वनमाला परीख और सुशीला नय्यर की पुस्तक "हमारी बा" में इस दुखद घटना का सजीव वर्णन है। उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन, 22 फरवरी को वर्ष 1944 को पूना के आगा खान पैलेस में 74 वर्ष की आयु में कस्तूरबा का देहांत हुआ था।
गुजरात के काठियावाड़ के पोरबन्दर नगर में वर्ष 1869 के अप्रैल महीने में कस्तूरबा का जन्म हुआ था। गांधी से बा करीब छह महीने बड़ी थी। उनके पिता का नाम गोकुलदास मकनजी था और माता का नाम ब्रजकुंवर। उनकी सात की उम्र में छह साल के बापू के साथ सगाई हो गई थी और तेरह साल की उम्र में उनका विवाह हुआ।
गांधी ने कस्तूरबा के व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि मुझे ऐसा लगता है कि कस्तूरबा के प्रति जनता के आकर्षण का मूल कारण स्वयं को मुझमें विलीन करने की क्षमता थी। मैंने कभी इस आत्म-त्याग के लिए आग्रह नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे मेरे सार्वजनिक जीवन का विस्तार हुआ, मेरी पत्नी के व्यक्तित्व में परिवर्तन आया और उसने आगे बढ़कर स्वयं को मेरे काम में खपा दिया। समय के बीतने के साथ मेरा जीवन और जनता की सेवा एकाकार हो गई। उसने धीरे-धीरे स्वयं को मुझमें समाहित कर दिया। शायद भारत की धरती, एक पत्नी में इस गुण के होने को सबसे अधिक पसंद करती है। मेरे लिए उसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यही है।
दिल्ली का कस्तूरबा कुटीर
किंग्सवे कैम्प में गांधी-कस्तूरबा कुटीर की कहानी भी सामान्य जनमानस की स्मृति से ओझल ही है। गांधी अपने दिल्ली प्रवास के दौरान इसी परिसर में रुकते थे। कस्तूरबा अपने बेटे देवदास सहित दूसरे सदस्यों के साथ यहां एक लंबी अवधि तक रही। वर्ष 1938 में बा के बीमार होने पर बापू ने सुशीला, जो कि तब डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी, को दिल्ली में तार भेजकर उन्हें बा ईलाज के लिए वर्धा आने का अनुरोध किया।
पर इसी बीच बा खुद ही रेल से दिल्ली आ गई। बा का साथ उनका बेटा देवदास गांधी भी थे। सुशीला, बा की चिकित्सा-जांच के लिए एक दिन में दो से तीन बार देखने जाती थी। "कस्तूरबा" पुस्तक में बा से दिल्ली में अपनी मुलाकात का वर्णन करते हुए सुशीला लिखती है कि कि बा ने उन्हें कहा कि वे उनके साथ कुछ दिन रहना चाहती है। तुम मुझे सुबह-शाम प्रार्थना गाकर सुनाना तो मुझे लगेगा कि मैं सेवाग्राम के आश्रम में ही हूँ। उसके बाद सुशीला उन्हें अस्पताल से अपने कमरे ले आई। देवदास गांधी के घर में रहने के बाद बा की सेहत में सुधार हुआ।
बापू के प्रेम पत्र
बापू ने दिल्ली में बा के स्वास्थ्य का हाल-चाल पूछने के लिए तार भेजा। वे रोज बा को प्रेम पत्र लिखते थे जो कि सुशीला के मेडिकल काॅलेज के पते पर आते थे। सुशीला बताती है कि जब मैं ये पत्र लेकर उनके पास जाती थी तो उनका (बा)चेहरा खिल उठता था। वे पहले इन पत्रों को पढ़ती थी और फिर उन्हें अपने तकिए के नीचे रख देती थी। उसके बाद चश्मा पहनकर पत्रों को अनेक बार शब्द दर शब्द बांचती थी। सुशीला का मानना था कि उन्हें इस बारे में कोई संदेह नहीं था कि इन पत्रों ने उनके शीघ्रता से स्वस्थ होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब वे पूरी तरह ठीक हो गई तो देवदास गांधी अपने पूरे परिवार के साथ बा को सेवाग्राम छोड़कर आए।
हरिजन सेवक संघ
हरिजन सेवक संघ का मुख्यालय दिल्ली के किंग्सवे कैंप में है। यह परिसर के भीतर वाल्मीकि भवन था, जहां एक कमरे वाले आश्रम से गांधी ने अपनी गतिविधियां चलाई। गांधी बिरला हाउस में स्थानांतरित करने से पहले इसी के करीब बने "कस्तूरबा कुटीर", जहाँ कस्तूरबा भी अपने बच्चों के साथ रही, में अप्रैल 1946 और जून 1947 तक रहे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के किंग्सवे कैंप में हरिजन सेवक संघ की स्थापना के बाद यह स्थान एक तरह से महात्मा गांधी का ठहरने का स्थान बन गया था। वर्श 1932 में महात्मा गांधी और डॉ भीमराव अंबेडकर के बीच हुए पूना पैक्ट के परिणामस्वरूप गांधी ने हरिजन सेवक संघ की नींव रखी थी। आरंभ में इसे "नेशनल एंटी अनटचेबिलिटी लीग" नाम दिया गया था। वर्ष 1934 में इस संस्था को "हरिजन सेवक संघ" के नाम से पंजीकृत किया गया। यह एक कम जानी बात है कि इसके संविधान, नियमों और विनियमों को स्वयं महात्मा गांधी ने अपनी हस्तलिपि से अंतिम रूप देते हुए ठीक किया था। इस संस्था का लक्ष्य समाज से अस्पृश्यता को मिटाने और उससे प्रभावित व्यक्तियों को समाज की मुख्य धारा में लाना था।
आज 20 एकड़ के परिसर में गांधी आश्रम, बस्ती, लाला हंस राज गुप्ता औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सहित लड़कों-लड़कियों के लिए एक आवासीय विद्यालय भी है। अब हरिजन सेवक संघ के किंग्सवे कैंप स्थित गांधी आश्रम के मुख्यालय को केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय ने गांधीवादी विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध है। गांधी-कस्तूरबा के विभिन्न अवसरों पर यहां लंबा समय बिताने के कारण यह स्थान एक तीर्थ के समान है।
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