UNESCO_World Heritage City Jaipur_विश्व विरासत परकोटे वाला जयपुर शहर_यूनेस्को
इस वर्ष के फरवरी महीने में संयुक्त राष्ट्र राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने जयपुर नगर के परकोटे को विश्व विरासत शहर का दर्जा दिया। जयपुर का परकोटा, विश्व धरोहर में शामिल भारत की 38 वीं विरासत है। अहमदाबाद के बाद जयपुर ऐसा दर्जा पाने वाला देश का दूसरा शहर है।
जुलाई 2019 में अजरबैजान के बाकू शहर में यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 43वें सत्र में जयपुर को विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल का निर्णय हुआ। इस फैसले पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दोनों ने ही ट्वीट करके इस फैसले का स्वागत किया। विश्व विरासत सूची में जुड़ने के लिए एक वर्ष में केवल एक ही स्थल पर विचार होता है जो कि एक सतत् प्रकिया है।यूनेस्को के साथ भागीदारी से भारत को अपनी समृद्ध मूर्त-अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों को दुनिया के सामने लाने और उनके महत्व को बढ़ाने में सहायता मिली है। इससे, विदेशी पर्यटकों की आमद और खजाने में आमदनी दोनों में बढ़ोतरी हुई है।
वर्ष 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय ने परकोटे वाले नगर जयपुर की नींव रखी थी। मैदानी भाग में जयपुर को वास्तु पुरुष मंडल के आकार में बसाया गया। इससे पहले कछवाहा राजाओं की राजधानी आमेर था। जयपुर को योजनापूर्वक वैज्ञानिक पद्वति के आधार पर बसाया गया। जहां सभी सड़कें और गलियां सीधी रेखा में समकोण बनाती हुई एक-दूसरे को काटती हुई बढ़ती है। यहां की पारम्परिक नगर निर्माण कला और वास्तुशिल्प में किला, बाजार चौक और तालाब ये तीन स्थान प्रमुख थे।
परकोटे वाले जयपुर नगर की वैज्ञाानिक संकल्पना में शिल्पशास्त्री विद्याधर की मुख्य भूमिका थी। उनकी देखरेख में तैयार नक्शे पर ही चौरस आकार की सीधी सड़कें और गलियों वाला जयपुर नगर बसा। उस समय का गुलाबी रंग के कारण आज भी जयपुर गुलाबी नगर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां आवास बनाने वाले सामंतों-व्यापारियों के लिए भवनों की ऊंचाई-निर्माण के तरीके में समरूपता और नगर योजना में राज्य के नियंत्रण को देखते हुए विद्याधर से पूर्व-अनुमति लेना अनिवार्य था। गिरधारी कृत "भोजसार" और कृष्ण भट्ट के "ईश्वरविलास महाकाव्यम" में विद्याधर और उनके कार्यों का उल्लेख है। जयपुर में आज भी अपने वास्तुकार की स्मृति में विद्याधर का रास्ता, विद्याधर काॅलोनी और विद्याधर जी का बाग है।
जयपुर की शहरी आयोजना में प्राचीन हिंदू, प्रारंभिक आधुनिक मुगल काल और पश्चिमी संस्कृतियों के विचारों का समावेश है। इसे वैदिक वास्तुकला में वर्णित व्याख्या के आधार पर ग्रिड योजना के अनुरूप बनाया गया था। परकोटे वाले शहर ने अपना पुराना रूप, नगर-प्राचीर से घिरे मध्य भाग में सुरक्षित रखा है। यहां सुन्दर-शानदार इमारतें और खुली-चौड़ी सड़कें हैं। परकोटा, जीवंत विरासत वाले जयपुर का एक अभिन्न भाग है।
यह बात जानकर किसी भी हैरानी होगी कि परकोटे की दीवार प्रतिरक्षा की बजाय नगर सीमा को तय करने और एक व्यवस्था को बनाने के लिए की गई थी। जयपुर में मुख्य सड़कें सार्वजनिक संपर्क साधन की भूमिका निभाती थी। जयपुर की बड़ी सड़कों और लंबे-चौड़े चौकों से गुजरने पर बाजार के बरामदों की स्तंभ-पंक्तियों से सड़क को एक व्यवस्थित रूप मिलता है। यहां भवनों के सड़क की ओर अभिमुख भाग अपने कलात्मक अलंकरणों की विपुलता से देखते ही बनती है। परकोटे में बने बुर्जनुमा दरवाजे, भीतर किसी महत्वपूर्ण भवन होने का संकेत देते हैं।
असल में परकोटे का नगर अलग-अलग तरह के व्यापार, कला और शिल्प से जुड़े समुदायों की बसावट के लिए बनाया गया था। यह बात आज भी साफ परिलक्षित होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस शहर ने आज तक अपने स्थानीय व्यापार, कुटीर उद्योग और सहकारी परंपराओं को कायम रखा है। यहां की मुख्य गलियों के साथ बने बाजारों, दुकानों, घरों और मंदिरों के सामने का हिस्सा एक-समान था। इन गलियों में एक पंक्ति के समान निर्मित गलियारे बीच में मिलते थे। जिससे बड़े सार्वजनिक चौराहों बनते थे, जो कि चौपड़ कहलाते थे।
परकोटे वाले नगर की मूल योजना में केवल चार आयताकार खंड थे। जहां आज महल, पुरानी बस्ती, तोपखाना देश और मोदीखाना-विश्वेश्वरजी का संयुक्त-खंड है। तब चौड़ा रास्ता, आज के जौहरी बाजार की तरह नहीं बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि चौड़ा रास्ता के सामने करीब सभी महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं। यहां बनी चार बाजारों की योजना के कारण जौहरी बाजार, सिरह देवरी बाजार, किशनपोल बाजार और गणगौरी बाजार कायम हुए। इन बाजारों के हर हिस्से में 162 दुकानें और किशनपोल बाजार में 144 दुकानें बनी थीं।
नगर के नौ आयातकार भूखण्डों या चैकड़ियों, जो कुबेर की नौ निधियों की प्रतीक है, में सात को नागरिकों के लिए-उनके आवासों, दुकानों और बाजारों, मंदिरों और मस्जिदों तथा उन कारखानों के लिए ही बनाया गया, जिनके कारण जयपुर की गिनती आगे चलकर भारत के प्रमुख औद्योगिकी केन्द्रों में हुई। परकोटे के अधिकतर भवन गुलाबी बलुए पत्थर से बने हैं, जिस कारण उनकी रंगछटा भी जयपुर को एक समष्टि-रूप नगर बना देती है। पत्थरों की खूब टिकाऊ गारे के साथ चिनाई की हुई होने की वजह से बाहर पलस्तर की जरूरत नहीं रही है। बाद में जो इमारतें ईटों से बनायी गयीं, उनके पलस्तर पर भी गुलाबी रंग का ही लेप है।
जयपुर में अनेक नगर-द्वार हैं और हर द्वार आकृति और सज्जा में दूसरे द्वारों से भिन्न है। जलेबी चौक, सबसे बड़ा चौक है। पुराने जमाने में यहां राजशाही कर की वसूली होती थी। यहां राज-शक्ति के प्रतीक स्वरूप खास दिनों में महाराजा की सवारी निकलती थी, सैनिक परेडें होती थीं और तमाशे-नाटक आयोजित होते थे। जब महाराजा की सवारी निकलती थी तो चौक में उत्सव-संगीत गूंजता था।
जलेबी चौक से प्रासाद की मुख्य इमारतों तक चार दरवाजे हैं। एक मुख्य इमारत दीवाने आम है, जो चारों ओर से खुले बहुस्तंभी मंडप जैसा है। उनके मध्य में स्थित सिंहासन पर बैठकर महाराजा जनता को दर्शन देता था। किसी शासक ने महल-परिसर की मूल योजना में कोई परिवर्तन नहीं किए। जबकि बाद के शासकों ने उसमें अपनी ईश्वरी डाट, जो दरबार के मंत्रियों का सदन था, इकमंजिले अस्तबल और रथशालाएं, मंत्रियों के लिए आवास, हवा महल और मुबारक महल बनवाए। उल्लेखनीय है कि इन इमारतों की ऊंचाई, रंग, अग्रभाग के आम स्वरूप और सड़क से दूरी को लेकर एक समान नियमों का पालन किया गया। यही कारण है कि जयपुर बिना किसी बाधा के एक बहुत बड़े व्यापारिक, औद्योगिक और प्रशासनिक केन्द्र में विकसित हो सका।
जयपुर की वेधशाला (जंतर-मंतर) को नगर की सबसे पुराने निर्माण में से एक है। यह देश नहीं दुनिया में ज्ञात खगोलीय वास्तुशिल्प का सबसे पहला नमूना है। यहां बने उपकरणों की सहायता से नगरों के अक्षांशों तथा देशांतरों का अनुमान, पंचांग की रचना, ग्रहण के समय का निर्धारण होता था। पंचांग की रचना, धार्मिक महत्व के साथ शासन की स्वतंत्रता और शक्ति का भी लक्षण था।
उल्लेखनीय है कि चंडीगढ़ की योजना बनाने वाला सुप्रसिद्व फ्रांसिसी वास्तु-विशेषज्ञ ला-कार्बूजिये (1952-1955) भी जयपुर से ही प्रेरित था। जयपुर की तरह चंडीगढ़ भी समान-सेक्टरों में विभाजित है। आज परकोटे वाला जयपुर अपने भीतर विरासत वाली अनेक बसावटों को लेकर परिवर्तन का आकांक्षी है। जो कि अपनी भौतिक विशेषताओं को कायम रखते हुए एक संपन्न आर्थिक केंद्र है। यूनेस्को में नामांकित संपत्ति की सीमाएं जयपुर के ऐतिहासिक परकोटे वाले शहर के साथ सटी हुई हैं। वर्ष 1727 में कच्छवाह वंश के राजपूत शासक सवाई जय सिंह इसकी स्थापना की थी। यह शहर मोटे तौर पर नौ आयताकार क्षेत्रों में विभाजित है। जहां सीधी सड़कें केवल समकोण पर एक-दूसरे को काटती हैं और कुल 709 हेक्टेयर क्षेत्र वाले शहर की सुरक्षा के लिए भीतर एक विशाल परकोटे वाली दीवार है।
इस परकोटे की दीवार ने शहर को घेरा हुआ है और विभिन्न दिशाओं से शहर में प्रवेश करने के लिए शहर के नौ-द्वार मौजूद हैं। इस परकोटे वाले शहर में अनेक प्रतिष्ठित स्मारक और मंदिर बने हुए हैं। यहां दो मुख्य उत्तर-दक्षिण धुरियां मिलती हैं, जिसके कारण तीन मुख्य सार्वजनिक चैराहें (बड़ी चौपड़, छोटी चौ पड़ और पूर्वी ओर रामगंज चौपड़) बनते हैं और पूर्व-पष्चिम धुरियां शहर के समग्र ग्रिड आइरन शहरी योजना को परिभाषित करती हैं। इसमें मुख्य अक्षीय गलियों के पार कुल 12 प्रमुख बाजार क्षेत्र हैं। इस नामांकित संपत्ति के मध्य का क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण स्थल और प्राकृतिक इलाके हैं, जिसे शहर की भू-योजना को दर्षाने के लिए संदर्भ बिंदुओं के रूप में प्रयोग किया गया। जिमसें उत्तर में गणेशगढ़, पूर्व में गलताजी की पहाड़ियाँ, पश्चिम में नाहरगढ़ और हथरोई तथा दक्षिण में शंकरगढ़ सम्मिलित है।
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