आप जो बोते हैं, वैसा ही काटते हैं.
सरकारी प्रायोजित इतिहास लेखन, जवाहरलाल नेहरु के दौर में सोवियत मॉडल के नक़ल का ही एक आयाम है.
इस तरह की दूसरी नकलों में, योजना आयोग और मिश्रित अर्थव्यवस्था भी थी.
सरकारी पैसे पर वामपंथ का जाप करके अपनी बौद्धिकता का परचम फहराने वाले अब न घर के रह गए हैं और न ही घाट के. विस्तार से जानना हो तो अरुण शौरी की Eminent Historians: Their Technology, Their Line, Their Fraud ही काफी है.
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