Saturday, February 1, 2020

Mahatma Gandhi and Sardar Patel_Two sides of same coin_एक दूसरे के पूरक थे, गांधी और पटेल




मेरा दिल भरा हुआ है। क्या कहूं क्या न कहूं ? जबान चलती नहीं है। आज का अवसर भारतवर्ष के लिए सब से बड़े दुख, शोक और शर्म का अवसर है।
पिछले चन्द दिनों से उनका दिल खट्टा हो गया था और आप जानते हैं कि आखिर उन्होंने उपवास भी किया। उपवास में चले गए होते, तो अच्छा होता। इस समय पर ही उनको जाना था। आज वह भगवान के मंदिर पहुंच गए!

देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह बात 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में गांधी जी की हत्या के एकदम बाद हुई एक सार्वजनिक सभा में जन साधारण को संबोधित करते हुए कही। ऐसी शोक की घड़ी में भी आत्मसंयम का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि यह बड़े दुख का, बड़े दर्द का समय है, लेकिन यह गुस्से का समय नहीं है। क्योंकि अगर हम इस वक्त गुस्सा करें, तो यह सबक उन्होंने हमको जिन्दगी भर सिखाया, उसे हम भूल जायेंगे! और कहा जायेगा कि उनके जीवन में तो हमने उनकी बात नहीं मानी, उनकी मृत्यु के बाद भी हमने नहीं माना। हम पर यह धब्बा लगेगा। तो मेरी प्रार्थनाा है कि कितना भी दर्द हो, कितना भी दुख हो, कितना भी गुस्सा आए, लेकिन गुस्सा रोककर अपने पर काबू रखिए। अपने जीवन में उन्होंने हमें जो कुछ सिखाया, आज उसी की परीक्षा का समय है। बहुत शान्ति से, बहुत अदब से, बहुत विनय से एक दूसरे के साथ मिलकर हमें मजबूती से पैर जमीन पर रखकर खड़ा रहना है।

सरदार पटेल ने हिंदुस्तान के सार्वजनिक जीवन में गांधी की सर्वव्यापी उपस्थिति के अभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि उनका एक सहारा था और हिन्दुस्तान को वह बहुत बड़ा सहारा था। हमको को जीवन भर उन्हीं का सहारा था। आज वह चला गया! वह चला तो गया, लेकिन हर रोज, हर मिनिट वह हमारी आंखों के सामने रहेगा! हमारे हृदय के सामने रहेगा! क्योंकि जो चीज वह हमको दे गया है, वह तो कभी हमारे पास से जाएगी नहीं! आप जानते हैं कि हमारे ऊपर जो बोझ पड़ रहा है, वह इतना भारी है कि करीब-करीब हमारी कमर टूट जाएगी।

उस दुखद घड़ी में भी एक उत्तम नेता के दुर्लभ गुण का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने आशावादिता का दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि कल चार बजे उनकी मिट्टी तो भस्म हो जाएगी, लेकिन उनकी आत्मा तो अब भी हमारे बीच में है। अभी भी वह हमें देख रही है कि हम लोग क्या कर रहे हैं। वह तो अमर है। मैं उम्मीद करता हूँ और हम सब ईश्वर से यह प्रार्थना करेंगे कि जो काम वह हमारे ऊपर बाकी छोड़ गए हैं, उसे पूरा करने में हम कामयाब हों। मैं यह भी उम्मीद करता हूँ कि इस कठिन समय में भी हम पस्त नहीं हो जाएंगे, हम नहिम्मत भी नहीं हो जाएंगे।

फिर 2 फरवरी 1948 को रामलीला मैदान में गांधीजी की शोकसभा में सरदार पटेल के मन की पीड़ा फूट पड़ी। उन्होंने गांधी के साथ स्वयं के अभिन्न जुड़ाव और राष्ट्रीय जीवन में उनके प्रतिम योगदान को बताते हुए कहा कि जब से गांधीजी हिन्दुस्तान में आए तब से, या जब मैंने जाहिर जीवन शुरु किया तब से, मैं उनके साथ रहा हूँ । अगर वे हिंदुस्तान न आए होते, तो मैं कहां जाता और क्या करता, उसका जब मैं ख्याल करता हूँ तो एक हैरानी-सी होती है।

महात्मा गांधी ने कारागार से लिखे एक पत्र में सरदार पटेल के बारे में लिखा था कि मेरी कठिनाई यह है कि तुम मेरे साथ नहीं हो इसलिए मैं एकलव्य बनने का प्रयास कर रहा हूँ कि जिसने द्रोणाचार्य की अस्वीकृति के बाद अपने समक्ष द्रोणाचार्य की मिट्टी की प्रतिमा रखकर तीरदांजी सीखी थी। मैं उसी तरह, तुम्हारी छवि का स्मरण करते हुए अपने प्रश्न उसके समक्ष रखता हूँ।

उसी शोकाकुल पटेल ने गांधी स्मृति को लेकर रामलीला मैदान में कहा कि तीन दिन से मैं सोच रहा हूँ कि गांधीजी ने मेरे जीवन में कितना पलटा किया और इसी तरह से लाखों आदमियों के जीवन को उन्होंने किस तरह से पलटा? यदि वह हिन्दुस्तान में न आए होते तो राष्ट्र कहां जाता? हिन्दुस्तान कहां होता? सदियों से हम गिरे हुए थे। वह हमें उठाकर कहां तक ले आए? उन्होंने हमें आजाद बनाया। उनके हिंदुस्तान आने के बाद क्या-क्या हुआ और किस तरह से उन्होंने हमें उठाया, कितनी दफा किस-किस प्रकार की तकलीफें उन्होंने उठाई, कितनी दफे वह जेलखाने में गए और कितनी दफे उपवास किया, यह सब आज ख्याल आता है। कितने धीरज से, कितनी शान्ति से वह तकलीफें उठाते रहे, और आखिर आजादी के सब दरवाजे पार कर हमें उन्होंने आजादी दिलवाई।


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