर्माण नहीं हो गया और कब्जा करने के लिए तैयार नहीं हो गई तब तक के लिए पुरानी दिल्ली के उत्तर की ओर एक अस्थायी राजधानी बनाई गई। इस अस्थायी राजधानी के भवनों का निर्माण रिज पहाड़ी के दोनों ओर किया गया।


अंग्रेज सरकार के आसन के दिल्ली स्थानांतरित होने के शीघ्र बाद, इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का सत्र मेटकाफ हाउस (आज के चंदगीराम अखाड़ा के समीप) में हुआ, जहां से इसका स्थान बाद में पुराना सचिवालय स्थानांतरित कर दिया गया।


वर्ष 1912 में मुख्य भवन पुराना सचिवालय, जहां आज की विधानसभा है, पुराने चंद्रावल गांव के स्थल पर बना है। यही पर 1914-1926 तक केंद्रीय विधानमंडल ने बैठकें की और काम किया। तिमारपुर, चंद्रावल, वजीराबाद गांवों की जमीनों का अस्थायी सरकारी कार्यालयों के निर्माण के लिए वर्ष  1912 में अधिग्रहण किया गया। इसी तरह, मैटकाफ हाउस का अधिग्रहण कांउसिल चैम्बर, सचिवालय को कार्यालयों, प्रेस और काउंसिल के सदस्यों के घरों के उपयोग के लिए किया गया।1920-1926 की अवधि में मैटकाफ हाउस केन्द्रीय विधान मंडल की कांउसिल ऑफ़ स्टेट का गवाह रहा। 



वर्ष 1911 में दिल्ली राजधानी बनने के बाद पहले मुख्य आयुक्त की नियुक्ति हुई और उसे पुलिस महानिरीक्षक की शक्तियां और कार्य भी सौंपे गए। दिल्ली शहर में कोतवाली, सब्जी मंडी और पहाड़गंज तीन बड़े पुलिस थाने थे जबकि सिविल लाइन्स में रिजर्व पुलिस बल, सशस्त्र रिजर्व पुलिस बल और नए रंगरूटों के रहने के लिए विशाल पुलिस बैरकें थीं। राजनिवास के दूसरी तरफ ओल्ड पुलिस लाइन आज भी मौजूद है।


अंग्रेज़ वॉयसरॉय लार्ड हार्डिंग मार्च, 1912 के अंत में अपने पूरे लाव लश्कर के साथ दिल्ली पहुंचा था। वर्ष 1911 में दिल्ली राजधानी स्थानांतरित होने पर दिल्ली विश्वविद्यालय का पुराना वाइसरीगल लॉज, वायसराय का निवास बना। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर करीब एक दशक तक वायसराय इस स्थान पर रहा जब तक रायसीना पहाड़ी पर लुटियन निर्मित उनका नया आवास बना। आज के सिविल लाइन्स के पास उत्तरी दिल्ली में पुराना वाइसरीगल लॉज अभी भी है, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर का कार्यालय है।


उल्लेखनीय है कि दिल्ली के राजधानी बनने के राजनीतिक फैसले का यहां के नागरिकों को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की स्थापना के रूप में फायदा मिला। वर्ष 1922 में एक आवासीय शिक्षण विश्वविद्यालय के रूप में डीयू स्थापित हुआ। डॉ हरिसिंह गौर उसके पहले कुलपति नियुक्त हुए जो कि चार साल (1922-26) कुलपति के पद पर रहे। जब डीयू अस्तित्व में आया, तब दिल्ली में केवल तीन कॉलेज-सेंट स्टीफन, हिंदू और रामजस कॉलेज-थे। वर्ष 1924-25 में डीयू के पहले अकादमिक सत्र में परीक्षाए हुई, जिसका परिणाम संतोषजनक रहा।

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